Sunday, January 28, 2024

पलटू राम की पलटन

पलटू राम की पलटन 

# मूलचंद्र गौतम


पहले ही साफ कर दूं कि थर्ड डिग्री की डेमोक्रेसी में पलटू राम कोई व्यक्ति नहीं प्रवृत्ति है। इसलिए कोई महानुभाव इससे ग्रस्त होते हुए भी दिल पर न लें।सृष्टि के आरंभ उर्फ वैदिक काल से ही यह मानुष मन में मौजूद रही है। राम के नाम पर यह कारोबार सदियों से चलता रहा है।कुछ अगंभीर लोग इसे पाटलिपुत्र से जोड़ते हुए पलटी पुत्रों का निरादर करते हैं।।प्रारंभ में इस प्रवृत्ति को संकल्प विकल्प कहते थे। बाद में इसको असंख्य नामों से पुकारा जाने लगा ।मसलन आयाराम गयाराम, दलबदलू,गिरगिट, डबल ढोलकी,बेवफा, बेमुरब्बत ,चार सौ बीस , विश्वासघाती,कुर्सी कुमार इत्यादि ।उसी क्रम की नई उत्पत्ति है पलटू राम जिसे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का आविष्कार माना जा रहा है। इसकी संभावनाएं और दिशाएं अनंत हैं और इसके बारे में कोई भी भविष्यवाणी मुमकिन नहीं है । इसीलिए कोई भी बड़े से बडा ज्योतिषी रिस्क लेने को तैयार नहीं है। बड़े बड़े रणनीतिकार इसकी चाल को भांपने में नितांत फेल हो चुके हैं।कोई भी जीव वैज्ञानिक इसके डीएनए का विश्लेषण करने में असमर्थ है।बड़े से बडे पावरफुल रडार इसे पकड़ नहीं पा रहे। ओलम्पिक में पलटू राम के नाम से ही पलटीमार गेम को शामिल किया गया है जिसमें आज तक उनके रिकार्ड को तोड़ना तो अलग कोई तीसमारखान छू तक नहीं पाया है। जलेबी जैसे सीधे सादे पलटू राम जैसे विश्वरत्न को उचित सम्मान हेतु कोई पद, पुरस्कार अभी तक देना तो दूर सोचा तक नहीं जा सका है।सुपर कम्प्यूटर तक उनकी प्रतिभा के सूर्य की गणना करने में असफल हो चुके हैं।

अब तक अनचाहे जीवों में बरसाती मेंढक नाहक बदनाम थे जिन्हें किसी भी तराजू पर तोलना असंभव था ।इसी बेइज्जती की वजह से  अब भर बरसात में उनकी आवाज सुनाई नहीं देती ।इसी भय से झिल्ली ,झींगुर और थोक में उत्पन्न होने वाले भुनगे तक गायब हो चुके हैं।वैज्ञानिक प्रयोगों तक के लिए यह प्रजाति उपलब्ध नहीं है। ये प्रयोग अब मजबूरी में चूहों और बंदरों पर किए जा रहे हैं। इनके अभाव के पीछे पलटू राम और उनकी अपार पलटन का हाथ माना जा रहा है। रक्तबीज के बाद पलटू राम ही ऐसी हस्ती के रूप में उभरकर सामने आए हैं जिनका संहार अष्टभुजा क्या मां दशभुजा तक के बस का नहीं है। सुरसा और हनुमानजी के बीच बदन के विस्तार की प्रतियोगिता पलटू राम के लिए मामूली कवायद है। उनकी जिम्नास्टिक गुलाटियां विश्व में क्लासिक का दर्जा हासिल कर चुकी हैं।

