Wednesday, January 5, 2022

राम और कृष्ण के बीच महायुद्ध

 राम और कृष्ण के बीच महायुद्ध


# मूलचन्द्र गौतम

मिथक और इतिहास भी अनेक बार समाज को धर्म संकट में डाल देते हैं धर्म संसद की तरह ।कहावत है कि युद्ध और प्रेम में सब जायज है।इस मान्यता ने ही सारा बबाल और जंजाल खड़ा कर दिया है।पहले थप्पड़ मारो फिर सॉरी बोल दो ।कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन फायदा थप्पड़बाज का ही होगा ।वाकयुद्ध का सबसे उर्वर समय चुनाव होता है जो मुँह में आये भौंक दो ।सोचने समझने की जरूरत ही नहीं।जनता भी इस अंत्याक्षरी में पिटे हुए पहलवान का साथ नहीं देती ।इसलिए यहाँ हमेशा सोलह दूनी आठ होते हैं।इस मनोरंजन का मजा लेती है जनता तो झेलेगा कौन?

इतिहास गवाह है कि मिथकों की दुनिया में कुछ भी नामुमकिन नहीं।यहाँ अवढरदानी आशुतोष शिव हैं जो अपने ऊटपटांग वरदानों से दुनिया के सामने कोई भी मुश्किल खड़ी कर सकते हैं तो सृष्टि के रक्षक विष्णु किसी भी तरकीब से भस्मासुर की अपार विध्वंसक शक्तियों को निरर्थक बना सकते हैं।उन्हीं विष्णु के अवतारों में महा घमासान हो सकता है यह कोई सोच भी नहीं सकता।कभी भी कोई भी परस्पर परमप्रिय आमने सामने आ सकते हैं।कृष्णार्जुन युद्ध अकल्पनीय था लेकिन नौबत आ ही गयी यह बात अलग है कि वह टल गयी अन्यथा......।

यही हाल कलिकाल में चुनावों का है।दलबदलू लोकतंत्र में एक से बढ़कर एक नजारे देखने को मिलते हैं।कल तक हम प्याला हम निवाला रहे दोस्त जानी दुश्मन बने नजर आते हैं तो एक दूसरे को आँख उठाकर भी न देखने वाले दुश्मन सात जनम तक साथ निभाने की कसमों के साथ गलबहियां डाले दिखते हैं।विरुद्धों के इसी सामंजस्य ने लोकतंत्र में अचूक अवसरवाद को कालातीत कला में परिवर्तित कर दिया है।यह तलवार की धार पर चलने से कहीं ज्यादा खतरनाक खेल है।

हाल ही में त्रेता और द्वापरयुग के महानायकों को आमने सामने खड़ा कर दिया गया है।बारह और सोलह कलाओं के बीच कौन जीतेगा यह भविष्य के गर्भ में छिपा है।इस जैविक और रासायनिक युद्ध में सब कुछ दाँव पर लगा है।युधिष्ठिर की कोई प्रतिष्ठा नहीं रह गयी है।कलियुगी युधिष्ठिर आद्यंत झूठ बोलने में माहिर है।झूठ की इस माया को काटने की कोई युक्ति नहीं बची है।रामभक्त बाबा खुलेआम कह सकते थे कि तुलसी मस्तक तब नवै जब धनुष बाण लेउ हाथ जबकि उन्हें मालूम था कि सुदर्शन चक्र का मिसाइल धनुष बाण से ज्यादा असरदार है।दोनों महारथी हैं लेकिन कलिकाल तो कलिकाल है।रावण और कंस से लड़ाई आसान थी क्योंकि मामला साफ था और दुश्मन सामने था ।अब तो अठारह अक्षौहिणी भी कम पड़ जायेगी।यहाँ तो संत असंत की परिभाषा और फर्क लुप्तप्राय है।अब सीकरी से निरपेक्ष संत गायब हैं।बाबा को पहले ही यह अंदेशा था जोअब संदेशा बन चुका है।तय करो इस महायुद्ध में किस ओर हो तुम ?क्योंकि बीच का रास्ता कोई रास्ता नहीं होता।
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