Thursday, April 4, 2013

यदि होता किन्नर नरेश मैं


यदि होता किन्नर नरेश मैं ...
# मूलचन्द्र गौतम
बचपन में एक कविता पढ़ी थी –यदि होता किन्नर नरेश मैं  राजमहल में रहता ,सोने का सिंहासन होता सिर पर मुकुट चमकता .तभी से दिल में तमन्ना थी कि कुछ ऐसा काम कर जाऊं कि जग में नाम हो जाये .लेकिन भाग्य ने साथ नहीं दिया .राजतन्त्र खत्म हो गये .प्रिवीपर्स उड़ा दिए .तो नरेश बनना केंसिल .
सौभाग्य से छठी क्लास में गुरूजी ने एक निबंध लिखवाया था –यदि मैं प्रधानमन्त्री होता .तभी से सपनों में रोज देश का भाग्य विधाता बन जाता हूँ और शेखचिल्लियों की तरह चिल्ला –चिल्लाकर खुद को प्रधानमन्त्री कहलवाने की जबरदस्ती कर रहा हूँ .इस हुआं-हुआं के चौतरफा शोर में देखता हूँ कि और भी कुछ शेख कूद पड़े हैं और मेरे समर्थक ढीले पड़ गये हैं तो मैंने उनके लिए स्पेशल व्याग्रा की व्यवस्था कराई है ताकि जनता में मेरी छवि खराब न हो .
कुछ उम्मीदवारों ने सलाहकारों का पूरा मंडल तैयार कर लिया है .हर झंगा –पतंगा सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार है .जो कभी प्रधान तक नहीं बन पाया वह भी नामुराद प्रधानमन्त्री बनना चाहता है .मैंने भी पूरी तैयारी कर रखी है .एक रोमांचकारी कुश्ती को खूब रट लिया है ताकि कोई सूअर मुझ शेर को पछाड़ न सके .एक से एक रंगे हुए सियारों ने दंगल रंगीन बना दिया है .मैं भी घोषणा पत्र में पहला बिंदु यही रखा है कि प्रधानमन्त्री शब्द निरर्थक हो चुका है इसलिए अब यह पद रुस्तमे हिन्द –सितारे हिन्द होगा .दारा सिंह होता तो इस पद को वह तुरंत हथिया लेता .उसके लडकों में कोई इस पद के योग्य नहीं सो मैदान खाली है और खली को बिगबोस ने चूस लिया है सो कोई खतरा नहीं .
साहित्यकारों में भी एक फैशन चला था कि हर छुटभैया दाढ़ी बढ़ाकर-कांधे पे झोला टांगकर महाकवि हो जाने का स्वांग करने लगता था और कुछ न लिख पाने पर लिखता था –यदि मैं कामायनी लिखता .
रामचरितमानस में कमियां निकालकर तुलसीदास नहीं हो पाया कोई आज तक ,तो प्रधानमन्त्री होना तो बेहद मुश्किल है .गाड़ी के नीचे चलते कुत्ते की हैसियत ही क्या है ?
तो मित्रो शेडो मत्रिमंडल की तैयारी जोर शोर से चल रही है .उपयुक्त उम्मीदवार अपना –अपना बायोडाटा निम्न पते पर शीघ्र भिजवाकर पंजीकरण करा लें ।
# शक्तिनगर, चन्दौसी, संभल 244412
मोबाइल 8218636741

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