Tuesday, October 15, 2013

जूतों की कारसेवा

जूतों की कारसेवा

*मूलचन्द गौतम
पाहुन की पनही भी आदरणीय होती है .उनके आने पर न केवल पैर धोये जाते हैं बल्कि उनके जूतों की भी पूरी सार –संभाल की जाती है .दूल्हे के जूतों को चुराने का एकाधिकार सिर्फ सालियों का होता था वो भी मजाक के बतौर नेग के लिए ताकि पाहुन की बर्दाश्त की पहचान हो जाय .कुछ पाहुन तो घर से चलते ही अपने जूतों को लेकर सतर्क हो जाते थे .उनके पैर भले घायल हो जाएँ ,जूतों को खरोंच भी न आये .कुछ तो लाठी पर लटकाकर चलते थे और गाँव के सिमाने पर ही उन्हें धारण करते थे . तेल पिये चमरौधे जूते से सकेल निकले ,मुख ज्यों उधार खाये के ऐसे ही  पाहुन के चरणों को पूजने से मना करने के कारण ही निराला जी को पुत्री वियोग सहना पडा था .क्या अब इन स्थितियों में कोई  बुनियादी फर्क आ गया है .दहेज का दानव न जाने कितनी बेटियों को रोज जिन्दा निगल जाता है और हम  निरीह कुछ नहीं कर पाते .
जूतों की कहीं इज्जत देखनी हो तो तिरुपति जाइये या किसी गुरुद्वारे में .बड़ी साज-संभाल से रखे जाते हैं मुफ्त .यही उन उपेक्षितों की कारसेवा है .कोई तनखैया घोषित कर दिया जाता है तो ये पददलित और भी आदरणीय हो उठते हैं .किसी –किसी के भाग्य में मुख्यमंत्री –मंत्री भी आ जाता है .बाकि जगहों में इनकी और इन्हें धारण करने वालों की बड़ी बेइज्जती होती है ,सुरक्षा के लिए पैसे अलग देने पड़ते हैं .इसीलिए दक्षिण भारत में कोई जूते पहनकर ही नहीं जाता –मन्दिर और तीर्थों में .सबरीमाला के कल्लू नंगे पैरों पूरा जहाँ नाप लेते हैं .उत्तर भारत में तो मन्दिरों से जूते- चप्पल ऐसे उठाये जाते हैं जैसे आजकल दुपहिया और चौपहिया .देखते रह जाओगे ?पहचान तक न पाओगे अगर थोड़ी देर में आपके ऐन सामने से निकले तो भी .क्या हुनर है और क्या हुनरमंद ?
कोई जमाना था जब जूतों की कोई कीमत नहीं थी .आज तो जूता ही उतने में आता है जितने में पहले भैस आ जाती थी .लोग बड़ी शान से बताते हैं जूतों की कीमत और ब्रांड .पहले गरीब टायरसोल की चप्पलें पहनकर जिन्दगी काट देता था ,अब उसकी जगह प्लास्टिक ने ले ली है .अच्छे जूते की तमन्ना सिर्फ भगवान की कृपा से पूरी हो सकती है .यही होरी का गोदान है आज के जमाने में .
लोगों को सड़कों पर कारों को हसरत भरी निगाहों से देखना कोई कम यातनाप्रद नहीं होता .भला हो फिल्मवालों का जो उनकी कुछ तो इच्छा पूरी हो ही जाती है .पुलिस  को मोबाइलों ,मोटरसाइकिलों की चोरी को तो अपराधमुक्त कर देना चाहिए .आखिर नागरिक का कोई तो अधिकार होता है देश की सम्पत्ति पर .अब सरकार बांटेगी बीपीएल से नीचे वालों को .पहले ही बंट जाते तो अपराध का ग्राफ मंहगाई की तुलना में तो कम बढ़ता .चलो देर आयद दुरुस्त ...जिन्हें नहीं मिलेगा वे छीनेंगे नहीं तो क्या करेंगे ?उनकी तो जैसे कोई सोसाइटी ही नहीं ?अब एक अदद जूते के लिए आदमी कारसेवा करेगा क्या ?फिर कहेंगे नक्सलवाद देश के सामने सबसे बड़ी समस्या है ?
*शक्तिनगर ,चंदौसी ,संभल उ.प्र.२४४४१२  मोबाइल-९४१२३२२०६७

