Wednesday, January 17, 2018

अंकल चिप्स ,वोदका और भारत माता



# मूलचन्द्र गौतम
भारत का आलू ,गन्ना और गेहूं उत्पादक किसान हतप्रभ है कि उसकी मेहनत का कंद मूल फल सड़कों पर फेंका जा रहा है जबकि देश में अंकल चिप्स ,वोदका ,रम और आशीर्वाद की खपत निरंतर बढ़ रही है .ठंडा मतलब कोकाकोला और बिसलेरी धुर गाँव देहात तक पंहुच चुके हैं .अंडे, चिकन और कबाबों  के चखने के बिना शामें रंगीन नहीं हो रही हैं .यह आर्थिक सुधारों का असर है कि  हिन्दुओं में धार्मिक और सांस्कृतिक नवजागरण अप्रासंगिक हो चुके हैं . अहिंसक देवी जागरणों  तक में फ़िल्मी धुनों और दारू- मुर्गों की बहार है . सामूहिक बलात्कार अपराधियों में  फैशन और हाई स्टैण्डर्ड का मानक बन चुका है .यानी सात्विक देवी की जगह तामसिक देवी देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है .वो तो भला हो गणेश और हनुमानजी का जो अभी तक घूस के लड्डुओं  के शाकाहार तक ही सीमित हैं  और उत्तर आधुनिक नहीं हो पा रहे हैं वरना इनके भक्त रक्त की नदियाँ बहा देते और मांस के पहाड़ खड़े कर देते .भले ही राजेन्द्र यादव जैसे मतकटों ने हनुमानजी को आदिम आतंकवादी बता कर बदनाम किया था .
 भारत का  औसत देहाती किसान अभी तक होरी और हल्कू की नियति से आगे नहीं बढ़ा है .एनसीआर और बड़े बड़े शहरों में कुछ किसानों ने जमीनें बेचकर जरूर कुछ दौलत जमा कर ली है और बहुओं को हेलिकॉप्टर से विदा करवाकर लाने में खर्च कर दी है लेकिन बाकी मजदूरी करके पेट पाल रहे हैं .गाय बैलों और अन्य पशु पक्षियों की उनकी दुनिया अलविदा हो गयी है .प्रेमचन्द की जगह अंग्रेजी का गुलशन नंदा चेतन भगत युवा हृदय सम्राट हो चुका है .लिव इन का दौर दौरा है .

 वोट जुगाड़ने में माहिर हमारे  जन गण मन अधिनायक  और उनके समर्पित कार्यकर्ता  अभी तक खुल्लमखुल्ला देश और विदेश के  गिने चुने अल्पसंख्यक अमीरों के हिमायती दिखने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं क्योंकि सत्ता  की कुंजी बहुसंख्यक गरीबों के हाथों में है .यह चाबी हासिल करने का एकमात्र हुनर गरीबी हटाने के जादू में है जिसे पाकर वे पांच साल तक निर्भय होकर अमीरों की खिदमत में जी जान से जुट जाते हैं .इसीलिए वे  अगले चुनाव तक किसानों और मजदूरों की आमदनी दोगुनी करने का आश्वासन देकर उन्हें सम्मोहित करने की सफल कोशिश करते हैं ताकि उनका वोट  विपक्ष की सेंधमारी से सुरक्षित रहे .यों भी विपक्ष भी किसानों को आलू चिप्स और वोदका बनाने का अधिकार नहीं देना चाहता .किसानों की सहकारिता को बढ़ाने के बजाय सबकी दिलचस्पी कारपोरेट की ताकत बढ़ाने में है जो उन्हें मोटा अपारदर्शी चुनावी चंदा देते हैं जिसके द्वारा वे गरीबों की गर्दन का फंदा कसते जाते हैं और जोर शोर से  नारा लगाते हैं भारतमाता की जय .नेताओं और कारपोरेटों की यह चमचमाती चौखम्भा भारतमाता जब राजपथ और जनपथ से गुजरती है तो  सुमित्रानंदन पन्त की  यह गरीबनी ग्रामवासिनी भारतमाता नागासाकी और हिरोशिमा की आशंकाओं से त्रस्त होकर अपनी सौ करोड़ निर्धन ,नग्न तन संतानों को डरकर अपने आंचल में छिपा लेती है .

# शक्तिनगर,चन्दौसी,संभल 244412 मोबाइल-9412322067