Tuesday, August 15, 2023

दामोदर दीक्षित

विदेश यात्रा के मार्गदर्शक आँकड़े ,इतिहास और रोजनामचा
# मूलचन्द्र गौतम

सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ 
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ 
~ख़्वाजा मीर दर्द

दुनियाभर के रहस्यों की जानकारी और आविष्कारों की जड़ में यात्राओं का बड़ा योगदान रहा है ।अंतरिक्ष विज्ञान आज भी ग्रहों उपग्रहों तक की यात्राओं की तैयारी कर रहा है ।विश्वभर के भूगोल खगोल के इतिहास की खोज यात्राओं से ही संभव हुई है इन यात्राओं ने जो इतिहास बनाया है वह आज भी हमें प्रेरित करता है ।
दामोदर दत्त दीक्षित भी यात्राओं के मौके और बहाने  की तलाश में रहते हैं ।उनके ये सपने यात्रा वृतांत की तीन किताबों में मौजूद हैं । उन्होंने एक सामान्य पर्यटक की तरह केवल शौकिया यात्राएं नहीं की हैं ।अमेरिका, इंग्लैंड ,यूरोप और जापान की उनकी यात्राएं इन देशों के कुछ ऐसे तथ्यों , घटनाओं,आंकड़ों और इतिहास की परतें खोलती हैं जो  कभी इन यात्राओं में जाने पर आम पाठक के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकती हैं ।

दीक्षित जी ने इन यात्राओं को दैनंदिनी उर्फ डायरी उर्फ रोजनामचे के शिल्प में नित्यकर्म की तरह निःसंकोच दर्ज किया है ।जगने से लेकर सोने तक की क्रियाओं और घटनाओं का आद्योपांत विवरण कुछ लोगों को उबाऊ होने  की हद तक अरुचिकर लग सकता है ।इस मायने में यह वेल केलकुलेटेड डायरी है जीवन की तरह  ।पाठकों को उनकी काफी व्यक्तिगत किस्म की जानकारियाँ ,रिश्तेदारियाँ और पुनरावृत्तियाँ प्रवाह में बाधक लग सकती हैं लेकिन वह निजी लेखकीय स्वतंत्रता और अस्मिता का सवाल है ,चुनाव है ,जहाँ निजी और सार्वजनिक में कुछ भी गोपनीय नहीं है और यह साहस और जोखिम का मामला है ।

फिलहाल हिंदी की जड़ दुनिया में यह निरर्थक किस्म की बहस चल रही है कि डायरी साहित्य की पवित्र मुख्यधारा में नहीं आती ।साहित्य के फुटकल खाते में भी उसकी कोई जगह नहीं बनती जबकि तमाम महान  दार्शनिकों और लेखकों की डायरियों के विधागत कॉकटेल  ने अद्भुत तथ्यों और रहस्यों को उजागर किया है।उनकी दिलचस्प जानकारियों को और किसी शिल्प में अभिव्यक्त ही नहीं किया जा सकता था ।मुक्तिबोध ने तो एक साहित्यिक की डायरी में बड़ा गम्भीर विमर्श प्रस्तुत कर दिया था ।

एक औसत भारतीय आदतन बचतप्रेमी और किफायती होता है ।इसलिए वह विदेश में  आब्सेशन की हद तक निरंतर मुद्रा के विनिमय से भयाक्रांत रहता है ।डालर ,पौंड और यूरो का आतंक सबसे ज्यादा है ।दीक्षित जी भी इसके अपवाद नहीं हैं ।वे प्रायः अवमानना की हद तक भारतीय रुपये और डालर तथा यूरो की तुलना करते रहते हैं जबकि जापान यात्रा में येन का कोई जिक्र तक नहीं करते लेकिन बात साहित्य और साहित्यकार की प्रतिष्ठा की हो तो धन तुच्छ हो जाता है।वेनिस के मशहूर कैफे फ्लोरियन जहाँ महान कवि लार्ड बायरन बैठा करते थे ,में दीक्षित जी भी काफी क्यों न पीयें ?ऐसे में दीक्षिताइन का  महंगाई विरोधी व्यावहारिक अर्थशास्त्र का त्रिया हठ दीक्षित जी के बाल हठ से हार जाता है ।यानी दो कप केपुचिनो काफी  भारतीय मुद्रा में 2625 रुपये की ।'जब कवि बड़ा है ,तो पैसे भी बड़े खर्च करवायेगा '(रोम से लंदन तक पृष्ठ 53)।भारत में बड़े से बड़े रचनाकारों  को लेकर यह व्यापारिक  प्रवृत्ति अभी दुर्लभ है ।

भारत का कोई भी व्यक्ति जब विदेश यात्रा करता है तो जाहिर है वह देश की स्थितियों की तुलना किये बगैर रह नहीं सकता ।कई बार तो राष्ट्रद्रोह की हद तक औपनिवेशिक दृष्टि से  देश और देशवासियों को धिक्कारता प्रतीत होता है ।यात्री गोबर पट्टी का हो तो क्या कहने ?दीक्षित जी भी इस पीड़ा से त्रस्त हैं ।अमेरिकन कार्य दक्षता की तुलना में पंद्रह मिनट का काम कई दिनों में होता ।"एक तो कर्मचारी ही सही समय पर न आये होते ।फिर थोड़ी देर आपस में बात करते ,चाय मंगाकर पीते।इसके बाद काम शरू करते हर व्यक्ति का कार्य करने के बाद सुस्ताते ।....यह भी संभव है ,कह दिया जाता कम्प्यूटर खराब है ,कल आइयेगा।यह एक कटु सत्य है जिससे इंकार करना सच्चाई को झुठलाना होगा "(अटलांटिक -प्रशांत के बीच 126)इसके अलावा नीदरलैंड के होटल के काउंटर पर रखे जूस के कंटेनरों पर 'हमारे लोग कई कई ग्लास जूस पी रहे थे और कंटेनर खाली करने पर आमादा थे ,इस बात से बेखबर कि उनके इस आचरण से देश की भद पिट रही है ,हमारी छवि मुफ्तखोरों ,मरभुक्खों की बन रही है '(रोम से लंदन तक ,104)इससे भी ज्यादा हद तो तब हुई जब दल की एक सदस्या ने एक खूबसूरत चम्मच अपने हैंडबैग के हवाले कर दिया (वही 107)इस तरह की कितनी ही शर्मनाक खबरें रोजाना मीडिया में आती रहती हैं ।दीक्षित जी लास वेगस में फव्वारों की नियमित सफाई को देखकर पीड़ित हैं कि "हमारे देश में यही नहीं है ।मेंटेनेंस यानी अनुरक्षण और उसके महत्व की ओर व्यवस्था का ध्यान नहीं जाता" हर विभाग बेहाल है ।सड़क, बिजली, टेलीफोन यहाँ तक कि "जितने गंदे सार्वजनिक शौचालय अपने देश में होते हैं ,उतने शायद ही कहीं होते होंगे।"(जापान, फिर अमेरिका 200)क्या इसी ब्रेन ड्रेन के चलते विदेश में स्थायी रूप से बसे लोग देश नहीं लौटना चाहते ?

