Friday, August 11, 2023

पेट में दाढ़ी

पेट में दाढ़ी 

# मूलचंद्र गौतम

जब दाढ़ में अक्ल हो सकती है और दाढ़ी में तिनका तो पेट में दाढ़ी क्यों नहीं हो सकती ? 

दाढ़ी मूँछ पर अभी तक पुरुषों का वर्चस्व है ।इन्हीं के चलते शेर बब्बर शेर कहलाता है।उसकी पत्नी या प्रेमिका को कोई बब्बर शेरनी क्यों नहीं कहता ?जब पण्डित की पण्डिताइन हो सकती है तो बब्बर शेरनी क्यों नहीं हो सकती?इस स्त्री विमर्श में भी बड़े बड़े झोल और झंझट हैं ।नासमझ आदमी के कदम कदम पर  फँसने का खतरा है।यही हाल हर विमर्श का है ।घुसे कि फंसे ।इसीलिए हर अक्लमंद आदमी  नवाचार की कोई नयी लीक बनाने के बजाय  जिंदगी भर कदमताल करता रहता है लेफ्ट राइट लेफ्ट और एक दिन अचानक  बेदाग रिटायर हो जाता है इत्मीनान से ।ज्यों की त्यों धरि दीनी चदरिया।कबीर तो कोई सरकारी नौकरी नहीं करते थे फिर उन्हें यह खयाल कहाँ से आया ?कवि आखिर मंत्र दृष्टा ऋषि से कोई कम थोड़े ही होते हैं ।बाबा तुलसीदास को ही देख लो आजकल  पक्ष विपक्ष की हर चुनाव चर्चा  और विवादों के केंद्र में हैं ।

तो बात हो रही थी पेट में दाढ़ी की और पहुँच गये आकाश पाताल ।लंतरानियों में बस यही झंझट होता है कि  जरा सी चूक हुई कि एक्सीडेंट हुआ ।गाँठ उलझी कि फिर सुलझने में घण्टों महीने साल दर साल  क्या पूरी जिंदगी निकल जाती है और पल्ले कुछ नहीं पड़ता ।बस देखते रहो भकुआये से गुजरते हुए कारवाँ के गुबार को या गुब्बारे को ।

तो बात पेट में दाढ़ी की हो रही थी ।हमारे मुंशी जी बताते थे कि वृद्ध दो प्रकार के होते हैं एक आयु वृद्ध दूसरे ज्ञान वृध्द ।आयु का ज्ञान से कोई सम्बन्ध नहीं होता भले हर बुड्ढा खुलेआम दावा ठोंकता रहे कि उसने बाल धूप में सफेद नहीं किये हैं ।  बेअक्ल से बेअक्ल आदमी अक्ल में खुद को किसी से हेठा नहीं समझता ।अंग्रेजी में भी कहावत है कि चाइल्ड इज द फादर ऑफ मैन । बच्चे यों भी अक्सर बड़ों के कान काटते हैं। इसलिए कभी कभार कोई बच्चा जब बड़ी बड़ी बातें करने लगता है तो लोग समझते हैं कि इसके पेट में कोई दाढ़ी वाला पितर बैठा है लेकिन कई बार जब अति हो जाती है और वह दाढ़ी नकली निकलती है तो बड़ी फजीहत होती है ।

 बाल सफेद हो जाना सीनियर सिटीजन की बपौती थोड़े है। अब तमाम फैशनेबल युवाओं ने बाल सफेद और रंगीन  करा लिये हैं ।इसीलिए जब से इन सीनियरों की हर तरह की  सब्सिडी छिनी है परेशान हैं ।सुबह शाम झुंड बनाकर सड़कों पर ,पार्कों में चौराहों पर सरकार को कोसने में दत्तचित्त हैं।पुरानी पेंशन ने तो सरकारें तक बदल दीं ।यह सब उन नेताओं की विफलता थी जिनके पेट में दाढ़ी नहीं थी ।चेहरे पर मोटी मोटी दाढ़ी मूँछ वाले ये नासमझ मुफ्त के राशन को चुनाव जीतने की गारंटी मान कर फिजूल की थोथी  हवाई बातों में तल्लीन थे। जनता की काम की बात से इनको कोई लेना देना नहीं था ।वे भूल गये कि जिस मुफ्तखोर जनता को ये पाल पोस रहे हैं उसे सब कुछ मुफ्त चाहिए।शेर की सवारी करने वाले भूल गये कि भूखा शेर उन्हें खा भी सकता है ।

इसलिए भारत को भविष्य में ऐसा नेता चाहिए जिसके चेहरे पर दाढ़ी हो न हो पेट में जरूर हो ।
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