Thursday, August 13, 2015

किन्ने मारयो री रसगुल्ला घुमाय के

# मूलचन्द्र गौतम
आविष्कारों की दुनिया में हडकम्प मचा है ,जबसे न्यूटन को गुरुत्वाकर्षण और कोलम्बस को अमेरिका की खोज का श्रेय दिया गया .यही हाल तमाम आविष्कारों और उनके आविष्कारकों का है .खुदा के सुप्रीमकोर्ट ने आदमियों की इन हरकतों का बेहद बुरा  ही नहीं माना है बल्कि इसे खुदाई में बेजा दखल बताया है .
अभी हाल का वाकया रसगुल्लों के अविष्कार के बंगाल और उड़ीसा के दावों का है कि किसके यहाँ पहला रसगुल्ला बना ?जियोग्राफिकल इंडिकेशन के  अक्लमंद अधिकारियों ने इस मामले में लोकगीतों और लोकोक्तियों की मदद लेने का निश्चय किया है .जनता इस चक्कर में नहीं पड़ना चाहती .उसे तो रसगुल्ले खाने से मतलब है न कि इस बात से कि उसे किसने बनाया ?दुनिया बनाने वाले की खोज में अब तक  जाने कितने बेगुनाहों की जान जा चुकी है . इस मामले में हर धर्म और सम्प्रदाय के अनुयायी अपना एकाधिकार घोषित करते नहीं थकते और दूसरों को गलत सिद्ध करने के लिए हिंसा –हत्या तक का सहारा लेने से नहीं चूकते और यह मारकाट  प्रलय तक थमेगी नहीं .
मैंने इस मामले में सरपंच बनकर कुछ देहाती महिलाओं से बात की तो उनमें से एक चुलबुली ने फ़ौरन मुझे एक लोकगीत सुनाया –किन्ने मारयो री रसगुल्ला घुमाय के ....और उसने इसका आविष्कारक अपनी दादी को बताया .अब यह दादी शतरूपा हो या हव्वा क्या फर्क पड़ता है ?फिर भी मुझे डर है कि पढ़े लिखे नेता टाइप लोग इस मुद्दे को इतनी आसानी से हल नहीं होने देंगे और जरुर कहीं न कहीं दंगा होकर रहेगा .
जहाँ जरा –जरा सी अफवाहों पर दंगे भडक जाते हों वहां इतना बड़ा मुद्दा खाली नहीं जा सकता .अंग्रेजों को अटल विश्वास था कि यह कौम ऐसे ही छोटे –छोटे मुद्दों –जुमलों पर मरती –मिटती रहेगी . खुद फांसी खा लेगी और फांसी दे देगी .आज भी कितने लोग हैं जो यह मानने को तैयार नहीं कि धरती सूरज के चारों तरफ घूमती है .अनलहक कहने वालों को अहमक समझते हैं .विष्णु प्रभाकर को इसीलिए कहानी लिखनी पड़ी थी –धरती अब भी घूम रही है . गांधीजी की तरह पानसरे की हत्या इसी का सन्देश था .हत्यारे  हमेशा  मरने वालों से ज्यादा अक्लमंद माने गये ?
गुल खाकर गुलगुलों से परहेज करने वाले ही रसगुल्लों के पीछे पड़े हैं .जनता तो उन्हें खाकर मगन है ,वे चाहे  किसी दास ने बनाये हों या जगन्नाथ ने ?
# शक्तिनगर, चन्दौसी, संभल 244412
मोबाइल 8218636741

Monday, August 3, 2015

डीजे V/S डीजीपी

व्यंग्य


भैया ने सावन में डीजे पर पाबंदी लगाकर शंकर जी के भूत प्रेतों की सेना को नाराज कर दिया है .अब ये भूत- प्रेत ,पिशाच सपत्नीक क्या सपरिवार ताण्डव करने पर आमादा हैं . चुनाव तक नहीं रुक पाएंगे .बल्कि  भांग-धतूरे के नशे में और अधिक उत्पात मचाएंगे .  अच्छा होता भैया इन्हें नाच –गा लेने देते .कम से कम इनकी बैटरी तो डिस्चार्ज हो लेती .वह तो भला हो भोले भंडारी का जो अभी ताण्डव करने के मूड में नहीं हैं .भादों में सोचेंगे .फ़िलहाल तो गौरी ,गणेश के साथ मगन हैं और घूम –घूम कर  नंदी पर बैठकर अपने द्वादाश्लिंगों का पर्यटन और पुनरावलोकन करेंगे .
डीजे पर पाबंदी  के मामले ने समस्त भूत –प्रेत –पिशाचों को विरोधी दल में खदेड़ कर इकट्ठा कर दिया है .यही हाल संसद का है .हनुमान चालीसा भी इन पर कोई असर नहीं डाल पा रहा जबकि रात दिन अखंड जाप चल रहा है –भूत –पिशाच निकट नहिं आवै ....काशी में तो काशीनाथ भी नाराज हैं .उनकी अस्सी पर तमाम भूत –प्रेत खूंखार हुए घूम रहे हैं .मस्ती में उनके दिमाग में सब अगडम –बगडम हो रहा है .आईएसआई और सीआईए में उन्हें कोई फर्क ही नजर नहीं आ रहा .बल्कि वे तो सीबीआई को भी इसी परिवार का हिस्सा मानकर चल रहे हैं भले खुद पर आईएसआई मार्का ठप्पा लगाये घूम रहे हैं .
बुरा हो इन अंग्रेजों का जो देश को मैकाले के चंगुल में फंसा गये .पूरे देश के नौनिहाल आईएएस बनने के लिए एब्रिबियेशन घोंट –घोंटकर पागल हुए जा रहे हैं और फिर भी कन्फ्यूजनवा दूर नहीं हो पा रहा .मिलते जुलते एब्रिबियेशन भी खामखाह एक दूसरे की जान के दुश्मन हुए जा रहे हैं .अब भला डीजीपी को डीजे से क्या दुश्मनी ?कल को बीजेपी आ गयी तो यही डीजीपी राधारानी बनकर खुद डीजे पर नाचते हुए नजर आयेंगे .दरअसल नौकरों की यही मुश्किल है कि उन्हें मालिकों का हुक्म बजाना है .अपने दिमाग का इस्तेमाल करना मना है .जैसे यह दिमाग न होकर कूड़ेदान –पीकदान हो .यहाँ थूकना मना है .कृपया यहाँ पेशाब न करें .जनता इस मामले में पचास कदम आगे है –गधे के पूत यहाँ मत मूत .
सो मैं तो घर से निकल ही नहीं रहा .शंकर जी की ठंडी बरात भला कौन देखेगा ?बरात न हुई मातम हो गया ?घर में ही कैसेट लगा लिया है –शिवजी बिहाने चले .....
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------
-------------

