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Thursday, October 3, 2013

विमर्श :शौचालय क्रांति

# मूलचन्द्र गौतम
देश में अब तक हरित ,श्वेत ,रक्त ,संचार इत्यादि अनेक प्रकार की क्रांतियाँ हो चुकी हैं .अब जरूरत है शौचालय क्रांति की .गांधीजी ने बहुत पहले छुआछूत विरोधी आन्दोलन के सिलसिले में इस क्रांति की जरूरत को महसूस कर लिया था ।किसी एक जाति के लोगों का ही जिम्मा क्यों हो दूसरों की फैलाई हुई गन्दगी को साफ करना।यह व्यक्तिगत के साथ सामूहिक जिम्मेदारी होनी चाहिए।फ्लश सिस्टम ने इसे आसान बनाया लेकिन गटर और सड़कों की सफाई ?सदियों से दलितों की मानसिकता की जड़ में जमी हीनता ,कुंठा इतनी आसानी से तो नहीं निकल जायेगी?
.ईश्वर-अल्ला तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान -से गांधीजी का आशय यही था कि सभी धर्मों का सार है -शुचिता-पवित्रता ।यम नियम के पालन और आचरण ने ही गांधीजी को महान बनाया । हरिजन और वैष्णव जन का सामंजस्य ही उनका परम लक्ष्य था ।आगा खां पैलेस में जेल काटते हुए कस्तूरबा से उनका झगड़ा खुद शौचालय की सफाई को लेकर हुआ था जिसमें गांधीजी की जिद की जीत हुई थी  ।देवता  यों भी गंदगी में वास नहीं  करते .आज भी देवता फाइव स्टार से कम सफाई में नहीं रुकते .इसीलिए अब आधुनिक स्थापत्य में मॉड्यूलर किचेन की तरह मॉड्यूलर बाथरूम पर जोर है।एक हमारे भाई साहब को तो हिन्दुस्तानी तरीके के उकडूं बैठने वाले शौचालयों तक से नफरत है .उनका अटल सिद्धांत है कि किसी आदमी का स्तर जांचना हो तो उसका बाथरूम देख लो ।जैसे शाकाहारी लोग प्याज तक की गंध बर्दाश्त नहीं कर पाते वैसी ही हालत कमोड के शौकीनों की होती है .वे कहीं भी घुसने से पहले यह पूछना नहीं भूलते कि वाशरूम में इंग्लिश सीट  है कि नहीं ?

सरकार ने देहातों तक में सिर पर मैला धोने की प्रथा को बंद करने के लिए शौचालयों के निर्माण को प्राथमिकता दी है .शुष्क शौचालय लगभग खत्म हैं।देहाती महिलाएं पहले शौच के बहाने खेतों में बैठकर घंटों पंचायत करती थीं .किसी आदमी के आते ही उसे गार्ड ऑफ ऑनर देती थीं जिसका उल्लेख राग दरबारी तक में बड़ी शान से हुआ है।घरों में शौचालयों के निर्माण से इस कुप्रवृत्ति पर रोक लगी है .बलात्कार की घटनाएँ भी कम हुई हैं .शौच से बायोगेस प्लांट लगाकर लोगों ने क्रांति कर दी है .ऑर्गेनिक फ़ूड का नया धंधा उठान पर है ।
मानव विकास सूचकांक के मानकों के अनुरूप मल मूत्र विसर्जन के वैश्विक तंत्र और प्रबंधन की दृष्टि से भारत निम्नतम स्तर पर है ।सबै भूमि गोपाल की तरह सर्वर्त्र विसर्जन की आजादी ने यह कमाल कर दिया है।गधे के पूत यहाँ मत मूत की इबारतों से गधों को कोई फर्क नहीं पड़ता ।भुगतान पर इन सुविधाओं को हासिल करना आम जनमानस में अभी नहीं पनपा है ।यूरोप यात्रा में मेरा यह अनुभव और पक्का हुआ ।मुफ्त का चन्दन हमें हर जगह चाहिए।सब्सिडी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।शौचालय निर्माण की सब्सिडी में भृष्टाचार और घपले ने यह सिध्द कर दिया है कि यह हमारे खून में है।भारत में केवल सिक्किम अकेला राज्य है जहाँ सार्वजनिक मल मूत्र विसर्जन और प्लास्टिक का उपयोग सख्ती से वर्जित है। काश ऐसा पूरे देश में लागू होता ।
हर  क्रांति का सबसे बड़ा फायदा मध्यवर्गीय सवर्णों ने उठाया है .अब जूतों की ज्यादातर दुकानें इन्हीं की हैं .जातिगत पेशे समाप्तप्राय हैं।अब सफाई कर्मचारी बनने में किसी की हेटी नहीं भले एवजी में आदमी रख दें शिक्षकों की तरह ।बड़े बड़े क्वालीफाइड युवक चपरासी की सरकारी नौकरी की लाइन में हैं। पंडित विन्देश्वर पाठक ने सुलभ शौचालयों से क्रांति कर दी है .देश भर में एक नयी संस्कृति विकसित की है ।इतना ही  नहीं उसे इंटरनेशनल बनाकर संयुक्तराष्ट्र संघ से मान्यता भी हासिल की है। लोगों को रोजगार दिया है ।अच्छा हो कि इस कार्य का  पूरे देश का ठेका उन्हें दे दिया जाय ।
 शौचालय क्रांति के विरोधी जानते हैं कि इससे  उन्हीं लोगों को लाभ होगा जो सदियों उनके जूतों तले कुचले जाते रहे हैं .अब इन मूढों को कौन समझाए कि जमाना बदल रहा है .धंधा देखो -जाति और धर्म में क्या रखा है ?
# शक्तिनगर, चन्दौसी, संभल 244412
मोबाइल 8218636741