संवेदनशील रचनाकार और इतिहासविद होने के नाते दीक्षित जी विश्व की तमाम घटनाओं के बारे में एक निश्चित राय रखते हैं ।अश्वेत समुदाय अमेरिकी वैभव के कालीन में टाट का पैबन्द है।मेक्सिको के मजदूरों को यहाँ "दयनीय भाव से देखा जाता है, इन पर चुटकुले बनाये जाते हैं ,व्यंग्य कसा जाता है ।गरीबों का ,वंचितों का,प्रवासियों का ,भिन्न रूप रंग और भिन्न संस्कृति के लोगों का मजाक उड़ाना, उन पर व्यंग्यबाण चलाना शायद सार्वभौमिक और सार्वकालिक कटु सत्य है जिसकी जितनी भी निंदा ,जितनी भी भर्त्सना की जाय कम है "(अटलांटिक-प्रशांत के बीच 40)यूएस होलोकास्ट मेमोरियल म्यूजियम में नाजी अत्याचारों का विस्तृत प्रदर्शन है ।दीक्षित जी अत्याचार मात्र के विरोधी हैं ।इसलिए उनका जेनुइन सवाल है कि यहाँ "विश्व के अन्य देशों में भी राजसत्ता ने अत्यंत निकृष्ट और घृणित अत्याचार किये हैं ,यातनाएं दी हैं और महाविनाश का हेतु बने हैं ।उनको क्यों नहीं दिखाया गया ?"(वही 115)लास वेगस के मांडले बे कसीनो में लेनिन की सिर कटी प्रतिमा को देखकर उन्हें तकलीफ होती है "लेनिन की विचारधारा से कोई असहमत हो सकता है,पर इसका यह अर्थ नहीं कि उन्हें इस तरह अपमानित किया जाय भले ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ ली जाय "(जापान फिर अमेरिका 172)वे तो फ्रांस की महारानी मेरी अन्त्वानेत की फाँसी को भी  तथाकथित क्रांतिकारियों का गलत निर्णय मानते हैं ।"राजशाहियों ने जो कुकृत्य किये ,कई क्रांतियों के क्रान्तिकारियों ने भी सत्ता हथियाने के बाद वही कुकृत्य किये तो फिर फर्क क्या रह गया ?(रोम से लंदन तक  139)यह सहज मानवीय दृष्टि इतिहास को एक नया आयाम देती है ।इसी वजह से वे वियतनाम युद्ध में अमेरिकी सैनिकों का मनोरंजन करने गयी भारतीय  विश्वसुंदरी रीता फारिया का जाना उचित नहीं मानते भले ही यह उनके करार की मंजूरी या मजबूरी क्यों न हो (अटलांटिक प्रशांत के बीच 39)यह सौंदर्य प्रतियोगिताओं के पीछे की वर्चस्व की, व्यापार की राजनीति है जिसे सामान्य लोग समझ नहीं पाते ।
दीक्षित जी की रुचियों का क्षेत्र वैविध्यपूर्ण है जिसका परिचय लगातार मिलता रहता है ।सुरुचिपूर्ण शाकाहारी भोजन के साथ खेलों में भी उनकी दिलचस्पी है।स्टेफी ग्राफ उनकी परमप्रिय खिलाड़ी है जो लास वेगस के पास समरलिन की पाश कालोनी में अपने अमेरिकी पति आंद्रे अगासी के साथ सपरिवार रहती है ।दीक्षित जी को उसके तमाम रिकार्ड मुंहजबानी याद हैं ।

दीक्षित जी का बचपन का सपना था कि यूरोप -विशेषकर इटली ,इंग्लैंड, स्विट्जरलैंड, जर्मनी और फ्रांस की यात्रा जो हकीकत बन चुका है ।ट्रेवल एजेंसी के माध्यम से की गयी उनकी योरप और इंग्लैंड की यात्रा के विवरण गम्भीर जानकारियों से समृद्ध हैं ।उनके दो पुत्र अमेरिका में सुव्यवस्थित हैं इसलिए अब वह उनका दूसरा घर है ,जहाँ जाकर वे साधिकार  भारतीय संस्कारी बेटों की क्लास ले सकते हैं ।उनके कारण ही अमेरिका यात्रा सहज और सुचारू पारिवारिक तरीके से सम्पन्न हो सकी ।

