रेवडी के घनचक्कर में
# मूलचंद्र गौतम
जब से रेवडी का शेयर उठकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है तब से उसकी बल्ले बल्ले है ।अब रेवडी के नाम से ही बड़े बड़ों के मुहँ में पानी क्या लार टपकने लगी है जबकि लोकतंत्र में हर कीमत पर चुनाव जीतने के आकांक्षी दलों के नेताओं के गले में यह हड्डी की तरह अटक गयी है ।उनके सामने यह सवाल मुहँ बाये खड़ा है कि जायें तो जायें कहाँ ? हर तरफ है रेवड़ियों का जहाँ ।आखिर रेबड़ को रेबड़ी बांटने में बुराई क्या है ?रेवडी न हुई गले की जेवड़ी हो गयी ।
बड़ी मुश्किल से एक मुहावरे का जन्म हुआ था कि अंधा बाँटे रेवडी फिर फिर अपनों को दे ।अब सवाल यह है कि निपट अंधों की दुनिया में कौन अंधा नहीं है जो गैरों को रेवडी देगा ?इस रेवडी की अमरबेल ऐसी फैली है कि इसने बाबा की चौपाई स्वारथ लागि करहिं सब प्रीती को फेल कर दिया ।बाबा ने वाल्मीकि के मुकाबले लोकानुभव के प्रतिनिधि के नाते रामकथा को जन जन तक पहुंचाने का श्रेय लिया था लेकिन इस रेवडी ने उनकी ऐसी रेड लगाई कि उन्हें पीछे छोड़कर सीधे छलाँगें लगाती हुई यह सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ पर जाकर विराजमान हो गयी ।अब आखिरी निर्णय हो जायेगा कि रेवडी और जनकल्याण में क्या फर्क है? जबकि वैयाकरण अभी तक तय नहीं कर पा रहे हैं कि यह रेवडी है या रेबड़ी ? सुप्रीम कोर्ट इसमें भी हस्तक्षेप करेगा ।घपला करने वालों को कड़ी सजा मिलेगी।बाबा इसे कलिकाल का दुष्प्रभाव मानकर अपने दोस्त रहीमदास की बात मानकर सौंठ पीकर चुप हैं कि जब नीके दिन आइहें बनत न लागे बेर ।दुनिया के सारे भले लोग आयें न आयें इन्हीं नीके दिनों की उम्मीद में जी रहे हैं ।
रेवडी की इस डायरेक्ट प्रोन्नति को देखकर गजक के प्रेमियों के चेहरे उतर गये हैं ।कुरकुरी और चुरमुरी रेवडी की तुलना में उनकी कुटी हुई खस्ता गजक को कोई नहीं पूछ रहा जबकि यह खरी चौबीस कैरेट वाली चीज थी और दीवानों के मुहँ में जाकर ऐसी घुल जाती थी कि पोपले से पोपले आदमी का दिल गार्डन गार्डन हो जाता था ।गजक का चूरा उनकी ऐसी स्वर्गीय नियामत थी जिसके आगे तीनों लोकों का राज्य भी बेकार था । रेवडी की इकहरी बनावट के मुकाबले गजक के बहुआयामी प्रकारों की कोई चर्चा तक इस डर से नहीं कर रहा कि कहीं सरकार द्वारा उन्हें देशद्रोही न ठहरा दिया जाय।यों भी उनकी जमानत लेने वालों तक के लाले पड़े हुए हैं। इस गम को वे नेटफ्लिक्स पर वक्त पिक्चर देखकर गलत कर रहे हैं।
रेवडी के इस महान उपक्रम के चलते रबड़ी भी निचले पायदान तक खिसक चुकी है ।उसके प्रेमी भंगड़ी अब रबड़ी के बजाय खटाई खाकर मुहँ सिले बैठे हैं।रेवडी की मुकाबले रबड़ी के लच्छे दो कौड़ी के सिद्ध हो गये हैं।खुरचन का तो कोई नामलेवा ही नहीं बचा है।समुद्र से निकली सुरा के कुएँ में ऐसी भाँग घुली है कि सारे देव दानव चकरघिन्नी हो गये हैं।उन्हें इससे मुक्ति का कोई मार्ग नहीं सूझ रहा ।बड़े बड़े गड्ढों को पलक झपकते पार कर लेने वाले चेतक की टाँगों तक में फ्रेक्चर हो चुका है।
अब सुप्रीम कोर्ट की पीठ ही तय करेगी कि रेवडी भी किस शहर की मशहूर होनी चाहिए।अगर लखनऊ ने इस प्रतियोगिता में बाजी मार ली तो मेरठ की पुनर्विचार याचिका पहले से तैयार रखी है।आदेश निकलते ही नहले पर दहला पड़ेगा ।बहरहाल रेवडी को ब्रह्म का पर्यायवाची मानने वालों का बहुमत दिखाई दे रहा है ।
# शक्तिनगर, चन्दौसी, संभल 244412
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