Tuesday, August 15, 2023

दामोदर दीक्षित

विदेश यात्रा के मार्गदर्शक आँकड़े ,इतिहास और रोजनामचा
# मूलचन्द्र गौतम

सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ 
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ 
~ख़्वाजा मीर दर्द

दुनियाभर के रहस्यों की जानकारी और आविष्कारों की जड़ में यात्राओं का बड़ा योगदान रहा है ।अंतरिक्ष विज्ञान आज भी ग्रहों उपग्रहों तक की यात्राओं की तैयारी कर रहा है ।विश्वभर के भूगोल खगोल के इतिहास की खोज यात्राओं से ही संभव हुई है इन यात्राओं ने जो इतिहास बनाया है वह आज भी हमें प्रेरित करता है ।
दामोदर दत्त दीक्षित भी यात्राओं के मौके और बहाने  की तलाश में रहते हैं ।उनके ये सपने यात्रा वृतांत की तीन किताबों में मौजूद हैं । उन्होंने एक सामान्य पर्यटक की तरह केवल शौकिया यात्राएं नहीं की हैं ।अमेरिका, इंग्लैंड ,यूरोप और जापान की उनकी यात्राएं इन देशों के कुछ ऐसे तथ्यों , घटनाओं,आंकड़ों और इतिहास की परतें खोलती हैं जो  कभी इन यात्राओं में जाने पर आम पाठक के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकती हैं ।

दीक्षित जी ने इन यात्राओं को दैनंदिनी उर्फ डायरी उर्फ रोजनामचे के शिल्प में नित्यकर्म की तरह निःसंकोच दर्ज किया है ।जगने से लेकर सोने तक की क्रियाओं और घटनाओं का आद्योपांत विवरण कुछ लोगों को उबाऊ होने  की हद तक अरुचिकर लग सकता है ।इस मायने में यह वेल केलकुलेटेड डायरी है जीवन की तरह  ।पाठकों को उनकी काफी व्यक्तिगत किस्म की जानकारियाँ ,रिश्तेदारियाँ और पुनरावृत्तियाँ प्रवाह में बाधक लग सकती हैं लेकिन वह निजी लेखकीय स्वतंत्रता और अस्मिता का सवाल है ,चुनाव है ,जहाँ निजी और सार्वजनिक में कुछ भी गोपनीय नहीं है और यह साहस और जोखिम का मामला है ।

फिलहाल हिंदी की जड़ दुनिया में यह निरर्थक किस्म की बहस चल रही है कि डायरी साहित्य की पवित्र मुख्यधारा में नहीं आती ।साहित्य के फुटकल खाते में भी उसकी कोई जगह नहीं बनती जबकि तमाम महान  दार्शनिकों और लेखकों की डायरियों के विधागत कॉकटेल  ने अद्भुत तथ्यों और रहस्यों को उजागर किया है।उनकी दिलचस्प जानकारियों को और किसी शिल्प में अभिव्यक्त ही नहीं किया जा सकता था ।मुक्तिबोध ने तो एक साहित्यिक की डायरी में बड़ा गम्भीर विमर्श प्रस्तुत कर दिया था ।

एक औसत भारतीय आदतन बचतप्रेमी और किफायती होता है ।इसलिए वह विदेश में  आब्सेशन की हद तक निरंतर मुद्रा के विनिमय से भयाक्रांत रहता है ।डालर ,पौंड और यूरो का आतंक सबसे ज्यादा है ।दीक्षित जी भी इसके अपवाद नहीं हैं ।वे प्रायः अवमानना की हद तक भारतीय रुपये और डालर तथा यूरो की तुलना करते रहते हैं जबकि जापान यात्रा में येन का कोई जिक्र तक नहीं करते लेकिन बात साहित्य और साहित्यकार की प्रतिष्ठा की हो तो धन तुच्छ हो जाता है।वेनिस के मशहूर कैफे फ्लोरियन जहाँ महान कवि लार्ड बायरन बैठा करते थे ,में दीक्षित जी भी काफी क्यों न पीयें ?ऐसे में दीक्षिताइन का  महंगाई विरोधी व्यावहारिक अर्थशास्त्र का त्रिया हठ दीक्षित जी के बाल हठ से हार जाता है ।यानी दो कप केपुचिनो काफी  भारतीय मुद्रा में 2625 रुपये की ।'जब कवि बड़ा है ,तो पैसे भी बड़े खर्च करवायेगा '(रोम से लंदन तक पृष्ठ 53)।भारत में बड़े से बड़े रचनाकारों  को लेकर यह व्यापारिक  प्रवृत्ति अभी दुर्लभ है ।

