Tuesday, February 6, 2018

पकौड़े ,भिखमंगई और शनिदेव

व्यंग्य


# मूलचन्द्र गौतम
करम फले तो सब फले भीख ,बंज व्यौपार .यानी आप व्यापार की तरह भीख मांगकर और कर्जा मारकर भी अरब खरबपति हो सकते हैं . इस मामले में कुछ महान आत्माओं ने चार्वाक को भी पीछे छोड़ दिया है .अंग्रेजीदां समाज में भी कुछ चार्वाकवादी रहे हैं जिन्होंने ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत की तरह हमेशा खुश रहने के लिए  ईट ,ड्रिंक एंड बी मेरी का फार्मूला ईजाद किया था .दास मलूका भी चार्वाक के परमप्रिय चेले थे जिन्होंने उनके मत का प्रचार डटकर किया और तुलना में शंकराचार्य के वेदांत को पीछे छोड़ दिया .चार्वाक के चेलों ने वेदांत का भाष्य बे दांत कर दिया जो अजगर और मगरमच्छ की तरह शिकार को बिना चबाये सीधे निगल जाता है और फिर लोट पोट होकर पचाता है .कलिकाल में वे सब मनुष्य योनि में अवतरित हो गये हैं .
 पहले जमाने में ऋण साहूकार और जमींदार देते थे जिनके कारिंदे वसूली में खाल तक खींच लेते थे .कलिकाल में उनकी जगह सरकारी बैंकों ने ले ली है जो कर्जा हैसियत के हिसाब से देते हैं . हर झंगे पतंगे को विजय माल्या के बराबर कर्ज नहीं मिल सकता . आत्महत्याओं के पाप से बचने के लिए किसानों का कर्ज सरकार माफ़ भी कर देती है क्योंकि वे दिवालिया होने के बजाय जान देना बेहतर समझते हैं .उन्हें नहीं पता होता कि दिवाली की तरह दिवालिया होना कितना बड़ा शुभ लाभ है .लक्ष्मी के लाल ही  माया के इस रहस्य को जानते हैं .
भारत में  पुराने जमाने में अधम समझी जाने वाली नौकरी चाकरी की कोई इज्जत नहीं थी क्योंकि वह मालिक की गुलामी थी .आजादी सिर्फ उत्तम खेती में मिलती थी .जैसे हीगेल को मार्क्स ने शीर्षासन कराया था ठीक उसी तरह सरकारी नौकरी के दिन फिरे .उत्तम खेती अधम हो गयी और अधम नौकरी उत्तम .हरामखोरी का खुला लाइसेंस.ऊपरी आमदनी के जलबे अलग से .फ़ाइल आगे सरकाने के एवज में नोटों की गड्डियों का वजन जरूरी है .कफनखसोट रिश्वतखोर किसी से नहीं डरता . कभी लेकर फंस जाओ तो देकर छूट जाओ . नौकरी में सस्पेंशन तो इनाम है .जितनी बार सस्पेंड उतनी बड़ी नरमुंडों की माला .
तभी से रोजगार का मतलब सिर्फ और सिर्फ सरकारी नौकरी हो गया .छोटे छोटे किसानों की संतानें होरी और हल्कू बनने की बजाय जमीन बेचकर घूस देकर गोबर की तरह चपरासी होना परम सौभाग्य मानने लगीं .पुलिस में सिपाही और प्राइमरी स्कूल की मास्टरी प्रधान सेवक की चाकरी से बेहतर है .जबसे प्रधान सेवक जी ने चाय और पकौड़े की प्रतिष्ठा बढाई है तबसे यह युवाओं का मनपसंद रोजगार बन गया है .  इस मामले में कचौड़ी भी पकौड़ी का मुकाबला नहीं कर सकती . पकौड़े और पतौड़े का फर्क ही जिन्हें नहीं मालूम वे इस मैच के रेफरी बने फिर रहे हैं .हिंदी में पकौड़े और पकौड़ी की जितनी वैरायटियां उपलब्ध हैं उतनी अंग्रेजी में सात जनम में नहीं हो सकतीं . उनके अंकल में तमाम रिश्ते नाते और स्नेक्स में सब कुछ समा जाता है .गरीबों को सिर्फ बरसात के मौसम में पकौड़ों की चाहत जगती है जबकि दारुकुट्टे शाम होते ही भजिया पकौड़ों की तलाश में लग जाते हैं ,उनके दिमाग और जीभ में खुजली मच जाती है . मधुशाला के लेखक की सबसे बड़ी असफलता ही यह रही कि उसमें भजिया पकौड़ों का जिक्र ही  कायदे से नहीं हुआ . इसकी कमी बाद में नीले पीले साहित्य ने पूरी की .
भांग की पकौड़ी का स्वाद जिन्होंने नहीं चखा वह  जीते जी स्वर्गीय होने के सुख से वंचित हैं  .जिस देश में वेश्यावृत्ति से लेकर भिक्षावृत्ति तक व्यापार में ससम्मान शामिल रही हैं वहाँ पूर्ण बेरोजगार कोई हो ही नहीं सकता . देह भी जहाँ व्यापार हो  वहाँ क्या कमी हो सकती है .सवाल सिर्फ स्तर का है .स्टार्ट अप का मतलब अम्बानी ,अडानी हो जाना नहीं है ,कई भिखारी मरने के बाद इनसे ज्यादा बड़ी पूँजी देश को सौंप जाते हैं .एक माननीय ने तो पिछले दिनों छिछले तरीके से फौजियों की शहादत को भी व्यापार बता दिया था .यानी मरना भी मुनाफे का सौदा हो सकता है बलात्कार की तरह .यह अलग तरह का वेदांत है .जहाँ सब कुछ मिथ्या है ,माया है .
 भारत में रोजगार की तलाश को शनिदेव ने चुटकियों में हल कर दिया है .शनि के ठेकेदार अरबों में खेल रहे हैं .केवल एक दिन की मेहनत बाकी दिन मौज मस्ती . लोटे में जरा से तेल और जंग लगे लोहे की पत्ती के कमाल से हजारों के वारे न्यारे होते हैं .घर घर घूमने के बजाय किसी भी भीड़ भरे चौराहे पर काली चादर बिछाकर यह स्टार्ट अप शुरू हो सकता है .हर डरा हुआ दुनियादार आदमी चुपचाप बिना कुछ कहे शनि को पत्ती देता है . चोरी चकारी का भी कोई डर नहीं .कोई चोरी करेगा भी तो कोढ़ी कलंकी हो जायेगा .इसीलिए शनि शिगनापुर में न कोई दरवाजा ,न ताला .  देश के युवाओं के लिए यह रोजगार पकौड़े और भिखमंगई से हजार गुना बेहतर है .हर्र लगे न फिटकरी रंग चोखा ही चोखा .शनि का एक दिन तिरुपति और शिरड़ी के साईं बाबा के हफ्ते पर भारी पड़ रहा है .इसी दबाब में सरकार को पांच दिन का हफ्ता लागू करना पड़ा है .जय शनिदेव ...

