Tuesday, October 15, 2013

जूतों की कारसेवा

जूतों की कारसेवा

*मूलचन्द गौतम
पाहुन की पनही भी आदरणीय होती है .उनके आने पर न केवल पैर धोये जाते हैं बल्कि उनके जूतों की भी पूरी सार –संभाल की जाती है .दूल्हे के जूतों को चुराने का एकाधिकार सिर्फ सालियों का होता था वो भी मजाक के बतौर नेग के लिए ताकि पाहुन की बर्दाश्त की पहचान हो जाय .कुछ पाहुन तो घर से चलते ही अपने जूतों को लेकर सतर्क हो जाते थे .उनके पैर भले घायल हो जाएँ ,जूतों को खरोंच भी न आये .कुछ तो लाठी पर लटकाकर चलते थे और गाँव के सिमाने पर ही उन्हें धारण करते थे . तेल पिये चमरौधे जूते से सकेल निकले ,मुख ज्यों उधार खाये के ऐसे ही  पाहुन के चरणों को पूजने से मना करने के कारण ही निराला जी को पुत्री वियोग सहना पडा था .क्या अब इन स्थितियों में कोई  बुनियादी फर्क आ गया है .दहेज का दानव न जाने कितनी बेटियों को रोज जिन्दा निगल जाता है और हम  निरीह कुछ नहीं कर पाते .
जूतों की कहीं इज्जत देखनी हो तो तिरुपति जाइये या किसी गुरुद्वारे में .बड़ी साज-संभाल से रखे जाते हैं मुफ्त .यही उन उपेक्षितों की कारसेवा है .कोई तनखैया घोषित कर दिया जाता है तो ये पददलित और भी आदरणीय हो उठते हैं .किसी –किसी के भाग्य में मुख्यमंत्री –मंत्री भी आ जाता है .बाकि जगहों में इनकी और इन्हें धारण करने वालों की बड़ी बेइज्जती होती है ,सुरक्षा के लिए पैसे अलग देने पड़ते हैं .इसीलिए दक्षिण भारत में कोई जूते पहनकर ही नहीं जाता –मन्दिर और तीर्थों में .सबरीमाला के कल्लू नंगे पैरों पूरा जहाँ नाप लेते हैं .उत्तर भारत में तो मन्दिरों से जूते- चप्पल ऐसे उठाये जाते हैं जैसे आजकल दुपहिया और चौपहिया .देखते रह जाओगे ?पहचान तक न पाओगे अगर थोड़ी देर में आपके ऐन सामने से निकले तो भी .क्या हुनर है और क्या हुनरमंद ?
कोई जमाना था जब जूतों की कोई कीमत नहीं थी .आज तो जूता ही उतने में आता है जितने में पहले भैस आ जाती थी .लोग बड़ी शान से बताते हैं जूतों की कीमत और ब्रांड .पहले गरीब टायरसोल की चप्पलें पहनकर जिन्दगी काट देता था ,अब उसकी जगह प्लास्टिक ने ले ली है .अच्छे जूते की तमन्ना सिर्फ भगवान की कृपा से पूरी हो सकती है .यही होरी का गोदान है आज के जमाने में .
लोगों को सड़कों पर कारों को हसरत भरी निगाहों से देखना कोई कम यातनाप्रद नहीं होता .भला हो फिल्मवालों का जो उनकी कुछ तो इच्छा पूरी हो ही जाती है .पुलिस  को मोबाइलों ,मोटरसाइकिलों की चोरी को तो अपराधमुक्त कर देना चाहिए .आखिर नागरिक का कोई तो अधिकार होता है देश की सम्पत्ति पर .अब सरकार बांटेगी बीपीएल से नीचे वालों को .पहले ही बंट जाते तो अपराध का ग्राफ मंहगाई की तुलना में तो कम बढ़ता .चलो देर आयद दुरुस्त ...जिन्हें नहीं मिलेगा वे छीनेंगे नहीं तो क्या करेंगे ?उनकी तो जैसे कोई सोसाइटी ही नहीं ?अब एक अदद जूते के लिए आदमी कारसेवा करेगा क्या ?फिर कहेंगे नक्सलवाद देश के सामने सबसे बड़ी समस्या है ?
*शक्तिनगर ,चंदौसी ,संभल उ.प्र.२४४४१२  मोबाइल-९४१२३२२०६७