दीक्षित जी का सम्पूर्ण यात्रा पथ प्रामाणिक स्रोतों से ली गयी  जानकारियों से भरा हुआ है ।इससे पता चलता है कि यह सारा काम उन्होंने पूरी सजगता और तैयारी के साथ सुनियोजित तरीके से सम्पन्न किया है ।यहाँ उनकी इस यात्रा के सम्पूर्ण स्थलों का विवरण देना कोई उद्देश्य नहीं है लेकिन उदाहरण के तौर पर देखना हो तो टोक्यो टावर के उनके विवरण को देखा जा सकता है ।"1958 में निर्मित 333मीटर ऊँचा टोक्यो टावर वास्तव में ब्राडकास्टिंग टावर है जिससे रेडियो दूरदर्शन का प्रसारण होता है ।यह पेरिस के सुप्रसिद्ध आइफल टावर से भी ज्यादा ऊँचा है जिसकी ऊँचाई 324 मीटर है ।फिर भी टोक्यो टावर का वजन आइफल टावर से कम है।आइफल टावर का वजन लगभग7000 टन है जबकि टोक्यो टावर का वजन लगभग4000 टन है जो हल्की पर मजबूत स्टील से निर्मित है ।टोक्यो टावर में दो दर्शन दीर्घाएं हैं जो क्रमशः 150 मीटर और 250 मीटर की ऊंचाई पर हैं ।टोक्यो टावर में एक एक्वेरियम भी है जो आकर्षण का केंद्र है ।(जापान फिर अमेरिका 26)ठीक यही स्थिति हर पर्यटन स्थल की जानकारी की  है जिसकी पुनरावृत्ति और विस्तृत विवेचन की यहाँ कोई आवश्यकता नहीं है ।पाठक उसका अनुभव स्वयं  कर सकते हैं ।
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# शक्तिनगर ,चंदौसी ,संभल 244412
मोबाइल 9412322067

Friday, August 11, 2023

पेट में दाढ़ी

पेट में दाढ़ी 

# मूलचंद्र गौतम

जब दाढ़ में अक्ल हो सकती है और दाढ़ी में तिनका तो पेट में दाढ़ी क्यों नहीं हो सकती ? 

दाढ़ी मूँछ पर अभी तक पुरुषों का वर्चस्व है ।इन्हीं के चलते शेर बब्बर शेर कहलाता है।उसकी पत्नी या प्रेमिका को कोई बब्बर शेरनी क्यों नहीं कहता ?जब पण्डित की पण्डिताइन हो सकती है तो बब्बर शेरनी क्यों नहीं हो सकती?इस स्त्री विमर्श में भी बड़े बड़े झोल और झंझट हैं ।नासमझ आदमी के कदम कदम पर  फँसने का खतरा है।यही हाल हर विमर्श का है ।घुसे कि फंसे ।इसीलिए हर अक्लमंद आदमी  नवाचार की कोई नयी लीक बनाने के बजाय  जिंदगी भर कदमताल करता रहता है लेफ्ट राइट लेफ्ट और एक दिन अचानक  बेदाग रिटायर हो जाता है इत्मीनान से ।ज्यों की त्यों धरि दीनी चदरिया।कबीर तो कोई सरकारी नौकरी नहीं करते थे फिर उन्हें यह खयाल कहाँ से आया ?कवि आखिर मंत्र दृष्टा ऋषि से कोई कम थोड़े ही होते हैं ।बाबा तुलसीदास को ही देख लो आजकल  पक्ष विपक्ष की हर चुनाव चर्चा  और विवादों के केंद्र में हैं ।

तो बात हो रही थी पेट में दाढ़ी की और पहुँच गये आकाश पाताल ।लंतरानियों में बस यही झंझट होता है कि  जरा सी चूक हुई कि एक्सीडेंट हुआ ।गाँठ उलझी कि फिर सुलझने में घण्टों महीने साल दर साल  क्या पूरी जिंदगी निकल जाती है और पल्ले कुछ नहीं पड़ता ।बस देखते रहो भकुआये से गुजरते हुए कारवाँ के गुबार को या गुब्बारे को ।

तो बात पेट में दाढ़ी की हो रही थी ।हमारे मुंशी जी बताते थे कि वृद्ध दो प्रकार के होते हैं एक आयु वृद्ध दूसरे ज्ञान वृध्द ।आयु का ज्ञान से कोई सम्बन्ध नहीं होता भले हर बुड्ढा खुलेआम दावा ठोंकता रहे कि उसने बाल धूप में सफेद नहीं किये हैं ।  बेअक्ल से बेअक्ल आदमी अक्ल में खुद को किसी से हेठा नहीं समझता ।अंग्रेजी में भी कहावत है कि चाइल्ड इज द फादर ऑफ मैन । बच्चे यों भी अक्सर बड़ों के कान काटते हैं। इसलिए कभी कभार कोई बच्चा जब बड़ी बड़ी बातें करने लगता है तो लोग समझते हैं कि इसके पेट में कोई दाढ़ी वाला पितर बैठा है लेकिन कई बार जब अति हो जाती है और वह दाढ़ी नकली निकलती है तो बड़ी फजीहत होती है ।

 बाल सफेद हो जाना सीनियर सिटीजन की बपौती थोड़े है। अब तमाम फैशनेबल युवाओं ने बाल सफेद और रंगीन  करा लिये हैं ।इसीलिए जब से इन सीनियरों की हर तरह की  सब्सिडी छिनी है परेशान हैं ।सुबह शाम झुंड बनाकर सड़कों पर ,पार्कों में चौराहों पर सरकार को कोसने में दत्तचित्त हैं।पुरानी पेंशन ने तो सरकारें तक बदल दीं ।यह सब उन नेताओं की विफलता थी जिनके पेट में दाढ़ी नहीं थी ।चेहरे पर मोटी मोटी दाढ़ी मूँछ वाले ये नासमझ मुफ्त के राशन को चुनाव जीतने की गारंटी मान कर फिजूल की थोथी  हवाई बातों में तल्लीन थे। जनता की काम की बात से इनको कोई लेना देना नहीं था ।वे भूल गये कि जिस मुफ्तखोर जनता को ये पाल पोस रहे हैं उसे सब कुछ मुफ्त चाहिए।शेर की सवारी करने वाले भूल गये कि भूखा शेर उन्हें खा भी सकता है ।

इसलिए भारत को भविष्य में ऐसा नेता चाहिए जिसके चेहरे पर दाढ़ी हो न हो पेट में जरूर हो ।
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# शक्ति नगर ,चंदौसी, संभल 244412
मोबाइल 9412322067