पलटू राम की असली प्रतिभा के सतरंगी इंद्रधनुष चुनावों के मौसम की अपेक्षा रखते हैं।चुनावों में ही पलटीमारों की चांदी कटती है।तमाम दलों के दलदल से भटकती हुई आत्माओं की तरह टिकट के दावेदार उमड़ने लगते हैं। उनकी कोई पहचान करना मुश्किल होता है। इनकी वजह से राजनीति में अवसरवादी अराजकता को मान्यता प्राप्त होती है। इनके सीमेंट से ही सत्ता की नींव ,दीवारें और छत मजबूत होती है।इससे प्रमाणित होता है कि राजनीति में कोई किसी का स्थायी मित्र और शत्रु नहीं होता।इस गेम में पारंपरिक नैतिकता का कोई अर्थ मतलब नहीं है। हर हाल में शुभ लाभ एकमात्र लक्ष्य है। इनमें से हर पंछी जीतने वाली पार्टी का टिकट चाहता है । वार्ड मेंबरी तक न जीत पाने वाला खडूस सीधे लोकसभा में प्रवेश का दावेदार है।कहीं से भी घास न पड़ने की मजबूरी में मोटे पार्टी फंड को हड़पने के लालच में जमानत जब्त कराने को भी तैयार हो जाता है ।चार छह चपरकनातियों का खर्चा भी खुशी खुशी उठाता है।उनकी कबूतरी आसमानी उड़ानों और करतबों को देखकर लोग दांतों तले उंगली क्या पूरा जबड़ा ही चबा डालते हैं। गणतंत्र दिवस पर सुखोई इत्यादि विमानों के करतब इसके सामने कोई मायने नहीं रखते। उस समय पलटू राम सातवें आसमान से अपनी  विकराल हंसी की जो छटा बिखेरते हैं उसके सामने विपक्षी कीड़े मकोड़ों की कामरूप सेना ध्वस्त हो जाती है। एकमेव अद्वितीयम की प्रतिष्ठा ब्रह्म के बाद पलटू राम के ही हिस्से में आई है। विश्व का कोई भी  महाकवि अब तक किसी भी महाकाव्य में उनके विराट स्वरूप का वर्णन क्या उल्लेख तक नहीं कर पाया है। छोटे मोटे दोहे,शेर , हाइकु, चालीसा, खण्ड काव्य उसकी मामूली सी झलक दिखला पाते हैं। विश्व के तमाम महान उपन्यासकार परलोक से आकर उनके ऊपर कालजयी कहानियां ,उपन्यास  लिखना चाहते हैं लेकिन पलटू राम ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया है।वे इस प्रोजेक्ट के लिए वाल्मीकि और व्यास जैसी प्रतिभाओं की तलाश में हैं।फिलहाल उन्हें चुटकुले लिखने में माहिर कोई बीरबल टाइप बंदा ही भाषण लिखने वास्ते मिल जाय तो काफी होगा क्योंकि वे चाहते हैं कि उनके शासन में प्रजा कतई गमगीन दिखाई न दे । इस खोज के लिए उन्होंने अपनी पलटन को मौखिक आदेश निर्देश जारी कर दिया है ।

# शक्ति नगर , चंदौसी, संभल 244412
मोबाइल 9412322067

Thursday, January 18, 2024

काले धागे और मोटे कलावे का ट्रेंड

काले धागे और मोटे कलावे का ट्रेंड 

#    मूलचंद्र गौतम

इक्कीसवीं सदी के प्रारंभ से ही आभास था कि विश्व का माहौल अविश्वसनीय तरीके से तेजी से बदल जायेगा।बाबा ने तो काफी पहले से भविष्यवाणी कर रखी थी कि कलियुग केवल नाम अधारा ।राम नाम की यही अनंत महिमा अब अयोध्या में राम मंदिर के साथ प्रकट होनी प्रारंभ हुई है ।जैसे  कलिकाल में त्रेता का आगमन हो रहा हो ।पश्चिम के कवि और दार्शनिक भले काल, इतिहास,नाम और अस्तित्व को लेकर भ्रम के शिकार रहे हों विश्वगुरु को कभी कोई संदेह नहीं रहा । इसीलिए हमारे यहां कोई पंचमकारी टोना टोटका कामयाब नहीं हो पाया ।वेदांत ने कोरोना की आसुरी माया और विभीषिका को फूंक मार कर उड़ा दिया । यह विपक्षी असुर अब भी अनेक रूप धारण कर प्रकट हो रहा है लेकिन हमारे एक मामूली से ईडी के टीके के आगे निरीह की तरह जान की भीख मांगता रहता है।

