Saturday, September 30, 2023

कदमताल की गिनती

कदमताल की गिनती 

# मूलचंद्र गौतम

चचा की घड़ी में जबसे पोते पोतियों ने गूगल फिट और स्टेप काउंटर ऐप लगाया है तबसे उन्होंने एक नया बबाल मोल ले लिया है । बचपन से ही  व्यायाम  के शौकीन चचा ने कभी गिनती करके कदमताल और दौड़भाग नहीं की ।अब वे रोज शाम होते ही अपने ब्लड प्रेशर और कदमताल की गिनती चालू कर देते हैं। दिल के मरीज होने के नाते डॉक्टर के हिसाब से रोज दस हजार कदम चलना उनकी मजबूरी है ।जिस दिन वे यह आँकड़ा छू नहीं पाते उस दिन उन्हें अपराधबोध  और डिप्रेशन घेर लेता है ।एक चतुर राजनेता की तरह वे अगले दिन के संकल्प और सिद्धि की तैयारी के साथ सोने चले जाते हैं लेकिन नींद  क्यों रात भर नहीं आती ?

चचा शुरू से ही पतली चमड़ी  के रहे हैं इसलिए हर बात उन पर तुरंत असर करती है ।कोई उन्हें देखकर यों ही अगर हँस दे तो वे सोच सोचकर परेशान हो जाते हैं कि उसकी हँसी का कारण क्या है ।वे शीशे के सामने खड़े होकर बार बार लाफिंग बुद्धा का पोज बनाते हैं लेकिन कारण है कि उनकी पकड़ में नहीं आता ।मरने की बात से ही उनकी जान निकल जाती है फिर वे वेदांत की शरण में चले जाते हैं जहाँ जगत मिथ्या है लेकिन सत्य पकड़ में नहीं आता ।सपने में उनकी मुलाकात अक्सर आदिगुरु एवं अन्य गुरुओं से निरंतर होती रहती है लेकिन कोई मार्ग उन्हें नहीं मिलता।मध्यमार्ग की तलाश में चचा बचपन से ही भटकते फिर रहे हैं लेकिन कोई न कोई अतिवाद उन्हें बीच मंझधार में ले डूबता है ।

चचा शुरू से ही किताबी हिसाब से नियम कायदों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं ।इस वजह से कुछ लोग उन्हें  गाली की तरह कम्युनिस्ट तक कह देते हैं ।इस अच्छाई की खोज में चचा पार्टी के घोषणा पत्र से लेकर पूँजी के तीनों खण्ड चाट चुके हैं ।चचा खुले दिल से हर अच्छी और सच्ची बात को सब कहीं से ग्रहण करने को तैयार रहते हैं ।बस लेबल लगाने से उन्हें चिढ़ है ।तत्व और द्वंद्व के बीच वे हमेशा द्वंद्व के पक्षधर हैं ।इसीलिए वे हर जगह मिसफिट होकर अकेले पड़ जाते हैं ।घर वाले उन्हें लाख समझाते हैं वक्त के हिसाब से बदलने और चलने को लेकिन चचा का एक ही जबाब होता है आखिरी वक्त में क्या खाक मुसलमाँ होंगे ।लोग इसमें भी धर्मपरिवर्तन की आहट सूँघ लें तो चचा की क्या गलती है ?
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