Monday, November 28, 2022

मुर्दों के साथ मस्ती

मुर्दों की बस्ती में मस्ती 

# मूलचन्द्र गौतम

कबीर ने जब से कहा -साधो यह मुर्दों का गाँव -तब से मैं यहाँ  मुर्दों के सरदार जिंदा आदमी की तलाश में हूँ जो जिंदादिल भी हो ।मुर्दों के टीले पर बैठकर शव साधना के मजे ही अलग हैं थ्री डी और फाइव जी के साथ ।जहाँ सारे मुर्दे मोबाइल की मस्ती में डूबे हैं और राजा की सवारी खरामा खरामा निकली जा रही है।शतरंज के खिलाड़ी परस्पर मार काट में व्यस्त हैं।

ईश्वर की मृत्यु की घोषणा के बहुत दिनों के बाद विद्वानों को समझ आया कि इतिहास की हत्या भी जरूरी है अन्यथा स्वयम्भू अनंत निराकार कभी भी सामने आकर अपना आधार कार्ड दिखाकर  करोड़ों के बीमे का दावा कर सकता है।अब इतिहास के प्रेत लगे हैं उसे बचाने में ।उसकी नयी से नयी व्याख्याएँ प्रकट हो रही हैं।आम आदमी चकरघिन्नी हो रहा है कि किसे सच माने।आखिर में वह हारकर सत्ता की इतिहास दृष्टि की शरण में ही जाता है क्योंकि यहीं मोक्ष है।कुछ सिरफिरे ही बचते हैं तो इतिहास की पत्थर की  सख्त दीवार से सिर मारते रहते हैं और आखिरकार पागलखाने में आखिरी साँस लेते हैं।

दरअसल आधुनिक दौर यंत्र ,मंत्र और तंत्र का है।जिस व्यक्ति और दल ने इस त्रिकोण को साध लिया विजय उसी की दासी है विश्व पर उसका वर्चस्व है और जो पिछड़ गया वह आजीवन अभिशप्त होने को बाध्य है।आजीवन विपक्ष का जीवन भी कोई जीवन है? सत्ता सुंदरी उससे कोसों दूर रहती है फिर मजबूरी में वह चाहे ब्रह्मचारी होने का स्वाँग करे या सन्यास का ढोंग ।धूप में बाल सफेद करने वाले और अनुभवी में कुछ तो फर्क होता है।बालों के  अधुनातन डिजाइन के दौर में उम्र का पता ही नहीं चलता।बालकों को बूढ़ा होने के फैशन का रोग लगा है तो बुड्ढों को जवान दिखने का शौक चर्राया है।बूढ़े मुँह मुहाँसे दिखाकर मस्त हैं भले उनके कब्र में जाने के दिन हों ।डॉक्टरों ने दिल को जवान रखने के एक से एक नायाब नुस्खे ईजाद जो कर लिये हैं।इसीलिए  कुँआरे नौजवानों को दिल के दौरे पड़ रहे हैं और बूढ़े नित नयी नवेली दुल्हनों के ख्बाव सजा रहे हैं।

पहले मकरध्वज और शिलाजीत की जानकारी केवल राजवैद्यों तक सीमित थी अब हर मुर्दा उनका मजा ले रहा है।झंडू बाम ने जब से फिल्मी गाने में आकर अपार लोकप्रियता हासिल की है तब से पीके भन्नाया हुआ है कि उसके  राजनीतिक ताकत के  तमाम ऐलोपैथिक नुस्खे फेल क्यों हो रहे हैं ।उसे आयुर्वेद की शक्ति का पता ही नहीं है।दरअसल उसे तत्काल श्मशान में किसी योग्य गुरु के निर्देशन में शव साधना की दरकार है।तभी सत्ता सुंदरी उसका वरण करेगी ।

तंत्र कोई भी हो ताकतवर होता है नाम उसका चाहे राजतंत्र हो या लोकतंत्र क्या फर्क पड़ता है?इस तंत्र से ही यंत्र और मंत्र को साधा जा सकता है ,घोड़े की लगाम और ऊँट की नकेल की तरह ।पुतली के इशारे पर नाचता है पूरा तंत्र ।बर्दाश्त से बाहर होने पर जनता नचाती है तंत्र को ।इसीलिए तलवार की धार पर चलने की कला ही तंत्र का सन्तुलन बना सकती है।मुर्दों के साथ मस्ती लेने के लिये भी शिव होने की जरूरत है। खेलें मसाने में होली अन्यथा भूत प्रेत पिशाच छोड़ने वाले नहीं।
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Tuesday, November 8, 2022

