#मूलचन्द्र गौतम
अबकी होली में अचानक गांधीजी के निजी सचिव प्यारेलाल से मुलाकात हुई
तो मैंने लगे हाथों गांधीजी की भी खैर –खबर ले ली .बातों –बातों में बात चली कि
क्या राष्ट्रपिता जी अपने पुराने कार्यों और विचारों पर कुछ पुनर्विचार या संशोधन
जैसा करना जरूरी समझते हैं . तो प्यारेलाल ने बताया कि वे अपनी हिमालय जैसी भूल
में कुछ संशोधन करना चाहते हैं लेकिन यह सम्विधान में संशोधन जैसा कोई जटिल काम
नहीं है .
प्यारेलाल ने बताया कि एक तो बापू को खुद के हाथों कांग्रेस को
विसर्जित न कर पाने का अफ़सोस है ,जिसके लिए देशवासियों को नास्त्रेदमस जैसे
देशद्रोही की मदद भारी कीमत चुकाकर लेनी पड़ी .दूसरे उन्हें लगता है कि उनके तीन
बंदरों ने ठीक से काम नहीं किया है . यह तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा हो गये हैं .इसके
लिए चौथे बन्दर का होना जरूरी था क्योंकि हमेशा चौपहिया तिपहिये से ज्यादा
सुरक्षित होता है .ऐसा होता तो कम से कम दिल्ली सरकार को ऑड और ईवन जैसी व्यवस्था
के विज्ञापन पर भारी राशि खर्च नहीं करनी पडती .
बुरा मत देखो ,बुरा मत सुनो ,बुरा मत कहो की तरह इस चौथे बन्दर का
नारा होता- बुरा मत मानो...इसी अवसरवादी नारे को राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त होता –क्रिकेट
और सट्टे की तरह . तब देश में रोज होली
होती .कन्हैयाजी ने गोपियों के साथ चीरहरण लीला की थी . उनके सच्चे वारिसों ने उसी
लीला का विस्तार कपड़ा फाड़ होली में किया जिसकी
शूटिंग अब देश में कहीं न कहीं रोज होती है .यही भारत की चाल ,चरित्र और चेहरा है –अतुल्य
भारत है .
द्वापर में कन्हैयाजी ने
कालिया नाग को नथकर यमुना को प्रदूषण मुक्त किया था .कलिकाल में यह काम किया जाता तो उन्हें भी लीला से
पहले डबल श्री की तरह भारी जुर्माना भरना
पड़ता .न्यायिक जांच अलग से होती .
देश में इन हालात की जिम्मेदारी की बात चली तो प्यारेलाल ने बताया कि
जब से भारतीय जनता को फूहड़ कामेडी
सीरियलों का चस्का लगा है तब से उनके दुर्दिन शुरू हो गये हैं .देश दो भागों में
बंट गया है –नेताओं के हिस्से कामेडी आ गयी है और जनता के हिस्से ट्रेजेडी .दोनों
एक दूसरे को देख देखकर पेट पकड़कर
खिलखिलाते हुए लोट पोट हुए जा रहे हैं .प्यारेलाल को समझ नहीं आ रहा कि इलाही ये
माजरा क्या है ?
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शक्तिनगर, चन्दौसी, संभल 244412
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