Thursday, April 4, 2013

कलिकाल कथा


रामनवमी पर विशेष :१९ अप्रैल २०१३
      कलिकाल  कथा
-मूलचन्द गौतम
               तुलसीदास ने वाल्मीकि की रामकथा की परम्परा में नाना पुराण निगमागम सम्मत कथा का जो विराट रूपक रचा है वह अनेक मामलों में अद्भुत है .बालकाण्ड की भूमिका में विस्तार से इस रूपक को खोलते हुए राम जन्म के अभिप्राय को सामान्य से उठाकर विशेष बना दिया है .वैदिक साहित्य की तरह इस कथा के भी अर्थ तीन स्तरों पर किये जा सकते हैं –भौतिक ,दैविक और आध्यात्मिक .इन्हीं अर्थों में राम जहाँ एक सामान्य मनुष्य की तरह व्यवहार करते हैं वहां दूसरी तरफ वे अवतारी परम पुरुष बन जाते हैं .इस भ्रम में स्वयं पार्वती तक पड़ जाती हैं कि राम का कौन सा रूप सच है .शिव बार –बार उनके इस भ्रम को दूर करते हैं .दरअसल यह एक  सामान्य पाठक का भी भ्रम है जिसे –जब –जब होय धरम की हानि...के तर्क से दूर किया जाता है .
रामकथा के के तीन प्रमुख सोपान हैं –जन्म से वनवास ,वनवास से रावण वध और बाद में राम राज्य .यह पूरी कथा बहुआयामी है .इसमें सम्पत्ति वितरण की व्यवस्था से लेकर स्त्री –पुरुष सम्बन्धों की नैतिकता और तमाम आदर्श समाहित हैं .यह व्यवस्था का विकास क्रम भी है .त्रेता का सामाजिक इतिहास .महाभारत इसी का विस्तार है .सतयुग और रामराज्य आदर्श हैं इस व्यवस्था के तो कलिकाल कटु यथार्थ .वर्णाश्रमधर्म रीढ़ है इस संरचना की और यही सारे विवादों की जड भी है जिसका समाधान आज तक नहीं हो पा रहा .जन्म और गुणकर्म के आधार विभाजित समाज श्रेणियों में तो बंट गया लेकिन उनके बीच समन्वय आज तक नहीं हो पाया .बेईमानी इनका निर्धारण करने वालों ने की जो आज तक मनु और ब्राह्मणों के नाम पर दलितों ,आदिवासियों ,स्त्रियों की गालियाँ खा रहे हैं .
समाज के पथभ्रष्टक तुलसीदास भी हैं क्योंकि यही वर्णाश्रम व्यवस्था राम का प्रमुख उद्देश्य है –बरनाश्रम निज निज धरम निरत वेदपथ लोग –जहाँ किसी को भी दैहिक ,दैविक ,भौतिक ताप पीड़ित नहीं करते .समाज में धर्म अपने चारों चरणों –सत्य ,शौच ,दया और दान के साथ विद्यमान है .सभी नागरिक स्वस्थ ,सुन्दर और सम्पन्न हैं .कोई दरिद्र नहीं है .आज के हिसाब से गरीबी रेखा के नीचे कोई नहीं क्या गरीब ही नहीं .इन्हीं कारणों से गांधीजी का आदर्श था –रामराज्य जिसका मन्दिर से कोई सम्बन्ध नहीं था .जनता आज भी रामराज्य के भुलावे में बहुत जल्दी आती है भले वह उसे नसीब हो या न हो .उत्तरकाण्ड में तुलसीदास ने रामराज्य की आदर्श व्यवस्थाओं का जो सजीव वर्णन किया है –क्यों न उसे सबका मन चाहे .साक्षात् स्वर्ग जो स्वर्गवासी होने पर ही उपलब्ध हो सकता है –गोदान .पाप और नरक से दूर .रावण इन्हीं दुर्व्यवस्थाओं का प्रतीक है
.राम ने उसका वध करके उन्हें समाप्त कर दिया है .यह काव्यसत्य असंभव होने पर भी मायामृग की तरह लुभाता है .स्वयं राम और सीता जिसके आकर्षण से नहीं बच पाए –वह कांचनमृग दिवास्वप्न होने पर भी दौड़ाता तो है .भ्रष्टाचार का साक्षात् प्रतीक –सोने की लंका इसी का विराट रूप है .ताजमहल –गरीबों की मोहब्बत का मजाक .कोई भी सत्ता केंद्र इससे अछूता नहीं .