Wednesday, September 18, 2013

लल्लनटॉप


लल्लनटॉप
# मूलचन्द्र गौतम
जब से टीपू भैया ने अपने छोटे बहिन-भाइयों को पास होने की ख़ुशी में लेपटॉप बांटे हैं ,तब से  सारे देश के बच्चों ने बस एक ही रट लगा रखी है –भैया मैं तो चन्द्र खिलौना लैहों .अब हर भइये की औकात नहीं है ऐसा खिलौना देने की सो झूठे ही बहाना देकर बहला देने की ठानी है .चुनाव जीतने के बाद कौन गरदन पकड़ने आएगा ?एक पौवे में खुश हो जाने वाले लफंगों ने भी अब बोतल के साथ अललटप्पू की रट लगा दी है .बुड्ढे-बुड्ढी भी साड़ी-कम्बल के बिना मानने नहीं .हरेक को कुछ न कुछ चाहिए वोट के
बदले में .पिछली बार नकली नोट पकड़ा दिए थे किसी ने तो अबकी बार रेजगारी की डिमांड है .
कई घरों में  पांच-पांच लेपटॉप इकट्ठे हो गये हैं सो उन्हें राशन की चीनी की तरह बेचा जा रहा है .चीनी मंहगी बिकती थी और ये लल्लनटॉप सस्ते में .चाचा रोज ग्राहक ढूंढकर लाते हैं .उन्होंने ही तय किया है कि दो लल्लनटॉप बेचकर एक गाय खरीद लेंगे .परेशान हैं वे चुन्नू से कि हर समय लल्लनटॉप को गोद में लिए क्यों बैठा रहता है ?इंटरनेट पर जाने क्या ऊलजलूल –फिजूल देखता रहता है .मोबाइल ही क्या कम था हरामखोरी के लिए .जब देखो गाने ..इतना संगीतप्रेमी देश शायद ही कोई होगा ?पागल कर दिया है .क्या बस,क्या ट्रेन सब जगह गाने ही गाने .जैसे कोई दूसरा काम ही नहीं .उनके जमाने में गाना चलता था –तन डोले मेरा मन डोले ,मेरे दिल का गया करार रे ..अब कौन बजाये बांसुरिया.अब वे देखते हैं कि घंटी बजते ही कान पकड़े खड़े हैं घंटों .अगर यही सूचना क्रांति है तो भगवान बचाए इस क्रांति से जिसने शांति ही भंग कर दी है .मोबाइल ने तो अपराधों में क्रांति ला दी है .मिस्ड कालों ने जीना हराम कर दिया है .आनर किलिंग में मोबाइल की भूमिका कोई नहीं देख रहा .अब तो मोबाइल दंगों और चुनावों में भी अहम भूमिका निभाएंगे .नेट से सब कुछ हाईटेक हो जायेगा .रावण की तरह चुनावी युद्ध मायावी होगा . भ्रष्टाचार का रक्तबीज मारे नहीं मरेगा .नाभि के अमृत का पता बताने वाला विभीषण भी दलाली मांगेगा .देवी का अवतार भी बिकाऊ होगा .
भूमंडल में कोहराम मचा है .देवभूमि में सुर –असुर की पहचान मुश्किल हो रही है .दोस्त –दुश्मन सब गड्डमड्ड हैं .भेड़ को हर घाट पर मुंडना है .इसलिए जनता का नारा है –सरकार तेल दे तो पल्ले में ले –भले ही नीचे से निकल जाये .लल्लनटॉप के लिए बिजली की मांग करनेवाले भिखमंगों को कोई संतुष्ट नहीं कर सकता .हिटलर ही इन्हें ठीक करेगा .
अब किस –किस को साधें ?विपक्ष अलग हल्ला मचाये है .केंद्र की चिल्लपों और कोर्ट की मारामारी अलग .कुल मिलाकर अगला चुनाव बेहद खर्चीला होगा .अधिसूचना से पहले ही सरकारी खजाने को भरपूर लुटाने की तैयारी है तो भी जेब से जायेगा सो अलग .विदेशी प्रचार कम्पनियों ने भी अबकी टेंडर का रेट बढ़ा दिया है .सब कुछ हाईटेक जो हो गया है .सोशल मिडिया वाले अलग खून पियेंगे .दंगा ,सिक्योरिटी ,आतंकवाद से लेकर हर तरह का आइटम .फिर भी वीजा मिलने की गारंटी नहीं .
सो अपुन ने तो चुनाव लड़ना मुल्तवी कर दिया है .समर्थकों में मायूसी छा गयी है .रोज नये –नये हथकंडे निकाल कर ला रहे हैं उत्तेजित करने के .उन्हें क्या पता कि मंहगाई सुपारी तक पर बढ़ गयी है .पहले रेट अठन्नी बन्दा था जो अब चार –छः से कम पर नहीं निबट रहा .पेड न्यूज़ वाले चवन्नी मार्का पत्रकारों से अब काम नहीं चलेगा .वोटर अब अख़बार पढ़ता ही नहीं .उसे चेनलों का सर्वे चाहिए .बुरा हो इस हार्वर्ड मेनेजमेंट का .देसी मामले –मसाले फेल कर दिए .सब कुछ मल्टीनेशनल चाहिए .किसी की समझ में नहीं आ रहा यह अंडे का फंडा .
फिर भी मुफ्तखोर अपने लेबल से एक पार्टी को पटा लाये हैं जो बिना कुछ लिए दिए घर बैठे टिकट देने को राजी है .खर्चा खुद करेगी जमानत जब्त कराने का .माल किसी का वोट किसी को .यानी सारी खरीद –फरोख्त फेल .अजीब जमाना आ गया .वकील किसी का दलील किसी की .एक पुराने वकील थे आजादी के दौर के और एक आज हैं .पता नहीं किसके साथ हैं ? नाम में क्या रक्खा है ?
*शक्तिनगर ,चंदौसी ,संभल उ.प्र.244412मोबाइल-8218636741