सृष्टि के प्रारंभ से ही नकल असल पर भारी पड़ता रहा है लेकिन आखिर एक दिन पोल खुलकर ही रहती है फिर उघरे अंत न होहि निबाहू.....। कबीरदास जी को नकल से सख्त नफरत थी । इसीलिए वे पकड़ लेते थे मन न रंगाये रंगाये जोगी कपड़ा। कर का  मनका और मन का मनका को उनकी कसौटी पकड़ लेती थी ।हाथी के खाने और दिखाने के दांतों की तरह नेता ,संत और व्यापारी का दिखावा ज्यादा देर तक छिप नहीं सकता । ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती। कानून का घनचक्कर उसे कहीं का नहीं रहने देता ।

सतयुग में धर्म अधर्म ,न्याय अन्याय ,देव दानव का रंग एकदम सफेद और काला था जो तुरंत पहचान में आता था ।दुनिया ,फिल्में और धन जब से ब्लैक और व्हाइट के बजाय रंगीन होना शुरू हो गये तभी से घपला शुरू हो गया ।अब एक नंबर में कुछ होता ही नहीं सब कुछ दो या दस नंबरी है। दस बीस करोड़ धारी तो बीपीएल की श्रेणी में भी नहीं आयेंगे।नए कानून में चार सौ बीस नंबर की धारा भी अपराध की सीमा से बाहर हो जायेगी। इस नंबर को धारण करने वाले लोग मोटे मोटे कलावे पहनकर विधर्मी राहु केतु की तरह देवताओं और धार्मिकों की अग्रिम पंक्ति में अमृत पान  करेंगे।स्वर्ग में इंद्र की सभा में उर्वशी और रंभा जैसी नामी गिरामी अप्सराओं के साथ नृत्य करेंगे।दो चार पकड़े भी गए तो क्या फर्क पड़ता है।वैसे भी मोटू कलावाधारी का रथ जमीन से कम से कम छह इंच ऊपर चलता है। जप,माला, छापा, तिलक की श्रेणी में मोटा कलावा ससम्मान जुड़ चुका है।आज की तारीख में इसके बिना किसी को प्रामाणिक रूप से धार्मिक नहीं माना जा सकता।

बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला । ट्रकों के पीछे शोभा बढ़ाने वाला  यह आसुरी कलर अब फैशन में नंबर वन पर ट्रेंड कर रहा है।नाजुक बदन वाली हसीनाएं बुरी नजरों से बचने को काले टीके का इस्तेमाल करती थीं ।अब उसी की जगह काले धागे ने ले ली है जो गरदन और कमर से होता हुआ पैरों तक आ पहुंचा है और अब जिसे पैर में आभूषण की तरह धारण करने का ट्रेंड चल रहा है। यह काला जादू कश्मीर से कन्याकुमारी तक चल रहा है।

# शक्ति नगर, चंदौसी, संभल 244412
मोबाइल 9412322067

Wednesday, January 3, 2024

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का फंडा

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का फंडा

# मूलचंद्र गौतम 

विश्व पटल पर हाल  ही में प्रकृति प्रदत्त प्रज्ञा और प्रतिभा के स्थानापन्न के रूप में उभरी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस उर्फ ए आई तकनीक ने जो धूम मचा दी है उसने आदमी के ईश्वर में गहरे विश्वास की जड़ों को हिला दिया है । चैट जीपीटी और टेक्स्ट से डीप फेक उर्फ महाफर्जी तस्वीर बनाने में सक्षम डैल ई जैसे उत्पादों ने कम्प्यूटर क्रांति को मानवीय कल्पना की चरम सीमा के परे  तक पहुंचा दिया है ।उसके दुरुपयोग की अनंत सम्भावनाओं से बड़े बड़े ताकतवरों की सत्ता हिली हुई है ।कहीं भी किसी का चेहरा फिट  करके ब्लैकमेल किया जा सकता है।असल से ज्यादा मजेदार पैरोडी हो जाय तो लोग असल को भाव क्यों देंगे ।अभी तक जो लोग फेक न्यूज,पेगासस  और टूल किट में ही उलझे हुए थे कि उनकी जान को यह एक नया बबाल और आ गया ।बीमारी दर बीमारी जो चलते चलते बन जाय महामारी।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से पलभर में पूरे माहौल को बदला जा सकता है।छवि निर्माण और विध्वंस की यह कला कुछ भी करने में समर्थ है । परम्परागत नैतिकता का यहाँ कोई मूल्य और मान नहीं है ।जनता को जितनी दिलचस्पी अफवाहों और चंडूखाने की गपबाजी में होती है उतनी सत्य  जानने में नहीं ।आप देते रहिये सफाई यह गंदगी किसी डिटर्जेंट से साफ नहीं होगी ।इन पर दुनिया का कोई कानून लागू नहीं होता।बाजार में चलती है खोटी चवन्नी और अफवाहों में शुरू हो जाता है दंगा।भीड़ और भेड़चाल में कोई फर्क नहीं रहता।