लद्दाख यात्रा

यात्रावृत्त

लद्दाख यात्रा :370 के हटने के बाद 

# मूलचंद्र गौतम

1962 के चीन युद्ध के दौरान बड़े भाई श्री भगवती प्रसाद  देशभक्ति के उत्साह में एम ए भूगोल का प्रीवियस छोड़कर आर्मी एजुकेशन कोर में सीधे हवलदार इंस्ट्रक्टर भर्ती हो गये थे ।पचमढ़ी में ट्रेनिंग के बाद उनकी नियुक्ति सीधे लद्दाख बॉर्डर पर हुई थी ।सियाचिन और चुशूल बॉर्डर  से दो महीने की छुट्टियों में जब वे घर आये तो वहाँ के किस्से सुनाया करते थे ।वहाँ की नियुक्तियों में फौजियों को स्पेशल एलाउंस मिलता था । पैंगोंग देखना हमारा प्रिय सपना था ।हम उनकी ऊनी जर्सी ,जैकेट, मोजे और पीटी शू पहनकर देखते थे ।जैकेट तो इतनी गर्म थी कि पसीना आ जाये ।बर्फ में रहनेवाले सैनिकों को ठंड से बचाने के लिए यह व्यवस्था जरूरी थी ।लद्दाख साइड में c/o 56 एपीओ और नॉर्थईस्ट में 99 एपीओ उनका स्थायी पता था जिस पर चिट्ठियां तो आती जाती थीं लेकिन खोज खबर कोई नहीं मिल सकती थी।
तब से ही फौज में जाने की तमन्ना दिल में रही जो मिलिट्री साइंस के अध्ययन तक सीमित रह गई ।कई युद्धों में भाग ले चुके कर्नल मैत्रा के लिए युद्ध का मैदान हस्तामलकवत था ।सैंड मॉडल से युद्धों को समझना इतना आसान नहीं होता ।फौजी जीवन की कठिनाइयों की चर्चा घर में होती रहती थी ।खासकर युद्धकाल का भय घर में पसरा रहता था ।किसी युद्ध के बाद भाई साहब घर आते तो माँ सत्यनारायण की कथा जरूर करवाती थी ।पूजा पाठ वाले भाई बर्फीले प्रदेशों में भी शराब छूते तक नहीं थे जबकि उन्हें यह मुफ्त उपलब्ध थी ।बताते थे वहाँ बर्फ में एक साधु नंगे बदन तपस्या में लीन रहते थे ।पिताजी के बहुत कहने पर एकाध बार रम की कुछ बोतलें जरूर ले आये थे ।

आतंकवाद से पीड़ित कश्मीर और लद्दाख में जाना ही जान जोखिम में डालना था पर्यटन की तो कोई सोच भी नहीं सकता।धारा 370 हटने के बाद पर्यटन की संभावनाएं बढ़ी हैं हालांकि आज भी यह हिम्मत का काम है ।जनमानस से दुर्घटना का भय एकदम नहीं निकल जाता ।

फिलहाल जब बेटे ने जब सपरिवार कश्मीर जाने का मन बनाया तो मैंने भी लद्दाख यात्रा की योजना बना ली । 28 जून 2023 को वरिष्ठ नागरिकों के एक ग्रुप में जाना तय हो गया ।मेरे साथी बने लखनऊ के सेवानिवृत्त बैंककर्मी यशवीर सिंह ।मार्ग के विकल्प के रूप में हमने हर प्रकार से सुरक्षित हवाई सफर चुना । वाया मनाली या श्रीनगर सड़क मार्ग से यात्रा प्रकृति दर्शन के कारण ज्ञानवर्धक और मनोरंजक हो सकती थी लेकिन यह युवाओं के लिए मुफीद है। श्रीनगर से होते हुए लद्दाख के कारगिल जिले के पाकिस्तानी मोर्चे द्रास को देखा जा सकता है जबकि लेह से पाकिस्तान और चीन के दोनों मोर्चों का जायजा लिया जा सकता है ।बाद में हमने बाइकों से अकेले दुकेले युवाओं  खासकर विदेशी युवतियों को  इस मार्ग पर देखा तो उनके साहस को सलाम करना पड़ा ।यह साहस एवरेस्ट विजय से कम नहीं है। 

छोटे से लेह एयरपोर्ट पर उतरते ही भारतीय सेना की  गम्भीर सुरक्षा का अहसास होता है ।फोटोग्राफी एकदम वर्जित है।योजना के मुताबिक  मार्गदर्शक सोनम मौजूद हैं ।वे हमको लेकर होटल लद्दाख इन आते हैं । वेलकम ड्रिंक के रूप में कहवा पीकर हम कमरे में व्यवस्थित हो चुके हैं । कमरे से हिमालय की बर्फीली चोटियों का मनमोहक दृश्य आकर्षक है ।सूर्य की किरणों से बर्फ रंग बदल रही है जिसे पकड़ना दुर्लभ है ।पहले दिन आराम से शरीर को आगे की कठिन यात्रा के लिए तैयार करना है ।ऊँचाई पर आक्सीजन की कमी महसूस होती है ।धीरे धीरे बॉडी एडजस्ट हो रही है ।मैंने होटल से बाहर निकलकर आस पास का जायजा लिया है ।पर्यटकों से भरे हुए हैं सारे होटल और आते जाते वाहन ।सोनम ने सभी सात यात्रियों को यथोचित निर्देश दिये हैं ।अगले दिन सुबह आठ बजे तैयार रहना है ।रात के भोजन के बाद गहरी नींद आ गयी है।