Monday, September 9, 2013

डबल इंग्लिश

डबल इंग्लिश
मूलचन्द्र गौतम 
एक जमाना था जब बीए पार्ट वन में जनरल इंग्लिश में सत्तर प्रतिशत विद्यार्थी फेल होकर पढाई छोड़ बैठते थे .कम्पार्टमेंट या सप्लीमेंटरी का लाभ भी बहुत कम को मिलता था .भला हो उत्तर प्रदेश सरकार का कि देश के विशालकाय आगरा विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में बालकृष्ण राव की नियुक्ति की .उन्होंने जनरल इंग्लिश के स्थान पर हिंदी भाषा का विकल्प देकर बहुत से गरीब ग्रामीण छात्रों को अंग्रेजी में फेल होने के आतंक से मुक्त कर दिया .इससे हिंदी के अध्यापकों की संख्या में भी वृद्धि हुई .
अब उत्तर प्रदेश की गरीब जनता का स्तर उठ गया है .हाल के दस वर्षों में हालात उलट गये हैं . बीए प्रथम वर्ष की प्रवेश समिति के संयोजक के नाते हिंदी के प्रोफेसर  मुरारीलाल का मुंह लटक गया है क्योंकि उनकी रोजी –रोटी खतरे में पड़ गई है .ज्यादातर छात्र –छात्राओं ने आवेदन पत्र में डबल इंग्लिश ली है .नकल से पास हुए इन छात्रों के चेहरे मोहरे से इंग्लिश की बू –बास तक नहीं आती .लिटरेचर को लिटलेचर कहने वाले ये भावी कलक्टर हिंदी सहपाठियो और अध्यापकों को जिस हिकारत से देखते हैं ,वह नाकाबिले बर्दाश्त है .हिंदी की क्लासों में मुर्दनी छाई रहती है .शर्म के मारे कोई भी किताब तक नहीं लाना चाहता कि कोई पूछ न बैठे कि ये घर की मुर्गी –हिंदी भी कोई पढने की चीज है .हिंदी का अख़बार पढना भी अब बेइज्जती है .मुरारीलाल के लडकों के खुद घर में अंग्रेजी का अख़बार लगा लिया है .हिंदी के अख़बारों में वैवाहिक विज्ञापन तक गरीब - स्तरहीन और घटिया लोगों के छपते हैं ,जिनके पास दहेज में कार तक देने की औकात नहीं है .और तो और एमए हिंदी लडकी को कोई शादी लायक तक नहीं मानता क्योंकि उसकी काबिलियत मात्र इतनी है जितनी पहले चिट्ठी या रामायण पढकर सुना देने वाली लडकी की हुआ करती थी .अलबत्ता प्राइमरी स्कूल में मास्टरनी हो तो उसके बारे में सोचा जा सकता है .
डबल इंग्लिश न हुई दवा की डबल डोज हो गई .डबल नाल की दोनाली हो गई .अब बच्चों के नाम तक डब्बल रखे जा रहे हैं हो भले ही सिंगल .इसी चक्कर में बसें तक डबल डेकर हो गयी हैं .कान्वेंटों में हिंदी बोलना तक निषिद्ध है –जुर्माना तक देना पड़ेगा .इसीलिए बिना टाई के पढने वाले बच्चे जाहिलों में गिने जाने लगे हैं .टाट-पट्टी वाले स्कूल उन्हीं के लिए हैं जो फीस नहीं भर सकते और मिड डे मील खाकर मरने को मजबूर हैं .निज भाषा जब उन्नति के बजाय अवनति का कारण बन जाये तो कौन पढ़ेगा उसे .क्या इसीलिए मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी हो गया है .

