# मूलचन्द्र गौतम
अभी तक देश आजादी के बाद पैदा हुई भयंकर सम्वैधानिक समस्या धर्म
निरपेक्षता से उबर नहीं पाया है कि उसी से मिलती जुलती एक और भयंकर बीमारी नेट
निरपेक्षता -न्यूट्रीलिटी सामने आ खड़ी हुई है .जैसे खाली बुखार के साथ दिमागी
बुखार –इन्सेफलाईटिस या डेंगू .
बीमारी भी अंग्रेजी नाम में ही अच्छी लगने लगे तो देश की स्वदेसी हालत
कोई भी समझ सकता है .इसके लिए विदेशी सर्वे टीम या सीबीआई या एसआईटी की कोई जरूरत
नहीं है .ब्लड केंसर कहने से जिस गर्व और गौरव का बोध होता है वह बात कर्क रोग में
कहाँ ?इसीलिए हिंदी बोलने वाले लोगों को
देश में गरीबी रेखा से नीचे धकेल दिया जाना चाहिए .ससुरे अंडरबीयर को भी अन्त:वस्त्र इस तरह मुंह टेढ़ा करके बोलते हैं कि जीभ को भी तकलीफ
होने लगती है .अब तलाशते रहिये नेपकिन और वाशरूम की हिंदी .
हाल ही में देश की अनपढ़ जनता के सामने सुरसा की तरह बदन
बढ़ाने वाले इंटरनेट की निरपेक्षता को लेकर भयंकर समस्या खड़ी हो गयी है .हिंदी वाले
इसे अंतर्जालीय निरपेक्षता कह रहे हैं .इन नामुरादों ने देश की हिंदी कर दी है .जब
देश का प्रधानमंत्री तक अंग्रेजी में
वृत्यानुप्रास गढ़ रहा हो इन मोटी अक्ल वाले पिछड़ों को कौन समझाये कि कब तक इस गड्ढे को
सुशोभित करते रहोगे .ये न्यूट्रीलिटी को न्यूट्रीशन समझ रहे हैं ?अंग्रेज इसी खूबी
के बल पर देश पर सैकड़ों साल राज कर गये और आज भी कर रहे हैं .
आखिर सम्विधान पीठ ने नेट निरपेक्षता की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए
कहा है कि इसका आशय इन्टरनेट के सारे ट्रेफिक से समान व्यवहार करना है और किसी
कम्पनी या एप को भुगतान के आधार पर प्राथमिकता देना कानून का उल्लंघन माना जायेगा
.
अब यह कानून तो धंधे और धंधेबाजों के खिलाफ है देश की धार्मिक आस्थाओं
से खिलवाड़ है . पहले मन्दिरों में वीआईपी दर्शन रोको तब इस निरपेक्षता की बात करो
.व्यापार विरोधी कूढ़मगज ही विकास विरोधी हैं .इन्हें हगने –खाने से ही फुर्सत नहीं
मिलती .अब हग करना आधुनिकता की पहचान है ,जिसे ये सुलभ शौचालय समझ रहे हैं .
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