29 जून 2023

सुबह नाश्ते के बाद ट्रेवलर 1008 यात्रा के लिये तैयार है।यात्री गाड़ी के नम्बर को लेकर सब शुभारंभ की चर्चा में व्यस्त हो गये हैं।सबसे पहले हमें हॉल ऑफ फेम में भारतीय सेना के तमाम जाँबाजों के कारनामों से परिचित कराया गया है ।अद्भुत हैं उनकी वीरता के किस्से जो हकीकत हैं ।परमवीर चक्र विजेताओं की गाथाएं तो गजब हैं ।लता  मंगेशकर का गाया हुआ गीत ऐ मेरे वतन के लोगो ...मन में गूँजने लगता है ।लोग फोटोग्राफी में तल्लीन हो गये हैं ।
 मैग्नेटिक हिल तक आते आते ड्राइवर ने गाड़ी को ब्रेक लगा दिये हैं लेकिन वह है कि आगे पहाड़ की ओर सरकती जा रही है ।सारे ड्राइवर लोग पर्यटकों को यह कारनामा दिखाकर खुश हैं जबकि यह उनका लगभग रोज का काम है।आगे सिंधु और झंस्कार नदी के संगम पर पहुंचते हैं । तेज हवा और अंधड़ से आँखों में धूल घुस रही है ।खड़े होना मुश्किल हो रहा है ।चश्मे की कमी खल रही है ।दोनों नदियों का जल  प्रयाग के संगम की तरह बिल्कुल अलग दिख रहा है ।सिंधु यहाँ से पाकिस्तान की सीमा की ओर बढ़ती है ।कुछ साहसी लोग राफ्टिंग का आनंद ले रहे हैं ।
लौटते में गुरुद्वारा पत्थर साहिब की यात्रा और लंगर चखने की तैयारी है ।गुरु नानक के यात्रा मार्ग को देखकर लगता है उन्होंने साधनहीनता में भी कितने बीहड़ प्रदेशों की यात्रा की और मुश्किलों का सामना किया ।ऊपर पहाड़ी पर उनका साधना स्थल है ।अनेक किंवदंतियां इस गुरुद्वारे से जुड़ी हुई हैं ।इसका संचालन भारतीय सेना के जिम्मे है ।विशालकाय हाल में अनवरत लंगर चल रहा है ।सारे लोग पूरे विधि विधान और श्रद्धा से गुरुद्वारे में प्रवेश कर रहे हैं ।देसी घी का हलवा सबकी हथेलियों पर प्रसाद के रूप में निरंतर वितरित किया जा रहा है ।बाहर चाय का लंगर चल रहा है ।कारसेवकों का जत्था बर्तन धोने में लगा है ।धर्म की सामूहिकता और सेवा का इससे बड़ा उदाहरण विश्वभर में कहीं नहीं है ।  
 
पहले दिन ही प्रमाणित हो गया कि लद्दाख को पहाड़ी रेगिस्तान क्यों कहते हैं।चारों तरफ सूखे नंगे पहाड़ , पत्थर और रेत ही रेत  । दूर दूर तक हरियाली का कोई  नामोनिशान तक नहीं।

लद्दाख बौद्ध धर्म के केंद्र के रूप में विख्यात है ।विशालकाय मठ और गोम्पा जगह जगह मौजूद हैं ।स्तूपों के प्रतीक सब जगह विद्यमान हैं ।सिक्किम यात्रा में भी बौद्ध धर्म के इस तरह के केंद्रों का अनुभव मुझे था । भव्य शांति स्तूप को देखकर मुझे राजगीर में देखे जापानी बौद्ध मंदिर की याद आ गयी ।वहाँ का सिंगल सीट वाला रोप वे तो बेहद रोमांचक था ।अनीश्वरवादी बुद्ध की प्रतिमाओं की विविधता आकर्षक है ।भारतीय मेधा ने तमाम देवी देवताओं की प्रतिमाओं को अपनी नैसर्गिक प्रतिभा से जो रूप दिया है वह अद्भुत कल्पनाशीलता से ही संभव हो सकता था ।मूर्तिकला और स्थापत्य के विशेषज्ञ आज तक उनके रहस्यों के उद्घाटन में लगे हुए हैं ।लद्दाख की जनता में बुद्ध के प्रति पूरा भक्ति भाव है ।गाड़ी में भी रिनपोछे का आकर्षक फोटो लगा है ।सोनम इन तमाम स्थलों का ब्यौरा सबको दे रहा है ।कुछ अशक्त लोग नीचे ही बैठकर स्तूप की सुंदरता को निहार कर खुश हैं ।
लेह पैलेस आज की यात्रा का आखिरी पड़ाव है ।सत्तरहवीं सदी में राजा सेंगगे नामग्याल ने इस राजमहल का निर्माण कराया था ।नौ मंजिले इस महल का स्थापत्य भव्य है ।बस दरवाजे थोड़े नीचे हैं जिनसे पर्यटकों का सिर बार बार टकराता है ।हिम्मत सिंह अपनी फोटोग्राफी में व्यस्त हैं ।ऊपर की मंजिल पर महल की जानकारी देता एक शो चल रहा है जिसे लोग बड़े गौर से सुन और देख रहे हैं।बाहर तमाम तरह की लोकल दवाओं और सामानों की दुकानें हैं ।दुकानदार बड़ी आशाओं से पर्यटकों को आमंत्रित कर रहे हैं लेकिन कोई कुछ नहीं खरीदता ।

सोनम ने आखिर में सबको लेह के बाजार के बीच खड़ा कर दिया है ।खूबसूरत मस्जिद के सामने बाजार की व्यवस्था गंगटोक के महात्मा गांधी मार्ग की याद दिलाती है ।बीच में बैठने की सीटें हैं और दोनों ओर दुकानें हैं ।दो परिवार सोनम के साथ पश्मीने और कपड़ों की खरीदारी कर रहे हैं । राजू गुप्ता ने पत्नी को खरीदारी के लिए दस हजार का बजट निर्धारित कर दिया है ।मैंने एक आइसक्रीम ली है ।हिम्मत सिंह सब्जियों तक की फोटो बड़ी ललक से ले रहे हैं ।बताते हैं इन्हें वे किसी ब्लॉग में इस्तेमाल करेंगे ।सोनम ने गाड़ी में ही कल का कार्यक्रम बता दिया है ।