# मूलचंद गौतम ,शक्तिनगर ,चंदौसी ,संभल  उ.प्र.244412मोबाइल-9412322067

Thursday, April 4, 2013

कलिकाल कथा


रामनवमी पर विशेष :१९ अप्रैल २०१३
      कलिकाल  कथा
-मूलचन्द गौतम
               तुलसीदास ने वाल्मीकि की रामकथा की परम्परा में नाना पुराण निगमागम सम्मत कथा का जो विराट रूपक रचा है वह अनेक मामलों में अद्भुत है .बालकाण्ड की भूमिका में विस्तार से इस रूपक को खोलते हुए राम जन्म के अभिप्राय को सामान्य से उठाकर विशेष बना दिया है .वैदिक साहित्य की तरह इस कथा के भी अर्थ तीन स्तरों पर किये जा सकते हैं –भौतिक ,दैविक और आध्यात्मिक .इन्हीं अर्थों में राम जहाँ एक सामान्य मनुष्य की तरह व्यवहार करते हैं वहां दूसरी तरफ वे अवतारी परम पुरुष बन जाते हैं .इस भ्रम में स्वयं पार्वती तक पड़ जाती हैं कि राम का कौन सा रूप सच है .शिव बार –बार उनके इस भ्रम को दूर करते हैं .दरअसल यह एक  सामान्य पाठक का भी भ्रम है जिसे –जब –जब होय धरम की हानि...के तर्क से दूर किया जाता है .
रामकथा के के तीन प्रमुख सोपान हैं –जन्म से वनवास ,वनवास से रावण वध और बाद में राम राज्य .यह पूरी कथा बहुआयामी है .इसमें सम्पत्ति वितरण की व्यवस्था से लेकर स्त्री –पुरुष सम्बन्धों की नैतिकता और तमाम आदर्श समाहित हैं .यह व्यवस्था का विकास क्रम भी है .त्रेता का सामाजिक इतिहास .महाभारत इसी का विस्तार है .सतयुग और रामराज्य आदर्श हैं इस व्यवस्था के तो कलिकाल कटु यथार्थ .वर्णाश्रमधर्म रीढ़ है इस संरचना की और यही सारे विवादों की जड भी है जिसका समाधान आज तक नहीं हो पा रहा .जन्म और गुणकर्म के आधार विभाजित समाज श्रेणियों में तो बंट गया लेकिन उनके बीच समन्वय आज तक नहीं हो पाया .बेईमानी इनका निर्धारण करने वालों ने की जो आज तक मनु और ब्राह्मणों के नाम पर दलितों ,आदिवासियों ,स्त्रियों की गालियाँ खा रहे हैं .
समाज के पथभ्रष्टक तुलसीदास भी हैं क्योंकि यही वर्णाश्रम व्यवस्था राम का प्रमुख उद्देश्य है –बरनाश्रम निज निज धरम निरत वेदपथ लोग –जहाँ किसी को भी दैहिक ,दैविक ,भौतिक ताप पीड़ित नहीं करते .समाज में धर्म अपने चारों चरणों –सत्य ,शौच ,दया और दान के साथ विद्यमान है .सभी नागरिक स्वस्थ ,सुन्दर और सम्पन्न हैं .कोई दरिद्र नहीं है .आज के हिसाब से गरीबी रेखा के नीचे कोई नहीं क्या गरीब ही नहीं .इन्हीं कारणों से गांधीजी का आदर्श था –रामराज्य जिसका मन्दिर से कोई सम्बन्ध नहीं था .जनता आज भी रामराज्य के भुलावे में बहुत जल्दी आती है भले वह उसे नसीब हो या न हो .उत्तरकाण्ड में तुलसीदास ने रामराज्य की आदर्श व्यवस्थाओं का जो सजीव वर्णन किया है –क्यों न उसे सबका मन चाहे .साक्षात् स्वर्ग जो स्वर्गवासी होने पर ही उपलब्ध हो सकता है –गोदान .पाप और नरक से दूर .रावण इन्हीं दुर्व्यवस्थाओं का प्रतीक है
.राम ने उसका वध करके उन्हें समाप्त कर दिया है .यह काव्यसत्य असंभव होने पर भी मायामृग की तरह लुभाता है .स्वयं राम और सीता जिसके आकर्षण से नहीं बच पाए –वह कांचनमृग दिवास्वप्न होने पर भी दौड़ाता तो है .भ्रष्टाचार का साक्षात् प्रतीक –सोने की लंका इसी का विराट रूप है .ताजमहल –गरीबों की मोहब्बत का मजाक .कोई भी सत्ता केंद्र इससे अछूता नहीं .