moolchandmoolchandmoolchandgautam .blogspot .com 

Thursday, October 3, 2013

विमर्श :शौचालय क्रांति

# मूलचन्द्र गौतम
देश में अब तक हरित ,श्वेत ,रक्त ,संचार इत्यादि अनेक प्रकार की क्रांतियाँ हो चुकी हैं .अब जरूरत है शौचालय क्रांति की .गांधीजी ने बहुत पहले छुआछूत विरोधी आन्दोलन के सिलसिले में इस क्रांति की जरूरत को महसूस कर लिया था ।किसी एक जाति के लोगों का ही जिम्मा क्यों हो दूसरों की फैलाई हुई गन्दगी को साफ करना।यह व्यक्तिगत के साथ सामूहिक जिम्मेदारी होनी चाहिए।फ्लश सिस्टम ने इसे आसान बनाया लेकिन गटर और सड़कों की सफाई ?सदियों से दलितों की मानसिकता की जड़ में जमी हीनता ,कुंठा इतनी आसानी से तो नहीं निकल जायेगी?
.ईश्वर-अल्ला तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान -से गांधीजी का आशय यही था कि सभी धर्मों का सार है -शुचिता-पवित्रता ।यम नियम के पालन और आचरण ने ही गांधीजी को महान बनाया । हरिजन और वैष्णव जन का सामंजस्य ही उनका परम लक्ष्य था ।आगा खां पैलेस में जेल काटते हुए कस्तूरबा से उनका झगड़ा खुद शौचालय की सफाई को लेकर हुआ था जिसमें गांधीजी की जिद की जीत हुई थी  ।देवता  यों भी गंदगी में वास नहीं  करते .आज भी देवता फाइव स्टार से कम सफाई में नहीं रुकते .इसीलिए अब आधुनिक स्थापत्य में मॉड्यूलर किचेन की तरह मॉड्यूलर बाथरूम पर जोर है।एक हमारे भाई साहब को तो हिन्दुस्तानी तरीके के उकडूं बैठने वाले शौचालयों तक से नफरत है .उनका अटल सिद्धांत है कि किसी आदमी का स्तर जांचना हो तो उसका बाथरूम देख लो ।जैसे शाकाहारी लोग प्याज तक की गंध बर्दाश्त नहीं कर पाते वैसी ही हालत कमोड के शौकीनों की होती है .वे कहीं भी घुसने से पहले यह पूछना नहीं भूलते कि वाशरूम में इंग्लिश सीट  है कि नहीं ?

सरकार ने देहातों तक में सिर पर मैला धोने की प्रथा को बंद करने के लिए शौचालयों के निर्माण को प्राथमिकता दी है .शुष्क शौचालय लगभग खत्म हैं।देहाती महिलाएं पहले शौच के बहाने खेतों में बैठकर घंटों पंचायत करती थीं .किसी आदमी के आते ही उसे गार्ड ऑफ ऑनर देती थीं जिसका उल्लेख राग दरबारी तक में बड़ी शान से हुआ है।घरों में शौचालयों के निर्माण से इस कुप्रवृत्ति पर रोक लगी है .बलात्कार की घटनाएँ भी कम हुई हैं .शौच से बायोगेस प्लांट लगाकर लोगों ने क्रांति कर दी है .ऑर्गेनिक फ़ूड का नया धंधा उठान पर है ।
मानव विकास सूचकांक के मानकों के अनुरूप मल मूत्र विसर्जन के वैश्विक तंत्र और प्रबंधन की दृष्टि से भारत निम्नतम स्तर पर है ।सबै भूमि गोपाल की तरह सर्वर्त्र विसर्जन की आजादी ने यह कमाल कर दिया है।गधे के पूत यहाँ मत मूत की इबारतों से गधों को कोई फर्क नहीं पड़ता ।भुगतान पर इन सुविधाओं को हासिल करना आम जनमानस में अभी नहीं पनपा है ।यूरोप यात्रा में मेरा यह अनुभव और पक्का हुआ ।मुफ्त का चन्दन हमें हर जगह चाहिए।सब्सिडी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।शौचालय निर्माण की सब्सिडी में भृष्टाचार और घपले ने यह सिध्द कर दिया है कि यह हमारे खून में है।भारत में केवल सिक्किम अकेला राज्य है जहाँ सार्वजनिक मल मूत्र विसर्जन और प्लास्टिक का उपयोग सख्ती से वर्जित है। काश ऐसा पूरे देश में लागू होता ।
हर  क्रांति का सबसे बड़ा फायदा मध्यवर्गीय सवर्णों ने उठाया है .अब जूतों की ज्यादातर दुकानें इन्हीं की हैं .जातिगत पेशे समाप्तप्राय हैं।अब सफाई कर्मचारी बनने में किसी की हेटी नहीं भले एवजी में आदमी रख दें शिक्षकों की तरह ।बड़े बड़े क्वालीफाइड युवक चपरासी की सरकारी नौकरी की लाइन में हैं। पंडित विन्देश्वर पाठक ने सुलभ शौचालयों से क्रांति कर दी है .देश भर में एक नयी संस्कृति विकसित की है ।इतना ही  नहीं उसे इंटरनेशनल बनाकर संयुक्तराष्ट्र संघ से मान्यता भी हासिल की है। लोगों को रोजगार दिया है ।अच्छा हो कि इस कार्य का  पूरे देश का ठेका उन्हें दे दिया जाय ।
 शौचालय क्रांति के विरोधी जानते हैं कि इससे  उन्हीं लोगों को लाभ होगा जो सदियों उनके जूतों तले कुचले जाते रहे हैं .अब इन मूढों को कौन समझाए कि जमाना बदल रहा है .धंधा देखो -जाति और धर्म में क्या रखा है ?
# शक्तिनगर, चन्दौसी, संभल 244412
मोबाइल 8218636741