Sunday, August 2, 2015

मिनी वृन्दावन के बन्दर


रामलीला में  बंदरों ने रावण की नाक में दम कर दिया था .लंकादहन से लेकर राजतिलक तक उनकी अहम भूमिका थी .अंग्रेजों से युद्ध में भी इंदिरा गाँधी की वानर सेना ने गांधीजी की बड़ी भारी मदद की थी . वर्तमान में बजरंगियों के विरोधी निश्चित ही रामराज्य के दुश्मन नम्बर वन हैं .
जिन्हें आज भी बंदरों के आतंकवाद के दर्शन करने हैं वे वृन्दावन चले जाएँ या हमारे मिनी वृन्दावन में चले आयें .मेनका गाँधी इनकी संरक्षक हैं .जैसे पहले मदारी इन्हें नचाकर जीविका कमाते थे, उसी तरह अब उचक्के इन्हें पालकर लोगों के  नये कपड़े ,चश्मे और मोबाइल उड़ाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं .तमाम सूखते कपड़ों में से ये एकदम नया कपड़ा चुनकर घूस की आस में घर की मुंडेर पर बैठ जाते हैं .खाने को कुछ मिलते ही ये उसे छोड़कर चल देते हैं और न देने पर मालिक की आँखों के सामने ही उनके कलेजे के टुकड़े –टुकड़े कर डालते हैं और वह मन मसोसकर उनके संरक्षक को चार-छह चुनी हुई गालियाँ देकर चुप होकर बैठ जाता है .
कल्पना कीजिये कि किसी हसीना की आँखों पर सजा मंहगा चश्मा अचानक छिन जाए या किसी गरीब  बुजुर्ग की आँखों का नूर छिन जाए और किसी नौजवान का मोबाइल छिन जाए .बन्दर आगे –आगे और मालिक पीछे –पीछे .फोन आने पर घंटी बजे और वानरराज बड़े मजे से उसे सुनें .कोई पुलिस इसमें कर क्या सकती है .वानरराज ठहरे साक्षात् हनुमानजी के अवतार .आपने कुछ ऐसा –वैसा किया तो उनके भक्त बजरंगी आपकी हड्डी पसली और तोड़ डालेंगे .
अपने मिनी वृन्दावन में कामधेनु और कल्पवृक्ष के प्रेमी धनवानों ने  थोक में इन्हें पूड़ी ,पुए ,आम ,केले खिला –खिलाकर इनकी आदतें खराब कर दी हैं .ऊपर से इनकी वंशबेल जिस गति से बढ़ रही है उस हिसाब से ये जल्द ही चीन को पीछे छोड़ देंगे .मंगलवार और शनिवार तो इनके महाभोज के दिन हैं .निरालाजी का भूखा पेट –पीठ दोनों मिलकर हैं एक /चल रहा लकुटिया टेक  भिक्षुक इन्हें आज भी बड़ी हसरतों से देखता है और अपने भाग्य को कोसता है .रसखान खुद इनके मजे देखकर अगले जनम में  वृन्दावन के बन्दर बनना चाहते थे .हालाँकि ऐसा उन्होंने खुलकर नहीं कहा था क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं इस संवेदनशील प्रतिक्रिया से साम्प्रदायिक दंगा न हो जाए .
मेनकाजी के डर से सरकार  प्रयोगशालाओं के लिए इनका निर्यात करने की स्थिति में भी नहीं है .इनकी नसबंदी पर भी कानूनी प्रतिबन्ध है .कुछ सिरफिरों ने चंदा करके इनके निष्कासन का प्रोग्राम भी बनाया जो बहुसंख्यक धर्मप्राण –धर्मभीरु लोगों के  लोकतान्त्रिक विरोध के कारण फुस्स हो गया .उन्हीं में से कुछ अहिंसक मूर्खों ने लंगर में  भाँग की रोटियां बनवाकर इन्हें खिलाकर ट्रक में लदवाकर जंगल में छुड्वाया .अगले दिन मुहल्लों में इन्हें फिर देखकर उनके होश गुम हो गये .और वे झख मारकर गाने लगे वृन्दावन धाम अपार......