सत्ता को चुनौती देता ईमानदार फकीर जब इस सत्ता से उपेक्षित होता है तो शाप दे बैठता है –माया महाठगिनी हम जानी-पहचानी .और जनता उससे फिर फिर धोखा खाती है .यह संघर्ष निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है .गांधीजी ने जिस रामराज्य का स्वप्न देखा था –जिसके लिए अथक संघर्ष किया था वह आज भी अधूरा है .अगर वे सत्तासीन हो जाते तब भी यही हाल होता –कमोबेश .
तुलसीदास के विजन की महाकाव्यात्मकता का यही रहस्य है कि वे रामचरितमानस में तमाम अतिवादों ,अंतर्विरोधों को साधकर निबाह ले जाने में सक्षम हैं .रामराज्य की आदर्श व्यवस्था के विपरीत खड़ी राक्षसी व्यवस्था के बीच युद्ध आज भी जारी है -साधनसम्पन्न और साधनहीन के बीच .हिंसा ,अपराध ,बेईमानी जैसे नकारात्मक तत्वों की अराजकता के बीच .
तुलसीदास एक आम आदमी की तरह इस तमाम गलाजत के लिए कलिकाल को दोषी ठहरा देते हैं .भाग्य भरोसे –भगवान भरोसे –निरीह ,अक्षम ,अवश हालात के सामने हथियार डाल देने वाले .जाही विधि राखे राम ताही विधि रहिये . होय सोय जो राम रचि राखा ...हानि लाभ जीवन मरन जस अपजस विधि हाथ –विधि का यह कैसा विधान ?और इस सबका दोषी कौन ?-वर्णाश्रम व्यवस्था का अक्षरशःपालन न करने वाले वर्णसंकर लोग ,दलित ,महिलाएं और पूरा समाज .यानी समस्त पापों का मूल –कलिकाल .गरुड और काकभुशुण्ड सम्वाद में पूर्वजन्म के बहाने वर्तमान का वर्णन .जन्म भी शूद्र के रूप में .रामराज्य का मुख्य विद्रूप .राम के ठीक सामने प्रश्नचिन्ह के रूप में खड़ा धोबी –शम्बूक .यह कलिकाल जैसे रामराज्य का अनिवार्य हिस्सा हो .तपसी धनवंत दरिद्र गृही ...कलि के कौतुक कहकर जिसे टाला नहीं जा सकता ,जिससे बचा नहीं जा सकता .महिलाओं की स्थिति सबसे खराब –अबला कच भूषन भूरि क्षुधा ..असली .आभूषण तो नोंच लिए जायेंगे तो बाल ही सही –ब्यूटी पार्लर तो उस जमाने में थे नहीं –क्या भविष्यवाणी है सटीक-अचूक .नहिं मानत कोउ अनुजा तनुजा –सामूहिक बलात्कार रामराज्य में कहाँ संभव था ?
रामचरितमानस में तुलसीदास का यह वैचारिक संघर्ष है अपने समय की विकृतियों से .सात्विक क्रोध में वे नितांत अकेले होकर भी लड़ते हैं इस दारुण –दारिद दसानन से .धूत कहो अवधूत कहो ...इस क्रोध की पराकाष्ठा है .रामकथा के वाचक इस दारुण यथार्थ की चर्चा जानबूझकर नहीं करते क्योंकि तब उन्हें अपनी राजनीति भी खोलनी होगी –नाम लेने पड़ेंगे .अवसरवाद को पनाह अमूर्त भक्तिभाव में ही मिल सकती है ..इन धनवंत तपस्वियों को सरकारी और सेठों का अनुदान और दान ऐसे ही थोड़े मिल जायेगा .धर्म ,शिक्षा और योग का व्यापार तुलसी की निगाह में था .हरइ शिष्य धन शोक न हरई....के गुरु घंटालों से आज कौन अपरिचित है ?इस सम्पूर्ण प्रसंग में वर्तमान राजनीति ,परिवार और व्यवस्था की कटु आलोचना है जो कबीर से कम नहीं .बस सीमा है तो इतनी ही कि स्त्री और  शूद्र को तथाकथित वर्णाश्रम व्यवस्था की मर्यादाओं से कोई छूट नहीं .इनका प्रभुत्व और वर्चस्व तुलसी को कतई स्वीकार नहीं .नारि बिबस नर सकल गोसाईं नाचहिं नट मरकट की नाइं या बादहिं शूद्र द्विजन्ह सन हम तुम्ह ते कछु घाट ....इन तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद यह रामचरितमानस का सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रसंग है ,जिसकी प्राय : चर्चा नहीं की जाती क्योंकि इससे तमाम पाखंडियों की पोल खुलती है .