30 जून 2023

आज नुब्रा वैली की ओर प्रस्थान है ।नाश्ते के बाद सबने अपनी अपनी जगह मोर्चा संभाल लिया है ।गुप्ताजी खाने पीने के शौकीन हैं ।दो बड़ी अटैचियों में भरपूर सामान है ।हर होटल का मैन्यू वही तय करते हैं ।हमने उन्हें टोली का नायक बना लिया है।आलू जीरा उनकी प्रिय सब्जी है ।हल्दीराम के काफी पराठे उपयोग न होने के अभाव में गायों को खिला दिये गये हैं ।उपमा मुझे भी खिलवाया है ।उनकी पत्नी भी पाक कला में कुशल हैं । गुप्ताजी पुराने फिल्मी गानों के शौकीन हैं तो सोनम को बता दिया है कि कौन कौन से गाने बजेंगे ।कहीं कहीं इंटरनेट के अभाव में गाने चल नहीं पाते तो डाउनलोड से काम चलाना पड़ता है ।सड़कों को लेकर गुप्ताजी गदगद हैं और इसे मोदीजी का कारनामा बताकर बम बम ।रास्ते में मिलिट्री के ट्रकों का काफिला गुजरता रहता है ।मार्ग संकरा होने की वजह से लोकल ड्राइवर काफिले के गुजरने का धैर्यपूर्वक इंतजार करते हैं ।कोई कोई भला फौजी ड्राइवर हाय हलो भी कर लेता है।रास्ता निरन्तर जोखिमभरा होता जाता है ।सड़कें निहायत खस्ताहाल हैं ।अब गुप्ताजी चुप हैं कि लोगों को क्या कहें । इसलिए रिश्वत में बिस्किट और चूरन की गोलियां खिलाकर काम चलाते हैं ।जगह जगह फौजियों के कैम्प और व्यवस्थाएं हैं ।उनके कठोर तप का अंदाजा ही लगाया जा सकता है ।

18379 फीट की ऊँचाई पर स्थित खारदुंग ला पास के पास पहुँचते ही सांस लेने में कठिनाई महसूस होने लगती है ।तमाम डीजल का धुआं उगलते वाहनों के कारण वातावरण दमघोंटू हो रहा है ।कुछ लोग कहवा पीकर राहत महसूस कर रहे हैं ।

नुब्रा घाटी में थोड़ी सी हरियाली नजर आ रही है ।रेत की रेगिस्तानी आकृतियों में एक अलग तरह का कलात्मक सौंदर्य है ।दो कूबड़ वाले ऊँटों का झुंड सैलानियों की प्रतीक्षा में है कि कब उनके मालिकों को काम मिलेगा ।ऊँटों के छोटे छोटे बच्चे बेहद खूबसूरत लग रहे हैं ।जवान ऊँटों के तने हुए डबल कूबड़ अत्यंत आकर्षक हैं ।बूढ़ों के लटके झूलते कूबड़ उनकी वृद्धावस्था के साक्ष्य हैं हालांकि सवारी उन्हें भी ढोनी हैं ।युवा युगल इस राइडिंग के लिए विशेष प्रसन्न हैं।युवतियों का ऊँटों पर उठते बैठते हुए भयभीत होना अद्भुत आनंद का सृजन करता है ।चार चार पांच पांच ऊँटों की कतार के पीछे उनके बच्चों का चलना जैसे भविष्य की ट्रेनिंग है ।

नुब्रा घाटी में पूरी तम्बुओं की  होटलनुमा बस्ती है जिनमें हमें ठहरना है ।हमारे होटल के बगल से बहती नदी की कलकल ध्वनि नीरवता को भंग कर रही है ।मसाज की  कुर्सीनुमा मशीनें पर्यटकों की थकान उतारने की प्रतीक्षा कर रही हैं ।टेंट में रहने का यह पहला अनुभव है ।

1 जुलाई 2023 

आज पाकिस्तानी बॉर्डर के पास के आखिरी भारतीय  गाँव थांग तक की रोमांचक यात्रा है ।बीच में दिक्सित में मैत्रेय की प्रतिमा है ।बुद्ध का भावी अवतार मैत्रेय के रूप में ही होना है इसलिए इस स्थान का विशेष महत्व है ।विपस्सना के बाद बौद्ध धर्म में मेरी गम्भीर रुचि पैदा हुई है ।इसलिए मैं बुद्ध और मैत्रेय की प्रतिमाओं के अंतर को देखने की जिज्ञासा रखता हूँ ।बुद्ध की मूर्तियों में मुद्राओं के विशेष अर्थ और अभिप्राय हैं ।इस मायने में मैत्रेय के मुकुट ,भाव भंगिमाओं और मुद्राओं में फर्क है ।

बीच में एक प्रपात को देखते हुए हम थांग पहुँच जाते हैं ।एक चचा भारत पाकिस्तान सीमा के विभाजन का आंखों देखा हाल बयान कर रहे हैं ।काँटों की बाड़ के पीछे घाटी में बसे गाँव  फरनू की ओर इशारा करते हुए बताते हैं कि वहाँ भी उनके परिवार के लोग हैं जो अब कभी इधर नहीं आ सकते ,न वे उधर जा सकते हैं ।दिलों के बजाय सीमा की इस दूरी ने उन्हें अलग अलग रहने को अभिशप्त कर दिया है ।इन जड़ पहाड़ों के बीच देशों के विभाजन का कोई तर्क मानवीय रूप में पल्ले नहीं पड़ता ।मालूम हुआ कि पहाड़ का ऊपरी हिस्सा पाकिस्तान का है और नीचे का हिंदुस्तान का ।चोटियों पर दोनों देशों की सेनाओं के मोर्चे लगे हैं ।चचा के साथ बीस पच्चीस नौजवान दूरबीनों से पूरे मंजर को दिखा रहे हैं ।हमें साफ साफ सेनाओं के जवानों की गतिविधियां दिखाई देती हैं ।ग्लोबल विलेज की धारणाओं के बीच इन दो विलेजों की दूरी का तर्क और फर्क किसी को पल्ले नहीं पड़ता ।डर लगता है कि अचानक गोलाबारी होने लगे तो क्या होगा ?