सत्ता को चुनौती देता ईमानदार फकीर जब इस सत्ता से उपेक्षित होता है तो शाप दे बैठता है –माया महाठगिनी हम जानी-पहचानी .और जनता उससे फिर फिर धोखा खाती है .यह संघर्ष निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है .गांधीजी ने जिस रामराज्य का स्वप्न देखा था –जिसके लिए अथक संघर्ष किया था वह आज भी अधूरा है .अगर वे सत्तासीन हो जाते तब भी यही हाल होता –कमोबेश .
तुलसीदास के विजन की महाकाव्यात्मकता का यही रहस्य है कि वे रामचरितमानस में तमाम अतिवादों ,अंतर्विरोधों को साधकर निबाह ले जाने में सक्षम हैं .रामराज्य की आदर्श व्यवस्था के विपरीत खड़ी राक्षसी व्यवस्था के बीच युद्ध आज भी जारी है -साधनसम्पन्न और साधनहीन के बीच .हिंसा ,अपराध ,बेईमानी जैसे नकारात्मक तत्वों की अराजकता के बीच .
तुलसीदास एक आम आदमी की तरह इस तमाम गलाजत के लिए कलिकाल को दोषी ठहरा देते हैं .भाग्य भरोसे –भगवान भरोसे –निरीह ,अक्षम ,अवश हालात के सामने हथियार डाल देने वाले .जाही विधि राखे राम ताही विधि रहिये . होय सोय जो राम रचि राखा ...हानि लाभ जीवन मरन जस अपजस विधि हाथ –विधि का यह कैसा विधान ?और इस सबका दोषी कौन ?-वर्णाश्रम व्यवस्था का अक्षरशःपालन न करने वाले वर्णसंकर लोग ,दलित ,महिलाएं और पूरा समाज .यानी समस्त पापों का मूल –कलिकाल .गरुड और काकभुशुण्ड सम्वाद में पूर्वजन्म के बहाने वर्तमान का वर्णन .जन्म भी शूद्र के रूप में .रामराज्य का मुख्य विद्रूप .राम के ठीक सामने प्रश्नचिन्ह के रूप में खड़ा धोबी –शम्बूक .यह कलिकाल जैसे रामराज्य का अनिवार्य हिस्सा हो .तपसी धनवंत दरिद्र गृही ...कलि के कौतुक कहकर जिसे टाला नहीं जा सकता ,जिससे बचा नहीं जा सकता .महिलाओं की स्थिति सबसे खराब –अबला कच भूषन भूरि क्षुधा ..असली .आभूषण तो नोंच लिए जायेंगे तो बाल ही सही –ब्यूटी पार्लर तो उस जमाने में थे नहीं –क्या भविष्यवाणी है सटीक-अचूक .नहिं मानत कोउ अनुजा तनुजा –सामूहिक बलात्कार रामराज्य में कहाँ संभव था ?
रामचरितमानस में तुलसीदास का यह वैचारिक संघर्ष है अपने समय की विकृतियों से .सात्विक क्रोध में वे नितांत अकेले होकर भी लड़ते हैं इस दारुण –दारिद दसानन से .धूत कहो अवधूत कहो ...इस क्रोध की पराकाष्ठा है .रामकथा के वाचक इस दारुण यथार्थ की चर्चा जानबूझकर नहीं करते क्योंकि तब उन्हें अपनी राजनीति भी खोलनी होगी –नाम लेने पड़ेंगे .अवसरवाद को पनाह अमूर्त भक्तिभाव में ही मिल सकती है ..इन धनवंत तपस्वियों को सरकारी और सेठों का अनुदान और दान ऐसे ही थोड़े मिल जायेगा .धर्म ,शिक्षा और योग का व्यापार तुलसी की निगाह में था .हरइ शिष्य धन शोक न हरई....के गुरु घंटालों से आज कौन अपरिचित है ?इस सम्पूर्ण प्रसंग में वर्तमान राजनीति ,परिवार और व्यवस्था की कटु आलोचना है जो कबीर से कम नहीं .बस सीमा है तो इतनी ही कि स्त्री और  शूद्र को तथाकथित वर्णाश्रम व्यवस्था की मर्यादाओं से कोई छूट नहीं .इनका प्रभुत्व और वर्चस्व तुलसी को कतई स्वीकार नहीं .नारि बिबस नर सकल गोसाईं नाचहिं नट मरकट की नाइं या बादहिं शूद्र द्विजन्ह सन हम तुम्ह ते कछु घाट ....इन तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद यह रामचरितमानस का सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रसंग है ,जिसकी प्राय : चर्चा नहीं की जाती क्योंकि इससे तमाम पाखंडियों की पोल खुलती है .

-शक्तिनगर,चंदौसी,संभल  उ.प्र.२०२४१२ मोबाइल-०९४१२३२२०६७

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