Sunday, February 26, 2023

अहम और वहम का इलाज


# मूलचन्द्र गौतम

पुरानी कहावत है कि वहम का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं है।गूगल पर सर्च करने वाले हकीम लुकमान का कोई नामोनिशान नहीं ढूंढ पाये ।जरूर हकीमजी अपने जमाने के मशहूर आदमी रहे होंगे खोजा नसीरुद्दीन की तरह के ।आदमी की नब्ज देखते ही उसके बाहर भीतर का हाल जान लेने वाले।अगर उनका कोई खानदानी शफाखाना होता तो पूरी दुनिया की भीड़ वहाँ दवा और शफा के लिये लाइन लगा रही होती ।

आजकल तो इलाज से ज्यादा महंगे पैथोलॉजी के टेस्ट बैठते हैं।डॉक्टर भी उनमें इतना कमीशन बना लेते हैं कि साल भर में करोड़पति हो जांय।ऊपर से तुर्रा कि कोई उनके इलाज पर उंगली भी न उठाये।लोगों के घर मकान बिक जायें इलाज में उन्हें कोई मतलब नहीं ।कफ़न खसोट भी शर्मा जाय उनकी इन अमानवीय हरकतों से ।इतने पर भी क्रूर कसाई कातिल का दर्जा भगवान से ऊँचा।

खैर हमें फिलहाल मतलब है हकीम लुकमान से है जिनके पास सारी बीमारियों के माकूल इलाज थे सिवाय वहम के ।उन्हें मालूम था कि उनसे पहले कन्हैया जी  महाभारत के युद्ध में खुल्लमखुल्ला घोषित कर चुके हैं संशयात्मा विनश्यति तो वे क्यों खाहमखाह जोखिम उठायें ।महाभारत की लड़ाई में जितने वहमी थे सब किसी न किसी तरह मारे गये तो अब कैसे बच पायेंगे ।इसलिए हकीम जी ने दरवाजे पर साफ साफ लफ्जों में लिखवाकर टँगवा दिया है कि वहम के शिकार कृपया कोई सम्पर्क न करें ।जैसे उधार प्रेम की कैंची है वैसे ही वहम इलाज की छुरी है।बाबा ने ऐसे ही थोड़े लिख दिया है कि बिनु विश्वास भगति नहिं ।तभी से हर नायक को भक्तों से ज्यादा अंधभक्त प्यारे हैं जो हर पल उस पर तन मन धन कुर्बान करने को तैयार रहते हों ।इसीलिए विश्व की तमाम पार्टियों ने अपने अश्वमेध में कश्मीर से कन्याकुमारी यानी उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक  भीतर तक  छिपे इन वहमी आस्तीन के सांपों को बाहर का रास्ता दिखा दिया है।जनमेजय ने पिताजी से सबक लेकर नाग यज्ञ में यही किया था ।

वहम से भी ज्यादा खतरनाक बीमारी अहम की है ।इसका इलाज भी भगवान के अलावा किसी के पास नहीं ।कहावत है कि ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती ।असंसदीय भाषा में भदेस लोग लाठी के स्थान पर जूते का प्रयोग करते हैं ।उससे भी निम्न स्तर के लोग फटे जूते का जिससे चोट कम लगती है आवाज ज्यादा होती है।इससे आस पास के लोग भी चौकन्ने हो जाते हैं लेकिन जब लोगों को  अदृश्य भगवान का कोई डर नहीं तो क्यों मानें इस सेल्फ सैंसर को ।इसलिए बेधड़क सड़क पर निर्दोषों को रौंदते हुए चलते हैं।कहते हैं कि रावण के रथ के मूवमेंट से धरती हिलती थी ।इनके हिलने डुलने भर से समस्त भूगोल खगोल विकम्पित होने लगते हैं।यही कारण है कि तमाम  धर्मालयों में अपार भीड़ के बावजूद वाकई भगवान से भयभीत भले लोग अल्पसंख्यक हुए जा रहे हैं।
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