Wednesday, March 1, 2023

अमृत से अमरत्व की ओर


# मूलचन्द्र गौतम 

बचपन से ही जो बच्चे नारे लगाते आ रहे हैं तमसो मा ज्योतिर्गमय उन्हें अब नया नारा मिल गया है अमृत से अमरत्व की ओर ।मृत्यु शब्द अब उनकी डिक्शनरी से गायब हो चुका है।शरीर नश्वर है आत्मा अमर है।

अमृत और अमरत्व जीव की आदिम आकांक्षा है जिसके लिये सृष्टि के प्रारंभ से ही पापड़ बेले जा रहे हैं।समुद्र मंथन से भी  सभी देव और दानव अमृत कलश को ही हड़पना चाहते थे ।उनके बीच युद्ध का यही कारण था ।यह युध्द आज भी जारी है इसे मानने में किसी को कोई आपत्ति नहीं है ।अब यह समुद्र मंथन उर्फ अमृत महोत्सव राजनीति के अखाड़े में हो रहा है।बस नाम बदल गये हैं ।अब उन्हें सत्ता और विपक्ष कहा जा सकता है।दलबदलुओं को सुविधा के लिये राहु केतु कहा जा सकता है जो अमृत की तलाश में शीश कटाकर कहीं तक भी जा सकते हैं ।दीन ईमान से उनका कोई वास्ता नहीं ।वे आयाराम गयाराम के रूप में अमरत्व को प्राप्त करते हैं।

महाभारत को घर में रखना वर्जित है क्योंकि  घर में महाभारत कोई नहीं चाहता जबकि इसी का एक अंश    अमरत्व के संदेश गीता के रूप में बड़ा आदरणीय है लेकिन जब से टीवी पर इसका प्रसारण हुआ है हर घर में मिनी महाभारत चालू हो गया है ।सीरियलों में इसका बहुविध  व्यावहारिक विस्तार देखा जा सकता है जहाँ कुचक्र और षडयंत्र के अलावा कुछ नहीं ।

रामजी ने तमाम राक्षसों का वध करके उन्हें अपने परम धाम में स्थान दिया था ।केवल विभीषण ही एकमात्र ऐसा बंदा है जो रामजी का परमप्रिय होते हुए भी रामभक्तों में आजतक आदर प्राप्त नहीं कर पाया है ।कोई भी अपने बच्चों का नाम  उसके नाम पर नहीं रखना चाहता ।जाहिर है कि यह हकीकत से ज्यादा दिखावे की भक्ति है ।रामजी भी जानते हैं कि अंदरूनी तौर पर यह रावण भक्ति है।

प्रयागराज में कुंभ बारह साल बाद आता है ।अमृत कुंभ  से छिटकी बूंदों को लूटने करोड़ों की भीड़ जुटती है ।परीक्षा में फेल बच्चों को कुंभ के उदाहरण से तसल्ली दी जाती थी कि अगले साल पास हो जाओगे लेकिन पप्पू है कि बारह साल से फेल हो रहा है जबकि विज्ञापन उसे हर बार पास कर रहे हैं। तीन साल की कुंभी और छह साल के अर्धकुंभ से भी उसे कुछ हासिल नहीं हुआ । पंचवर्षीय योजना और पंचशील भी बेकार सिद्ध हुए हैं ।क्या यह उसके खिलाफ कोई गहरी साजिश है ? उसे उम्मीद है जैसे बारह साल बाद घूरे के दिन फिरते हैं उसके भी फिरेंगे और कहानी का अंत सुखद होगा और जनमानस कहेगा कि जैसे उनके दिन फिरे वैसे सबके फिरें ।लेकिन राक्षस उसके पीछे हाथ धोकर पड़ गये हैं उनका कुतर्क है कि कुत्ते की पूँछ को बारह साल नली में रखो तब भी वह सीधी नहीं होगी ।इससे पप्पू मायूस है कि क्या उसे धीरे धीरे पप्पी बनाने की साजिश है?आखिर बारह साल का समय बहुत लंबा होता है और तब तक तो जिंदगी ढलान पर होगी ।

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