पर्यटकों की भीड़ भाड़ के बीच कुछ स्थानीय महिलाओं ने अखरोट ,खूबानी और बादाम के पैकेट बिक्री के लिए रख लिए हैं ।चखने के लिए खुले हुए अलग रखे हैं ।मैं एक खूबानी का टुकड़ा चख कर देखता हूँ जो उत्तराखंड की खट्टी मीठी खूबानी से अलग एकदम मीठा है ।सोनम रास्ते में अखरोट और खूबानी के पेड़ों को दिखाता है ।दूसरी ओर खाने पीने के होटल हैं ।हम बड़े भारी मन से इस मंजर को देखकर डेरे की ओर लौट पड़े हैं।रात में आयोजित कैम्प फायर के नाच गाने ने इस गम को गलत कर दिया है।सोनम ने अगले दिन की पैंगोंग यात्रा की तैयारी के निर्देश जारी कर दिये हैं।

2 जुलाई 2023 

पैंगोंग को देखने की हसरत लिए हम गंतव्य की ओर चल पड़े हैं । मौसम में थोड़ी ठंडक है ।मार्ग बेहद कठिन होता जा रहा है ।यात्रियों का हिल हिलकर बुरा हाल है ।सब हँस हँसकर सोनम को कोस रहे हैं किस जन्म का बदला ले रहा है ।वह भी मस्त मगन है ।गुप्ताजी घिसे पिटे गानों को झेल रहे हैं ।हिम्मत सिंह सीटें बदल बदलकर देख रहे हैं कहाँ बैठना ज्यादा आरामदायक है ।गनीमत  रही कि रास्ते में पानी के तीव्र प्रवाहों का सामना नहीं करना पड़ा फिर भी दो चार को पार करना ही पड़ा ।ड्राइवर बेहद कुशल है ।सोनम ने हाल ही में चीनी और भारतीय सेना की ताजा झड़प के केंद्र गलवान वैली को दिखाया है ।झड़प के बाद विद्युत और संचार प्रणाली की व्यवस्था को देखकर  भारतीय सतर्कता का अहसास होता है ।हम देखते हैं कि गलवान में त्रिस्तरीय सुरक्षा का 
 इंतजाम किया गया है ताकि आपातकाल में चीनी सेना को कई मोर्चों पर जूझना पड़े ।काफी पहले तो चीनी सेना तांगसी तक पहुंच गयी थी जहाँ से उसे पीछे खदेड़ा गया ।

पैंगोंग के पास आते ही उसके जल के बदलते रंगों का दृश्य साफ दिखने लगा है ।सोनम ने पहले होटल में जाने के बजाय पैंगोंग के किनारे ही ट्रेवलर को रोका है ।अद्भुत दृश्य है  जल इतना साफ है कि झील का तल साफ दिखता है ।सोनम भारतीय और चीनी क्षेत्र की ओर इशारा करते हुए फोर फिंगर्स को दिखा रहा है जो चीन की सीमा में आता है ।हमें उधर की गतिविधियां दिखाई नहीं देतीं लेकिन सूर्य की किरणों से अठखेलियाँ करती पैंगोंग की लहरें मन मोह लेती हैं ।निश्चित ही थ्री इडियट्स फ़िल्म की शूटिंग के नाते विख्यात पैंगोंग का पर्यटन मूल्य बढ़ गया है ।किनारे किनारे फ़िल्म की तीन विशेष सीटें और आमिर खान और करिश्मा कपूर के स्पेशल स्कूटर के अनेक फोटो दृश्य बना लिए गये हैं जिन पर की जाने वाली फोटोग्राफी की कीमत है ।आमिर के हेलमेट और करिश्मा की ड्रेस में कई युगल खुद को बड़ा ही गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं ।कुछ उम्रदराज महिलाएं भी करिश्माई करतब से पीछे नहीं हैं भले उनके पति आमिर बनने में झेंप रहे हों ।पहाड़ी पर एक ओर सूर्य के सुनहरे प्रकाश की आभा है तो दूसरी ओर क्षीणकाय चंद्रमा अपनी बारी के इंतजार  में है कि उसे भी अपना रूप दिखाने का मौका मिलेगा। ठंड बढ़ गयी है हवा भी इसलिए सबके गर्म कपड़ों का उपयोग अब हो पाया है।इस सारे कार्यक्रम के बाद हम सब अपने अपने कॉटेज में पसर गये हैं लेकिन मेरा मन नहीं भरा है पैंगोंग के सौंदर्य से ।सो मैं अकेले ही निकल पड़ा हूँ ।पैंगोंग के तट पर शिरीष और कई युवा जोड़े मुझे मिल गये हैं जिन्होंने अपने प्यारे अंकलजी के कई फोटो अपने बेहद सेंसिटिव कैमरे से खींचे हैं जो मेरे कैमरे से संभव नहीं थे ।यहाँ सम्भवतः सुरक्षा कारणों से नेटवर्क एकदम गायब है ।उन्होंने अपना नम्बर दिया है कि वे नेटवर्क आते ही मुझे फोटो भेजेंगे ।हमने एक टैक्सी से पूरे पैंगोंग का जायजा लिया है ।मुझे होटल का नाम ही ध्यान नहीं रहा है इसलिए मैंने ड्राइवर को कह दिया है कि जहाँ 1008 नम्बर की गाड़ी खड़ी हो वहीं उतार दे ।इस गाड़ी के नम्बर का महत्व अब पता चला है।सोनम और यशवीर जी सहित सभी चिंतित हैं ।मेरे पहुँचते ही सबने राहत की सांस ली है।मैंने भी उनकी मलामत की है कि मुझे इस तरह के मुर्दों के साथ आना ही नहीं चाहिए था ।
सुबह का पैंगोंग का नजारा शाम से भी ज्यादा खूबसूरत है ।सूर्य की किरणों से जो जलतरंग बज रहा है वह किसी दिव्य आध्यात्मिक अनुभूति से कम नहीं ।समाधिस्थ होने की इससे बेहतर कोई जगह कहीं नहीं हो सकती।