# शक्तिनगर, चन्दौसी ,संभल 244412   मोबाइल 9412322067

Wednesday, January 17, 2018

अंकल चिप्स ,वोदका और भारत माता



# मूलचन्द्र गौतम
भारत का आलू ,गन्ना और गेहूं उत्पादक किसान हतप्रभ है कि उसकी मेहनत का कंद मूल फल सड़कों पर फेंका जा रहा है जबकि देश में अंकल चिप्स ,वोदका ,रम और आशीर्वाद की खपत निरंतर बढ़ रही है .ठंडा मतलब कोकाकोला और बिसलेरी धुर गाँव देहात तक पंहुच चुके हैं .अंडे, चिकन और कबाबों  के चखने के बिना शामें रंगीन नहीं हो रही हैं .यह आर्थिक सुधारों का असर है कि  हिन्दुओं में धार्मिक और सांस्कृतिक नवजागरण अप्रासंगिक हो चुके हैं . अहिंसक देवी जागरणों  तक में फ़िल्मी धुनों और दारू- मुर्गों की बहार है . सामूहिक बलात्कार अपराधियों में  फैशन और हाई स्टैण्डर्ड का मानक बन चुका है .यानी सात्विक देवी की जगह तामसिक देवी देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है .वो तो भला हो गणेश और हनुमानजी का जो अभी तक घूस के लड्डुओं  के शाकाहार तक ही सीमित हैं  और उत्तर आधुनिक नहीं हो पा रहे हैं वरना इनके भक्त रक्त की नदियाँ बहा देते और मांस के पहाड़ खड़े कर देते .भले ही राजेन्द्र यादव जैसे मतकटों ने हनुमानजी को आदिम आतंकवादी बता कर बदनाम किया था .
 भारत का  औसत देहाती किसान अभी तक होरी और हल्कू की नियति से आगे नहीं बढ़ा है .एनसीआर और बड़े बड़े शहरों में कुछ किसानों ने जमीनें बेचकर जरूर कुछ दौलत जमा कर ली है और बहुओं को हेलिकॉप्टर से विदा करवाकर लाने में खर्च कर दी है लेकिन बाकी मजदूरी करके पेट पाल रहे हैं .गाय बैलों और अन्य पशु पक्षियों की उनकी दुनिया अलविदा हो गयी है .प्रेमचन्द की जगह अंग्रेजी का गुलशन नंदा चेतन भगत युवा हृदय सम्राट हो चुका है .लिव इन का दौर दौरा है .

 वोट जुगाड़ने में माहिर हमारे  जन गण मन अधिनायक  और उनके समर्पित कार्यकर्ता  अभी तक खुल्लमखुल्ला देश और विदेश के  गिने चुने अल्पसंख्यक अमीरों के हिमायती दिखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं क्योंकि सत्ता  की कुंजी बहुसंख्यक गरीबों के हाथों में है .यह चाबी हासिल करने का एकमात्र हुनर गरीबी हटाने के जादू में है जिसे पाकर वे पांच साल तक निर्भय होकर अमीरों की खिदमत में जी जान से जुट जाते हैं .इसीलिए वे  अगले चुनाव तक किसानों और मजदूरों की आमदनी दोगुनी करने का आश्वासन देकर उन्हें सम्मोहित करने की सफल कोशिश करते हैं ताकि उनका वोट  विपक्ष की सेंधमारी से सुरक्षित रहे .यों भी विपक्ष भी किसानों को आलू चिप्स और वोदका बनाने का अधिकार नहीं देना चाहता .किसानों की सहकारिता को बढ़ाने के बजाय सबकी दिलचस्पी कारपोरेट की ताकत बढ़ाने में है जो उन्हें मोटा अपारदर्शी चुनावी चंदा देते हैं जिसके द्वारा वे गरीबों की गर्दन का फंदा कसते जाते हैं और जोर शोर से  नारा लगाते हैं भारतमाता की जय .नेताओं और कारपोरेटों की यह चमचमाती चौखम्भा भारतमाता जब राजपथ और जनपथ से गुजरती है तो  सुमित्रानंदन पन्त की  यह गरीबनी ग्रामवासिनी भारतमाता नागासाकी और हिरोशिमा की आशंकाओं से त्रस्त होकर अपनी सौ करोड़ निर्धन ,नग्न तन संतानों को डरकर अपने आंचल में छिपा लेती है .

# शक्तिनगर,चन्दौसी,संभल 244412 मोबाइल-9412322067