भूत की जुगाली

भूत की जुगाली 

# मूलचन्द्र गौतम

सृष्टि के समस्त जीवों पर शोधकर्ताओं के निष्कर्षों में जुगाली पर विशेष रूप में कोई शोध नहीं हुआ है।अब तक ऊँट की जुगाली मशहूर थी लेकिन जब से उसने जुगाली के बाद बिसलेरी का विज्ञापन किया है तबसे उसका यह दर्जा छिन गया है।जुगाली में उसे समाधि की तन्मयता का ब्रह्मानंद प्राप्त होता था जो अब नहीं मिलता।रसखान को गायों की जुगाली पसंद थी जिसमें महारास का आनंद था ।रहीम कबूतर को दुनिया का सबसे सुखी जीव मानते थे।वह  गुटरगूँ करते हुए जब मस्ती में आता था तो क्या कहने ?घोड़े को लगाम में जुगाली का आनंद प्राप्त होता था जिसकी आड़ में वह अपनी गुलामी भूल जाता है और उसी को अपनी जिंदगी समझ लेता है।

कबूतर की तरह जुगाली में बन्दर भी कम नहीं है लेकिन इसकी भूख कभी शांत नहीं होती ।इसके गलुए कितने भी भरे हों यह कभी तृप्त नहीं होता।चौबीसों घण्टे जुगाली में रत ।नुकसान करने के अलावा इसका कोई काम नहीं।ऊपर से बजरंगबली का वरदहस्त।इसीलिए कोई राजनीतिक दल इन्हें छूने छेड़ने की हिम्मत नहीं करता।अब बजरंगबली जनता के सुप्रीम कोर्ट में सफाई तो देने आ नहीं सकते ,अखबार में विज्ञापन नहीं दे सकते कि उनका इस उत्पाती जीव से कोई नाता रिश्ता नहीं ।

जुगाली में सोशल ऐनिमल आदमी भी किसी से पीछे नहीं लेकिन यह भोजन के बजाय रात दिन भूत भविष्य की योजनाओं की जुगाली में तल्लीन रहता है।पुराने दौर में जुगाली के शौकीन साबुत सुपारी मुँह में रखकर जुगाली का मजा लेते थे ।अब उसकी जगह पान , तम्बाकू और  गुटके तथा पान मसाले में  हर दम  तल्लीन रहते हैं।इनकी पिचकारियों की मॉडर्न आर्ट से देश भर के  तमाम कोने अंतरे और दीवारें रंगी पड़ी हैं।कई बार अति दबाव में  दूसरों के ऊपर रंग बिरंगी होली भी हो जाती है।ज्यादा गम हो जिंदगी में तो उसे गलत करने के तमाम तामसिक माध्यम मनुपुत्र के पास हैं। वर्तमान में जीने की आदत ही नहीं।इसका खुरपेंची दिमाग हरदम खुराफातों में ही लगा रहता है।दोस्तों से ज्यादा दुश्मनों की फिक्र रखता है।इसके जासूस हर पल की खबरों से जीना हराम किये रहते हैं।एक एक से बदला चुकाना इसका एकमात्र परम कर्तव्य है।जियो और जीने दो में इसकी कोई आस्था नहीं।जीने नहीं दूँगा फ़िल्म का सुपर हीरो यही है।

यह विराट पुरुषोत्तम अनेक रूपों में स्वाँग उर्फ लीला करता रहता है।स्वाँग भौतिक जगत हित में तो लीला परमार्थ हेतु ।दोनों हाथों में लड्डू ।पाँचों उंगलियाँ घी में सिर कड़ाही में उर्फ बल्ले बल्ले।किसी का बल्ला फेल हो जाय इसका कभी नहीं होता।इस मायने में यह ब्रह्मराक्षस का बड़ा भाई है।बड़े बड़े आदमी काल से हार गये लेकिन काल को इसी ने हराया है। कालातीत कला का स्वामी ।यमराज इसका दास है और मौत दासी । इसलिए अब यह केवल भूत की नहीं तीनों कालों की जुगाली करता रहता है।टेस्ट ट्यूब बेबी के बाद यह समूची सृष्टि का रचयिता है।
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