रोबोटों ने हाड़ माँस के आदमी का मशीनी विकल्प उपलब्ध करा दिया था ।विश्व की बढ़ती आबादी के बीच इनकी उपस्थिति से मानवीय श्रम की गरिमा खतरे में पड़ चुकी है । बेरोजगारी का भूत भविष्य को डरावना बना रहा है।मनुष्य के अद्भुत कल्पनाशील मस्तिष्क को सुपर कम्प्यूटर भी पीछे नहीं छोड़ पाया है तब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से ज्यादा उम्मीद सिर्फ उसके व्यावसायिक उपयोगकर्ताओं को ही हो सकती है ।प्रकृति के वैविध्य के आगे कृत्रिमता यों भी टिक नहीं पाती ।बोनसाई कल्चर ने यह सिद्ध कर दिया है गमले और  साफ सुथरे सजे धजे बाग बगीचे सुंदरता में जंगल का मुकाबला नहीं कर सकते जैसे पालतू महँगे कुत्ते देसी सड़कछापों के आगे टिक नहीं पाते । 

अस्त्र शस्त्रों से पहले हर युद्ध मुहँ जबानी लड़ा जाता है । वाग्वीरों से और कोई अपेक्षा हो भी नहीं सकती।बातों में हारे सो .... ।मोहल्ले की सारी लड़ाइयां शब्दों की महा अश्लील गालियों से लड़ी जाती हैं ।मंटो और इस्मत चुगताई भी यहाँ पानी माँगते हैं ।जाति और धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका यहाँ भी होती है ।इनके अनुरूप गालियों का वजन कम बढ़ होता रहता है।शाकाहारी गालियों के बजाय तीखे मिर्च मसालों वाली गालियों को दर्शकों की ज्यादा वाहवाही हासिल होती है।महिलाओं को यहाँ भी विशेषज्ञता और बढ़त हासिल है ।पुरुषों के झगड़े जहाँ शारीरिक हिंसा में बदल जाते हैं वहाँ महिलाओं की हिंसा  ज्यादातर शाब्दिक रहती है ।चरित्र की भूमिका यहाँ  सोदाहरण प्रमुख रूप से बखानी जाती है।बहनजी टाइप महिलाओं के लिये यह क्षेत्र वर्जित है।

अब हिंग्रेजी में भाषाई समझ का लचीलापन आ चुका है फिर भी शुध्दता के आग्रही  राजा लक्ष्मण सिंह के पालतू हिंदी तोते आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की हिंदी करने के पीछे पड़े हैं ।उनकी जिद को संतुष्ट करने के लिये लंगड़े गूगल गुरु के अनुवाद की शरण में जाने पर उसकी हिंदी कृत्रिम बुद्धिमत्ता या मेधा से काम चलाया जा सकता है लेकिन जो चमक दमक और चाकचिक्य अंग्रेजी में है वह हिंदी में नहीं ।हिंदी में आते ही जैसे गुड़ गोबर में परिवर्तित हो जाता है ,अच्छा भला उठता हुआ शेयर डाउन हो जाता है वही हाल परम प्रिय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का है।कृत्रिम बुद्धिमत्ता या मेधा कहते ही मुहँ का स्वाद कड़वा और कसैला हो जाता है।आगे आगे देखिए होता है क्या ?

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