Sunday, April 19, 2015

नेट निरपेक्षता

# मूलचन्द्र गौतम 

अभी तक देश आजादी के बाद पैदा हुई भयंकर सम्वैधानिक समस्या धर्म निरपेक्षता से उबर नहीं पाया है कि उसी से मिलती जुलती एक और भयंकर बीमारी नेट निरपेक्षता -न्यूट्रीलिटी सामने आ खड़ी हुई है .जैसे खाली बुखार के साथ दिमागी बुखार –इन्सेफलाईटिस या डेंगू .
बीमारी भी अंग्रेजी नाम में ही अच्छी लगने लगे तो देश की स्वदेसी हालत कोई भी समझ सकता है .इसके लिए विदेशी सर्वे टीम या सीबीआई या एसआईटी की कोई जरूरत नहीं है .ब्लड केंसर कहने से जिस गर्व और गौरव का बोध होता है वह बात कर्क रोग में कहाँ ?इसीलिए हिंदी  बोलने वाले लोगों को देश में गरीबी रेखा से नीचे धकेल दिया जाना चाहिए .ससुरे अंडरबीयर को भी  अन्त:वस्त्र इस  तरह  मुंह टेढ़ा करके बोलते हैं कि जीभ को भी तकलीफ होने लगती है .अब तलाशते रहिये नेपकिन और वाशरूम की हिंदी .
 हाल ही में  देश की अनपढ़ जनता के सामने सुरसा की तरह बदन बढ़ाने वाले इंटरनेट की निरपेक्षता को लेकर भयंकर समस्या खड़ी हो गयी है .हिंदी वाले इसे अंतर्जालीय निरपेक्षता कह रहे हैं .इन नामुरादों ने देश की हिंदी कर दी है .जब देश का प्रधानमंत्री तक अंग्रेजी  में वृत्यानुप्रास गढ़ रहा हो इन मोटी अक्ल वाले  पिछड़ों को कौन समझाये कि कब तक इस गड्ढे को सुशोभित करते रहोगे .ये न्यूट्रीलिटी को न्यूट्रीशन समझ रहे हैं ?अंग्रेज इसी खूबी के बल पर देश पर सैकड़ों साल राज कर गये और आज भी कर रहे हैं .
आखिर सम्विधान पीठ ने नेट निरपेक्षता की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा है कि इसका आशय इन्टरनेट के सारे ट्रेफिक से समान व्यवहार करना है और किसी कम्पनी या एप को भुगतान के आधार पर प्राथमिकता देना कानून का उल्लंघन माना जायेगा .
अब यह कानून तो धंधे और धंधेबाजों के खिलाफ है देश की धार्मिक आस्थाओं से खिलवाड़ है . पहले मन्दिरों में वीआईपी दर्शन रोको तब इस निरपेक्षता की बात करो .व्यापार विरोधी कूढ़मगज ही विकास विरोधी हैं .इन्हें हगने –खाने से ही फुर्सत नहीं मिलती .अब हग करना आधुनिकता की पहचान है ,जिसे ये सुलभ शौचालय समझ रहे हैं .
# शक्तिनगर ,चन्दौसी ,संभल 244412
मोबाइल 8218636741
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Tuesday, April 14, 2015

फ़्रांस ,जर्मनी और भारत


दर्शन ,इतिहास और विचार की दुनिया से जुड़े भारतीय लोगों के लिए फ़्रांस और जर्मनी केवल योरोपीय देश नहीं हैं .इन दोनों देशों का नाम आते ही उनकी धमनियों में सार्त्र , कामू, काफ्का ,सीमोन ,ब्रेख्त,गुंटर ग्रास  इत्यादि तमाम नाम धडकने लगते हैं .फ़्रांस की राज्यक्रांति के बिना मार्क्स की क्रांति और समाजवाद की कल्पना और अवधारणा सम्भव ही नहीं थी .पेरिस केवल फ़्रांस की नहीं विश्व की सांस्कृतिक राजधानी है .उसी तरह जर्मनी के नाजी तानाशाह  हिटलर के बिना नस्लवादी घृणा और नरसंहारों का इतिहास लिखा ही नहीं जा सकता .
नेहरु जी के पेरिस प्रेम को कपड़ों की धुलाई तक सीमित कर देने वाले लोग निश्चित ही फ़्रांस के वैचारिक इतिहास और दर्शन के क्षेत्र के महान योगदान की कोई चर्चा नहीं करना चाहते .हिंदुत्व की विचारधारा के आधार पर भारत के लोकतंत्र की अगुआई करने वाले मोदी की तुलना हिटलर से यों ही नहीं की जाती ?केवल व्यापार की चिंता में कोई भारतीय नेता इन देशों में जाता है तो वह इन देशों की महान विरासत की उपेक्षा ही करता है जो इन्हें भारतीय मेधा के नजदीक लाती है . बात –बात में वेद और गीता की दुहाई देने वाले नेता को मैक्समूलर और वेद और संस्कृत साहित्य का सम्बन्ध बताने की जरूरत नहीं है  .अफवाहों की तरह वेदों से विमानों के निर्माण की तकनीक उड़ाने वाले जर्मनों से सिर्फ व्यापार के शुभ -लाभ की बात सोचने वाले व्यापारियों को दूरदृष्टि की जरूरत नहीं है.तात्कालिक लाभ के लालच में उन्हें दूरगामी नीतियों की भी कोई जरूरत महसूस नहीं होती .सांस्कृतिक पर्यटन तो उनके ध्यान में ही नहीं आता जबकि भारतीय योग विद्या का बड़ा नेटवर्क इन देशों में काफी पहले से मौजूद है .भारत में जर्मन और संस्कृत शिक्षण के विवाद के संदर्भ में इस यात्रा का कोई अलग से महत्व हो सकता है क्या ?भाषा और धर्म की संकीर्ण राजनीति विश्व पटल पर कोई कारगर भूमिका निभा सकती है क्या ?अंदर और बाहर के भेद का पर्दा कब तक काम आ सकता है ?

मोदी की फ़्रांस और जर्मनी की इस यात्रा का  ऐसा कोई दूरगामी लक्ष्य नजर नहीं आता .क्या आपको आता है ?