Thursday, November 13, 2014

सुधीश पचौरी

मोदी की बदलती छवि पर मुग्ध आलोचक सुधीश पचौरी
बलि जाऊं लला इन बोलन की
 बाबा नागार्जुन ने सुधीश पचौरी  के भविष्य को पालने में ही पढ़ लिया था . इस उत्तरआधुनिकता के पुरोधा ,मीडिया विशेषज्ञ को विमर्श से मनमाने निष्कर्ष निकालने में महारत हासिल है .दिल्ली विश्वविद्यालय के चार साला स्नातकीय कोर्स के अंधसमर्थक इस अरुण जेटली ने भाजपा के सत्ता में आते ही केतली खौलती देखकर जो पलटी मारी तो वह आज तक ठंडी नहीं हुई है .
उत्तर आधुनिकता की गहरी जड़ें अवसरवाद में धंसी हुई हैं .कहीं भी पाठ,विश्लेषण और विमर्श के नाम पर पलटी मारने की सुविधा –अनेकान्तवाद-स्यादवाद –बहुलता के नाम पर .

आज 13 नवम्बर के अमर उजाला में सुधीश पचौरी की  –मोदी की बदलती छवि और पस्त होते आलोचक –टिप्पणी पढकर इस धारणा की पुष्टि हुई .अशोक चक्रधारी का यह विलोम पूरी धज के साथ चक्रवर्ती मोदी के ध्वजारोहण का अग्रगामी अश्व बना दौड़ता हुआ दिखाई दिया .अपने चौकों –छक्कों से इसने पूरा मैदान छेक दिया .भारतरत्न को भी इस कला में इस महारथी ने पीछे छोड़ दिया .’मोदी के निंदकों को काठ –सा मार गया है .उनकी बोलती मोदी ने बंद नहीं की ,जनता ने की है ‘-जय हो ब्रह्मर्षि की  इस चरण वन्दना की . अब अश्वमेध का पौरोहित्य तो पक्का समझो .तुम्हारा यह पतन होना ही था –धुरंधर .

Wednesday, November 12, 2014

नये बीरबल की खोज

# मूलचन्द्र गौतम
अकबर के साथ किसी एक आदमी का नाम जुडा है तो वह बीरबल है .उन्हीं के किस्से- कहानी लोक में मशहूर हैं .बीरबल न होता तो अकबर का कोई नामलेवा न होता .लोग तो अकबर से ज्यादा  अक्लमंद बीरबल को मानते हैं .पता नहीं ये बीरबल उस जमाने चाय पीता था क्या ?जो हर समय उसे नई –नई तरकीबें सूझती रहती थीं .

भारत एक खोज की तर्ज पर आजकल बीरबल की खोज जारी है .जैसे चुनाव में जीत की गारंटी के लिए बाहुबली की तलाश हर दल के नेताओं को रहती है ,उसी तरह हर नेता अपने साथ एक बीरबल भी रखता है ,जिसका काम नेताजी की छवि को हर तरह से चमकाना होता है .एक तरह से यह बीरबल राजा और प्रजा के बीच सौहार्द और सम्बन्ध कायम करने का विश्वसनीय माध्यम होता है .राजतन्त्र में यह काम अक्सर अक्लमंद ,हंसोड़ विदूषकों के जिम्मे होता था .कई बार जब राजा उनके इशारों को समझ नहीं पाता था तो उन्हें आँखों में अंगुली डालकर समझाना पड़ता था .नबावी दौर में भी यह काम जारी रहा .
अंग्रेजों ने अपने इन वफादार बीरबलों को बड़ी –बड़ी जायदाद और इनाम –इकराम बख्शे थे .रायबहादुर –रायसाहब जैसे ख़िताब इन्हीं  जैसों के लिए थे .आजादी की लड़ाई में यह काम कवियों और शायरों ने किया था .इसीलिए गांधीजी इन्हें बड़ी इज्जत देते थे . गुरुदेव और राष्ट्रकवि जैसी उपाधि तक उन्हें हासिल थी .
चाचा नेहरू जरा नजाकत –नफासत पसंद थे .बीरबलों की उन्हें जरूरत नहीं थी लेकिन राष्ट्रवादी एक- दो कवि उन्होंने भी पाल रखे थे .चीन युद्ध में इनका वीररस किसी काम नहीं आया था और देश की गरीब ,साधनहीन सेना पिट गयी थी .तब बीरबल की जगह मेनन को बलि का बकरा बनना पडा था .
उसके बाद अनेक बीरबल हुए हैं जिनका नाम जनता जानती है ,इसलिए बताने की जरूरत नहीं .उनमें कई तो वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं .आजकल की भाषा में चुनाव में जमानत जब्त हो जाना ही वीरगति को प्राप्त होना है .इसीलिए हर झंगा –पतंगा शहीद कहलवाना पसंद करता है .कई तो  खुद ही अंगुली में आलपिन चुभाकर शहीद हो जाते हैं .
तो किस्सा –कोताह यह कि देश को नये बीरबल की जरूरत है . जो लोग खुद को इस पद के योग्य समझते हों आवेदन करें .वेतन ,बंगला ...वगैरह योग्यतानुसार।
# शक्तिनगर, चन्दौसी, संभल 244412
मोबाइल 8218636741

