Wednesday, January 3, 2024

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का फंडा

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का फंडा

# मूलचंद्र गौतम 

विश्व पटल पर हाल  ही में प्रकृति प्रदत्त प्रज्ञा और प्रतिभा के स्थानापन्न के रूप में उभरी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस उर्फ ए आई तकनीक ने जो धूम मचा दी है उसने आदमी के ईश्वर में गहरे विश्वास की जड़ों को हिला दिया है । चैट जीपीटी और टेक्स्ट से डीप फेक उर्फ महाफर्जी तस्वीर बनाने में सक्षम डैल ई जैसे उत्पादों ने कम्प्यूटर क्रांति को मानवीय कल्पना की चरम सीमा के परे  तक पहुंचा दिया है ।उसके दुरुपयोग की अनंत सम्भावनाओं से बड़े बड़े ताकतवरों की सत्ता हिली हुई है ।कहीं भी किसी का चेहरा फिट  करके ब्लैकमेल किया जा सकता है।असल से ज्यादा मजेदार पैरोडी हो जाय तो लोग असल को भाव क्यों देंगे ।अभी तक जो लोग फेक न्यूज,पेगासस  और टूल किट में ही उलझे हुए थे कि उनकी जान को यह एक नया बबाल और आ गया ।बीमारी दर बीमारी जो चलते चलते बन जाय महामारी।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से पलभर में पूरे माहौल को बदला जा सकता है।छवि निर्माण और विध्वंस की यह कला कुछ भी करने में समर्थ है । परम्परागत नैतिकता का यहाँ कोई मूल्य और मान नहीं है ।जनता को जितनी दिलचस्पी अफवाहों और चंडूखाने की गपबाजी में होती है उतनी सत्य  जानने में नहीं ।आप देते रहिये सफाई यह गंदगी किसी डिटर्जेंट से साफ नहीं होगी ।इन पर दुनिया का कोई कानून लागू नहीं होता।बाजार में चलती है खोटी चवन्नी और अफवाहों में शुरू हो जाता है दंगा।भीड़ और भेड़चाल में कोई फर्क नहीं रहता।

रोबोटों ने हाड़ माँस के आदमी का मशीनी विकल्प उपलब्ध करा दिया था ।विश्व की बढ़ती आबादी के बीच इनकी उपस्थिति से मानवीय श्रम की गरिमा खतरे में पड़ चुकी है । बेरोजगारी का भूत भविष्य को डरावना बना रहा है।मनुष्य के अद्भुत कल्पनाशील मस्तिष्क को सुपर कम्प्यूटर भी पीछे नहीं छोड़ पाया है तब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से ज्यादा उम्मीद सिर्फ उसके व्यावसायिक उपयोगकर्ताओं को ही हो सकती है ।प्रकृति के वैविध्य के आगे कृत्रिमता यों भी टिक नहीं पाती ।बोनसाई कल्चर ने यह सिद्ध कर दिया है गमले और  साफ सुथरे सजे धजे बाग बगीचे सुंदरता में जंगल का मुकाबला नहीं कर सकते जैसे पालतू महँगे कुत्ते देसी सड़कछापों के आगे टिक नहीं पाते । 

अस्त्र शस्त्रों से पहले हर युद्ध मुहँ जबानी लड़ा जाता है । वाग्वीरों से और कोई अपेक्षा हो भी नहीं सकती।बातों में हारे सो .... ।मोहल्ले की सारी लड़ाइयां शब्दों की महा अश्लील गालियों से लड़ी जाती हैं ।मंटो और इस्मत चुगताई भी यहाँ पानी माँगते हैं ।जाति और धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका यहाँ भी होती है ।इनके अनुरूप गालियों का वजन कम बढ़ होता रहता है।शाकाहारी गालियों के बजाय तीखे मिर्च मसालों वाली गालियों को दर्शकों की ज्यादा वाहवाही हासिल होती है।महिलाओं को यहाँ भी विशेषज्ञता और बढ़त हासिल है ।पुरुषों के झगड़े जहाँ शारीरिक हिंसा में बदल जाते हैं वहाँ महिलाओं की हिंसा  ज्यादातर शाब्दिक रहती है ।चरित्र की भूमिका यहाँ  सोदाहरण प्रमुख रूप से बखानी जाती है।बहनजी टाइप महिलाओं के लिये यह क्षेत्र वर्जित है।

अब हिंग्रेजी में भाषाई समझ का लचीलापन आ चुका है फिर भी शुध्दता के आग्रही  राजा लक्ष्मण सिंह के पालतू हिंदी तोते आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की हिंदी करने के पीछे पड़े हैं ।उनकी जिद को संतुष्ट करने के लिये लंगड़े गूगल गुरु के अनुवाद की शरण में जाने पर उसकी हिंदी कृत्रिम बुद्धिमत्ता या मेधा से काम चलाया जा सकता है लेकिन जो चमक दमक और चाकचिक्य अंग्रेजी में है वह हिंदी में नहीं ।हिंदी में आते ही जैसे गुड़ गोबर में परिवर्तित हो जाता है ,अच्छा भला उठता हुआ शेयर डाउन हो जाता है वही हाल परम प्रिय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का है।कृत्रिम बुद्धिमत्ता या मेधा कहते ही मुहँ का स्वाद कड़वा और कसैला हो जाता है।आगे आगे देखिए होता है क्या ?

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