Thursday, December 22, 2016

हिंदी क्षेत्र में सरकारी शिक्षा के शत्रु



 

# मूलचन्द गौतम
हाल ही में यूपी में शिक्षक पात्रता परीक्षा हुई ,जिसकी दूसरी पाली में अधिकांश शिक्षामित्रों ने भाग लिया ताकि वे नियमित नौकरी के पात्र बन सकें .यह प्रदेश की जनता का ही दुर्भाग्य कहा जा सकता है कि यहाँ की बेसिक से लेकर विश्वविद्यालय तक की सरकारी शिक्षा का स्तर और गुणवत्ता लगभग शून्य है .रही सही कसर मिड डे मील और शिक्षामित्रों ने पूरी कर दी है .इस मायने में प्रदेश की तमाम नौकरियां  उच्च भुगतान वाली पेंशन के नियमित बट्टे खाते में चली गयी हैं ,जहाँ बिना कुछ किये धरे नियमित मुफ्त की आमदनी की गारंटी है .बस थोड़ी बहुत खानापूरी है दिखावे के लिए .
जब से शिक्षा को राज्य का विषय बनाया गया तभी से उसका यह हाल है .पहले कुछ ईमानदार मिशनरी शिक्षक कम वेतन और गरीबी में भी उसकी गुणवत्ता बनाये हुए थे ,जो मात्र नौकरी में बदलते ही ध्वस्त हो चुकी है .बेसिक शिक्षा में भाषा और गणित जैसे बुनियादी विषयों की उपेक्षा का हाल यह है कि जड़ों की यह कमजोरी आजीवन बने रहने को अभिशप्त है .जो  शिक्षक और शिक्षामित्र खुद चार अक्षर साफ़ और शुद्ध नहीं लिख सकता वह बच्चों को क्या सिखा सकता है .मुख्यमंत्री के लिए शिक्षा सबसे निचले पायदान पर है क्योंकि उससे न वोट सधता है न नोट . यथास्थिति बनाये रखकर मंत्रीजी का बस कामचलाऊ इंतजाम हो जाता है ले देकर .हाँ  चुनाव में पुलिस ,होमगार्ड और शिक्षकों की सर्वाधिक उपकृत त्रयी रोजगारदाता सरकार के प्रति वफादारी खूब निभाती है .इसलिए हर सरकार विकास का नकली हल्लागुल्ला करने को केवल इसी वर्ग की भर्ती पर जोर देती है .
इस सरकारी शिक्षा के समांतर  अंग्रेजी माध्यम के प्राइवेट शिक्षा संस्थान हैं जिनमें प्रबन्धतंत्र की खुली लूट और छूट है .यहाँ छात्रों और अभिभावकों की संतुष्टि के नाम पर उनको खुलकर लूटा जा रहा है और शिक्षकों का मनमाना शोषण किया जाता है .ड्रेस और किताबों के नाम पर अलग से शोषण की मनमानी व्यवस्था है जिस पर कोई आवाज तक नहीं उठती .सरकार इन संस्थानों में छात्रों की फीस ,छात्रवृत्ति और शिक्षकों के वेतन का कोई नियमन नहीं करती ,जबकि  जनकल्याण के नाम पर किया जाना चाहिए .
इस तरह हिंदी क्षेत्र में शिक्षा के मामले में सरकारी तन्त्र की नीतिगत असफलता ,पिछड़ेपन और  निकम्मेपन से जनता को दोहरा नुकसान होता है .सरकारी क्षेत्र के विद्यार्थी राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में कोई उल्लेखनीय स्थान हासिल करने में असमर्थ रहते हैं .  हिंदी माध्यम से शिक्षित आरक्षित वर्ग के छात्रों को अंग्रेजी माध्यम की उच्च शिक्षा से महरूम होना पड़ता है .कई बार तो वे पूर्णत :असफल होकर लौट आते हैं और जिन्दगी भर हीनता और कुंठा से ग्रसित होते हैं .यहाँ तक कि आत्महत्या करने तक को विवश होते हैं . प्रथम और चतुर्थ श्रेणी की शिक्षा क्षेत्र की यह असमानता एक जान बूझकर की गयी साजिश लगती है .
जाहिर है कि इस असफलता और असमानता को दूर करने के लिए शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है ,अन्यथा यह निरंतर बढती जायेगी और विकास का ऊपरी तामझाम एक दिन चरमराकर ढह जायेगा जो व्यापक जनअसंतोष को जन्म देगा .
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