भारत का कोई भी व्यक्ति जब विदेश यात्रा करता है तो जाहिर है वह देश की स्थितियों की तुलना किये बगैर रह नहीं सकता ।कई बार तो राष्ट्रद्रोह की हद तक औपनिवेशिक दृष्टि से  देश और देशवासियों को धिक्कारता प्रतीत होता है ।यात्री गोबर पट्टी का हो तो क्या कहने ?दीक्षित जी भी इस पीड़ा से त्रस्त हैं ।अमेरिकन कार्य दक्षता की तुलना में पंद्रह मिनट का काम कई दिनों में होता ।"एक तो कर्मचारी ही सही समय पर न आये होते ।फिर थोड़ी देर आपस में बात करते ,चाय मंगाकर पीते।इसके बाद काम शरू करते हर व्यक्ति का कार्य करने के बाद सुस्ताते ।....यह भी संभव है ,कह दिया जाता कम्प्यूटर खराब है ,कल आइयेगा।यह एक कटु सत्य है जिससे इंकार करना सच्चाई को झुठलाना होगा "(अटलांटिक -प्रशांत के बीच 126)इसके अलावा नीदरलैंड के होटल के काउंटर पर रखे जूस के कंटेनरों पर 'हमारे लोग कई कई ग्लास जूस पी रहे थे और कंटेनर खाली करने पर आमादा थे ,इस बात से बेखबर कि उनके इस आचरण से देश की भद पिट रही है ,हमारी छवि मुफ्तखोरों ,मरभुक्खों की बन रही है '(रोम से लंदन तक ,104)इससे भी ज्यादा हद तो तब हुई जब दल की एक सदस्या ने एक खूबसूरत चम्मच अपने हैंडबैग के हवाले कर दिया (वही 107)इस तरह की कितनी ही शर्मनाक खबरें रोजाना मीडिया में आती रहती हैं ।दीक्षित जी लास वेगस में फव्वारों की नियमित सफाई को देखकर पीड़ित हैं कि "हमारे देश में यही नहीं है ।मेंटेनेंस यानी अनुरक्षण और उसके महत्व की ओर व्यवस्था का ध्यान नहीं जाता" हर विभाग बेहाल है ।सड़क, बिजली, टेलीफोन यहाँ तक कि "जितने गंदे सार्वजनिक शौचालय अपने देश में होते हैं ,उतने शायद ही कहीं होते होंगे।"(जापान, फिर अमेरिका 200)क्या इसी ब्रेन ड्रेन के चलते विदेश में स्थायी रूप से बसे लोग देश नहीं लौटना चाहते ?