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Sunday, November 2, 2014

पीला धन



पीला धन 
# मूलचन्द्र गौतम

जब से देश में काले धन की चर्चा शुरू हुई है ,पीला धन शर्म के मारे जमीन में धंसा जा रहा है . काले धन के मालिकों से सवाल है कि आम ,सरसों पर फूल आने बंद हो जाएँ तो क्या उन्हें काले धन से पैदा किया जा सकता है ? इतिहास गवाह है कि रावण से ज्यादा काला धन तो आज तक किसी के पास नहीं हुआ ,न होगा फिर भी आज तक कोई दूसरी सोने की लंका नहीं बन पाई ?हनुमान ने इस  पीली सोने की लंका में आग लगाकर इसे काली करने की कोशिश की थी लेकिन यह आज तक काले धन की सुरक्षित जगह है .यह बात अलग है कि अब इसकी राजधानी श्रीलंका से हटकर स्विटजरलैंड हो गयी है ताकि कोई हनुमान उसमें  फिर से आग न लगा सके .
भारत में गोधन ,गजधन, बाजिधन ,रतनधन की टक्कर पर गरीब का संतोष धन भारी पड़ता था ।वर्तमान में विश्व में  भारतीय जनता से ज्यादा सोनाप्रेमी कोई जनता नहीं है . सोना खरीदने में असमर्थ होने पर गरीब आदमी चांदी और गिलट से भले संतुष्ट हो जाता था लेकिन सोना उसकी पहली पसंद थी .राजा –महाराजा हीरा ,मोती,माणिक रखते थे लेकिन भगवान का ऐश्वर्य सोने में ही रहता था .लक्ष्मी गणेश तो सोने में ही बसते थे ।स्वर्ण मन्दिर की कल्पना तिरुपति और शिरडी तक फ़ैल रही है .अब शंकराचार्य तक का धंधा पिट चुका है .उन्हें कहीं से भी पीला धन प्राप्त नहीं हो रहा .जबकि अल्लू पल्लू कथावाचकों की बल्ले बल्ले है ।मालामाल हैं।अम्बानी ,अडानी से टक्कर ले रहे हैं।
धंधे में कल के लौंडे झंडे गाड़ रहे हैं .बीवियों को करोड़ों -अरबों के मकान –जहाज गिफ्ट दे रहे हैं .शादी ब्याहों में धन की बौछारें हो रही हैं ।देसी गर्ल की नकल को विदेशी गर्ल ने पीट दिया है।वेडिंग डेस्टिनेशन में इटली पहली पसंद है।वैडिंग डिजायनर सब तय कर रहे हैं ।यह किसी मामूली आदमी के बस का काम नहीं।
लगता है देश में काले और पीले धन के बीच महाभारत छिड़ चुका है और सुप्रीमकोर्ट संजय की तरह तटस्थ होकर धृतराष्ट्र को युद्ध का ताजा हाल सुना रहा है . पीले धन को रखने का भारी झंझट है ।बैंक के लॉकरों पर कभी छापा पड़ सकता है।प्रतीक्षा है कि आखिर में वासुदेव निर्णय दे देंगे कि काले और पीले धन में कोई फर्क नहीं है .खोजना ही है तो सफेद धन की खोज की जाय ताकि देश को फिर से सतयुग में लाया जा सके .लक्ष्मी के वाहन उलूक राय की भी यही राय है कि देश में कालेधन की वापसी के सारे प्रयत्न छोडकर सफेद धन की खोज की जाय .
बस तभी से नेताओं के कपड़ों की सफेदी बढती जा रही है-पल –प्रतिपल।
बॉलीवुड और क्रिकेट ने सारे पुराने धंधों को पीट दिया है।हथियारों की दलाली में तो मुहावरे की तर्ज पर चांदी ही चांदी है।ड्रग्स का नया धंधा उफान पर है ।झंगे पतंगे के पास चार्टर्ड प्लेन हैं जिनसे जब जहां चाहे उड़कर जा सकते हैं।फिलहाल मॉरीशस पहली पसंद है।एक एक के पास अनेक नागरिकताएँ हैं ।गरीब आदमी एक भी निभाले तो बहुत है ।
#शक्तिनगर,चन्दौसी, संभल 244412
मोबाइल 8218636741

Saturday, November 1, 2014

चश्मा ,नंगी आँखों का सच और इतिहास



इतिहास सत्ता का प्रोपेगेंडा मात्र है –जर्मन नाटककार अर्नेस्ट टालर.
आखिर प्रोफेशनल इतिहासकारों के बाद साहित्यकारों को ही इतिहास और राजनीति के प्रेत क्यों परेशान करते हैं ?
 आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और जयशंकर प्रसाद को क्या जरूरत थी –इतिहास के घने जंगल में घुसने और भटकने की .आचार्य चतुरसेन और वृंदावनलाल वर्मा से लेकर भगवान सिंहतक भटक रहे हैं लेकिन अंतिम रूप से कुछ तय नहीं हो पा रहा कि इतिहास का सत्य और तथ्य क्या है ?फिर कैसे तय होगा इतिहास ?रोमिला थापर और पी एन ओक के बीच का झगड़ा है सारा .शास्त्र और शस्त्रों से भी तय नहीं हो पाया यह झगड़ा .विभाजन ,मुतबातिर दंगों  और बावरी मस्जिद विध्वंस से भी सुलझ नहीं  पाई यह गांठ .
बोतल में बंद यह जिन्न फिर सामने आकर खड़ा है –जबाव पाने को .संघी इतिहासकारों ने पुराने  अस्त्र –शस्त्र संभाल लिए हैं .सास भी कभी बहू थी की नायिका सुलझाएगी इस अबूझ पहेली को ?डर है कि अबकी बार कहीं ताजमहल को ढहाकर शिवमन्दिर निर्माण का संकल्प न ले लिया जाय ?अकबर और राणा प्रताप .औरंगजेब और शिवाजी फिल्मों और टीवी सीरियलों से बाहर न निकल पड़ें कहीं ?