-शक्तिनगर,चंदौसी,संभल  उ.प्र.२०२४१२ मोबाइल-०९४१२३२२०६७

यदि होता किन्नर नरेश मैं


यदि होता किन्नर नरेश मैं ...
# मूलचन्द्र गौतम
बचपन में एक कविता पढ़ी थी –यदि होता किन्नर नरेश मैं  राजमहल में रहता ,सोने का सिंहासन होता सिर पर मुकुट चमकता .तभी से दिल में तमन्ना थी कि कुछ ऐसा काम कर जाऊं कि जग में नाम हो जाये .लेकिन भाग्य ने साथ नहीं दिया .राजतन्त्र खत्म हो गये .प्रिवीपर्स उड़ा दिए .तो नरेश बनना केंसिल .
सौभाग्य से छठी क्लास में गुरूजी ने एक निबंध लिखवाया था –यदि मैं प्रधानमन्त्री होता .तभी से सपनों में रोज देश का भाग्य विधाता बन जाता हूँ और शेखचिल्लियों की तरह चिल्ला –चिल्लाकर खुद को प्रधानमन्त्री कहलवाने की जबरदस्ती कर रहा हूँ .इस हुआं-हुआं के चौतरफा शोर में देखता हूँ कि और भी कुछ शेख कूद पड़े हैं और मेरे समर्थक ढीले पड़ गये हैं तो मैंने उनके लिए स्पेशल व्याग्रा की व्यवस्था कराई है ताकि जनता में मेरी छवि खराब न हो .
कुछ उम्मीदवारों ने सलाहकारों का पूरा मंडल तैयार कर लिया है .हर झंगा –पतंगा सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार है .जो कभी प्रधान तक नहीं बन पाया वह भी नामुराद प्रधानमन्त्री बनना चाहता है .मैंने भी पूरी तैयारी कर रखी है .एक रोमांचकारी कुश्ती को खूब रट लिया है ताकि कोई सूअर मुझ शेर को पछाड़ न सके .एक से एक रंगे हुए सियारों ने दंगल रंगीन बना दिया है .मैं भी घोषणा पत्र में पहला बिंदु यही रखा है कि प्रधानमन्त्री शब्द निरर्थक हो चुका है इसलिए अब यह पद रुस्तमे हिन्द –सितारे हिन्द होगा .दारा सिंह होता तो इस पद को वह तुरंत हथिया लेता .उसके लडकों में कोई इस पद के योग्य नहीं सो मैदान खाली है और खली को बिगबोस ने चूस लिया है सो कोई खतरा नहीं .
साहित्यकारों में भी एक फैशन चला था कि हर छुटभैया दाढ़ी बढ़ाकर-कांधे पे झोला टांगकर महाकवि हो जाने का स्वांग करने लगता था और कुछ न लिख पाने पर लिखता था –यदि मैं कामायनी लिखता .
रामचरितमानस में कमियां निकालकर तुलसीदास नहीं हो पाया कोई आज तक ,तो प्रधानमन्त्री होना तो बेहद मुश्किल है .गाड़ी के नीचे चलते कुत्ते की हैसियत ही क्या है ?
तो मित्रो शेडो मत्रिमंडल की तैयारी जोर शोर से चल रही है .उपयुक्त उम्मीदवार अपना –अपना बायोडाटा निम्न पते पर शीघ्र भिजवाकर पंजीकरण करा लें ।
# शक्तिनगर, चन्दौसी, संभल 244412
मोबाइल 8218636741