संवेदनशील रचनाकार और इतिहासविद होने के नाते दीक्षित जी विश्व की तमाम घटनाओं के बारे में एक निश्चित राय रखते हैं ।अश्वेत समुदाय अमेरिकी वैभव के कालीन में टाट का पैबन्द है।मेक्सिको के मजदूरों को यहाँ "दयनीय भाव से देखा जाता है, इन पर चुटकुले बनाये जाते हैं ,व्यंग्य कसा जाता है ।गरीबों का ,वंचितों का,प्रवासियों का ,भिन्न रूप रंग और भिन्न संस्कृति के लोगों का मजाक उड़ाना, उन पर व्यंग्यबाण चलाना शायद सार्वभौमिक और सार्वकालिक कटु सत्य है जिसकी जितनी भी निंदा ,जितनी भी भर्त्सना की जाय कम है "(अटलांटिक-प्रशांत के बीच 40)यूएस होलोकास्ट मेमोरियल म्यूजियम में नाजी अत्याचारों का विस्तृत प्रदर्शन है ।दीक्षित जी अत्याचार मात्र के विरोधी हैं ।इसलिए उनका जेनुइन सवाल है कि यहाँ "विश्व के अन्य देशों में भी राजसत्ता ने अत्यंत निकृष्ट और घृणित अत्याचार किये हैं ,यातनाएं दी हैं और महाविनाश का हेतु बने हैं ।उनको क्यों नहीं दिखाया गया ?"(वही 115)लास वेगस के मांडले बे कसीनो में लेनिन की सिर कटी प्रतिमा को देखकर उन्हें तकलीफ होती है "लेनिन की विचारधारा से कोई असहमत हो सकता है,पर इसका यह अर्थ नहीं कि उन्हें इस तरह अपमानित किया जाय भले ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ ली जाय "(जापान फिर अमेरिका 172)वे तो फ्रांस की महारानी मेरी अन्त्वानेत की फाँसी को भी  तथाकथित क्रांतिकारियों का गलत निर्णय मानते हैं ।"राजशाहियों ने जो कुकृत्य किये ,कई क्रांतियों के क्रान्तिकारियों ने भी सत्ता हथियाने के बाद वही कुकृत्य किये तो फिर फर्क क्या रह गया ?(रोम से लंदन तक  139)यह सहज मानवीय दृष्टि इतिहास को एक नया आयाम देती है ।इसी वजह से वे वियतनाम युद्ध में अमेरिकी सैनिकों का मनोरंजन करने गयी भारतीय  विश्वसुंदरी रीता फारिया का जाना उचित नहीं मानते भले ही यह उनके करार की मंजूरी या मजबूरी क्यों न हो (अटलांटिक प्रशांत के बीच 39)यह सौंदर्य प्रतियोगिताओं के पीछे की वर्चस्व की, व्यापार की राजनीति है जिसे सामान्य लोग समझ नहीं पाते ।
दीक्षित जी की रुचियों का क्षेत्र वैविध्यपूर्ण है जिसका परिचय लगातार मिलता रहता है ।सुरुचिपूर्ण शाकाहारी भोजन के साथ खेलों में भी उनकी दिलचस्पी है।स्टेफी ग्राफ उनकी परमप्रिय खिलाड़ी है जो लास वेगस के पास समरलिन की पाश कालोनी में अपने अमेरिकी पति आंद्रे अगासी के साथ सपरिवार रहती है ।दीक्षित जी को उसके तमाम रिकार्ड मुंहजबानी याद हैं ।

दीक्षित जी का बचपन का सपना था कि यूरोप -विशेषकर इटली ,इंग्लैंड, स्विट्जरलैंड, जर्मनी और फ्रांस की यात्रा जो हकीकत बन चुका है ।ट्रेवल एजेंसी के माध्यम से की गयी उनकी योरप और इंग्लैंड की यात्रा के विवरण गम्भीर जानकारियों से समृद्ध हैं ।उनके दो पुत्र अमेरिका में सुव्यवस्थित हैं इसलिए अब वह उनका दूसरा घर है ,जहाँ जाकर वे साधिकार  भारतीय संस्कारी बेटों की क्लास ले सकते हैं ।उनके कारण ही अमेरिका यात्रा सहज और सुचारू पारिवारिक तरीके से सम्पन्न हो सकी ।

दीक्षित जी का सम्पूर्ण यात्रा पथ प्रामाणिक स्रोतों से ली गयी  जानकारियों से भरा हुआ है ।इससे पता चलता है कि यह सारा काम उन्होंने पूरी सजगता और तैयारी के साथ सुनियोजित तरीके से सम्पन्न किया है ।यहाँ उनकी इस यात्रा के सम्पूर्ण स्थलों का विवरण देना कोई उद्देश्य नहीं है लेकिन उदाहरण के तौर पर देखना हो तो टोक्यो टावर के उनके विवरण को देखा जा सकता है ।"1958 में निर्मित 333मीटर ऊँचा टोक्यो टावर वास्तव में ब्राडकास्टिंग टावर है जिससे रेडियो दूरदर्शन का प्रसारण होता है ।यह पेरिस के सुप्रसिद्ध आइफल टावर से भी ज्यादा ऊँचा है जिसकी ऊँचाई 324 मीटर है ।फिर भी टोक्यो टावर का वजन आइफल टावर से कम है।आइफल टावर का वजन लगभग7000 टन है जबकि टोक्यो टावर का वजन लगभग4000 टन है जो हल्की पर मजबूत स्टील से निर्मित है ।टोक्यो टावर में दो दर्शन दीर्घाएं हैं जो क्रमशः 150 मीटर और 250 मीटर की ऊंचाई पर हैं ।टोक्यो टावर में एक एक्वेरियम भी है जो आकर्षण का केंद्र है ।(जापान फिर अमेरिका 26)ठीक यही स्थिति हर पर्यटन स्थल की जानकारी की  है जिसकी पुनरावृत्ति और विस्तृत विवेचन की यहाँ कोई आवश्यकता नहीं है ।पाठक उसका अनुभव स्वयं  कर सकते हैं ।
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