3 जुलाई 2023

लौटने का मन न होते हुए भी मजबूरी है लौटने की ।सोनम ने सबको डरा दिया है कि लेह लौटने का रास्ता आने से ज्यादा कठिन होगा ।चांग ला पास तक आते आते स्थिति काबू में आ चुकी है ।पहाड़ की चढ़ाई के शौकीन बस एक दो लोग थिकसे मोनेस्ट्री को देखने गये हैं ।अकेले सोनम की शृद्धा है बस ।

थ्री इडियट्स के रेंचो स्कूल के क्लास रूम को देखकर सब फिर से फिल्मी जोश से भर उठे हैं ।लद्दाख इन फिर स्वागत के लिए तैयार है ।दोनों महिलाओं को लेकर सोनम फिर उन्हें खरीदारी कराने बाजार ले गया है ।उसने सबसे टूर के अनुभवों का फीडबैक ले लिया है ताकि आयोजकों को सन्तुष्टि मिले ।

कल सुबह सब जहाँ से आये थे वहाँ लौट जायेंगे ।सोनम समयानुसार सबको एयरपोर्ट पर विदा करने की औपचारिकता निभा रहा है ।
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# शक्तिनगर ,चंदौसी, संभल 244412
मोबाइल 9412322067


Wednesday, August 2, 2023

लाइक नालाइक

लाइक नालाइक

# मूलचंद्र गौतम

पुराने जमाने के लायक नालायक डिजिटल मीडिया के दौर में लाइक नालाइक में परिवर्तित हो चुके हैं ।मोबाइल ने  हर वक्त जो हुकुम मेरे आका  टाइप भूत प्रेत जिन्नातों को परमानेंट काम दे दिया है कि इस लकड़ी पर चौबीसों घण्टे चढ़ते उतरते रहो । आसमान के तारों और पेड़ के पत्तों को गिनने से ज्यादा महत्वपूर्ण और कठिन काम है यह । यह ऐसा लाइलाज नशा है कि सुबह उठते ही जीव सूर्यनमस्कार करने के बजाय फेसबुक की लाइक्स और व्यूज को गिनने बैठ जाता है।मनमाफिक लाइक न मिलने पर बंदा बंदी गहरे अवसाद उर्फ डिप्रेशन और मानसिक रोगों में चले जाते हैं ।एंजाइटी आजकल मुख्य रोग है जिसके विषाणु बेहद घातक हैं । इंस्टाग्राम और यूट्यूब ने तो तहलका मचा रखा है ।यहाँ कोई भी खुद को हीरो हीरोइन बना सकता है ।यहाँ यार दोस्त और रिश्तेदार अब इन्हीं लाइक्स से तय होते हैं  जो लाइक करने के बजाय उपेक्षा करते हैं उनको तत्काल नालायकों के बट्टे खाते में डाल दिया जाता है।कोई केवल  औपचारिक लाइक करके चलता बने तो उसकी आँखों में उंगली डालकर कहा जाता है कोई कमेंट तो करो ।कमेंट पसंद न आये तो अलग तरह की फजीहत।यानी आत्ममुग्धता पागलपन की चरम अवस्था तक जा पहुँची है ।इसीलिए मीडिया प्रतिष्ठानों ने फर्जी फ़ॉलोअर्स और लाइक्स का धंधा चला रखा है ।

कुल मिलाकर सोशल मीडिया ने माहौल अनसोशल बना दिया है ।तमाम तरह की दुश्मनी निकालने का अखाड़ा हो गया है सोशल मीडिया। ट्रोल आर्मी अगर किसी मामले में पीछे पड़ गयी फिर तो भगवान भी नहीं बचा सकता। तो यहाँ हर पल फूँक फूँक कर कदम रखने में ही भलाई है अन्यथा किस बात में आपको पुलिस राजद्रोह में  धर लेगी कोई ठिकाना नहीं ,फिर लगाते रहो कोर्ट कचहरी के चक्कर।सरकारी कर्मचारी की गर्दन सबसे ज्यादा मुलायम जब चाहे धर दबोचो  तत्काल सस्पेंड टर्मिनेट।प्राइवेट नौकरियों में तो सोशल मीडिया प्रतिबंधित ।हर घटना का वीडियो उर्फ चश्मदीद गवाह।

अच्छा हुआ जो आचार्य शुक्ल के दौर में मोबाइल नहीं था अन्यथा वे कंजूस के बजाय मोबाइल में तल्लीन दर्शक को ही परम योगी डिक्लेयर करते ।कहीं भी देखिये चारों ओर मोबाइल समाधि में लीन तपस्वी ही दिखाई देंगे ।टीवी सीरियलों और मोबाइल ने घर घर मिनी महाभारत मचा रखा है।और तो और जो सद्य प्रसूत बच्चे मां का दूध पीकर चुप होते थे अब वे मोबाइल लेकर चुप होते हैं।गर्भ में ही  उन्हें मोबाइल प्रेम की दीक्षा मिल जाती है।

आचार्य उर्फ भगवान रजनीश भी मोबाइल से वंचित रहे अन्यथा उन्हें इंटरकोर्स से समाधि तक के डिस्कोर्स की जरूरत ही नहीं पड़ती ।मोबाइल  के गूगल गुरु ने वात्स्यायन और कोका मुनि को अरबों मील पीछे छोड़ दिया है । तत्काल कुंडलिनी जागरण की गारण्टी ।बड़े बड़े माननीय  सार्वजनिक रूप में ब्लू दर्शन करते हुए  रंगे हाथों पकड़े जा चुके हैं।अपराधियों का तो काल सिद्ध हुआ है यह अस्त्र ।सात तहखानों में नहीं बच पाये बड़े बड़े महारथी ।हर समय आप सैटेलाइट की पकड़ जकड़ में हैं ।आप अगर गलती से घूसखोर हैं तब तो मोबाइल आपको जरूर कैद करके जेल की हवा खिला देगा । किसी भी घटना को वायरल करके यह पुलिस के वायरलेस को फेल कर सकता है।रेडियो, कैमरा और कम्प्यूटर सब यहाँ उपलब्ध है।
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