Wednesday, March 27, 2013

लला फिरि आये हो खेलन होरी


अंग्रेजों ने जानबूझकर आय -व्यय का लेखा जोखा अप्रेल से मार्च तक रखा .उन्हें मालूम था कि भारतीय फागुन में बौरा जाते हैं ,आम पर बौर आने के साथ .बसंत पंचमी से लेकर मदनोत्सव तक इन बैशाखनंदनों की जेब मजे  से काटी जा सकती है .किसी बिना बौराए चतुर को पता चल भी जाये तो राम बाण है -बुरा न मानो होली है .पद्माकर की गोपियों ने सोलह कलाओं में प्रवीण कृष्ण को ऐसे ही बेवकूफ बनाया था -लला फिरि आइयो खेलन होरी -नैन नचाकर मुस्कराकर कोई भी नायिका या व्यापारी गुणग्राहक को ठग लेता है .छछिया भरि छाछ पे नाच नचाना क्या मामूली कला है ?

बजट भी ऐसी ही कला है -कुछ न देकर सबकुछ लूट लेना .दिल लूटने वाले जादूगर से बच भी कौन सकता है .भारतीय जनता तो नागिन की धुन सुनते ही सुध बुध खो बैठती है .तन डोले, मेरा मन डोले, मेरे दिल का गया करार रे ,अब कौन बजाये  बांसुरिया ?तमाम विदेशी निवेश के नाम पर ऐसे -ऐसे करार कर रहे हैं कि उनकी गोपनीय शर्तें तक तब खुलेंगी जब सब कुछ लुट चुकेगा और हर नागरिक के हाथ में भीख का कटोरा होगा .हम तब भी नाच -नाच कर गायेंगे -बलि जाऊं लला इन बोलन की .ऐसे ही हमने विभाजित नकली आजादी का जश्न मनाया था और मनाते रहेंगे .

दरअसल इतनी भारी आबादी को लम्बे समय तक मूर्ख भी नहीं बनाया जा सकता ,इसलिए हर रोज नई तरकीबें अपनानी पड़ती हैं .इस काम में इलेक्ट्रोनिक मीडिया और फिल्मों ने देश के नायकों का सारा सरदर्द अपने सर लेकर उन्हें आजाद कर दिया है .ज्योंही कोई परेशानी खड़ी होती है -जनता को कोई नई बाबी टाइप फिल्म दिखा  दी जाती है और नहीं तो क्रिकेट मैच तो ऐसी अमोघ -अचूक दवा है कि  एने,स्थीसिया भी फेल .ऊंटों की चोरी खुल्लमखुल्ला .बड़े -बड़े घोटाले मक्खी -मच्छर की तरह साफ -हिट-फिट फार्मूला .बस ढूंढते रह जाओगे ?बच्चे तो बच्चे बूढ़े तक विज्ञापनों के दीवाने हो जायेंगे. सदी का महानायक तक चूरन -चटनी -तेल -फुलेल बेचने लगेगा .सेक्सी कामेडी के तडके में सब लोट पोट-लहालोट .नैतिकता सिर्फ पहलवानों के लंगोट तक सिमट जाएगी और हर माता बहन मस्त -मस्त चीज में बदल जाएगी .ज्यादा किसी को परेशानी हो तो जंतर -मंतर पर मोमबत्ती जलाने को आजाद है .

लेकिन अब भी कुछ मूर्खों को यकीन है  कि सतयुग आएगा ?जब लोग हगना- मूतना बंद कर देंगे .सब तरफ हरियाली -खुशहाली होगी .ऐसे लोग बड़ी -बड़ी सोसाइटियों में रहने चले गये हैं -कुछ चाँद और मंगल पर जाने का प्लान बना रहे हैं केवल अपुन हैं जो इसी नरक को अपना स्थायी भाग्य समझकर खुश हैं 

इसीलिए अपुन का बजट तो दिवाळी पर आएगा .यह बजट  मूर्खों को मुबारक हो .