रामलीला में बंदरों ने रावण
की नाक में दम कर दिया था .लंकादहन से लेकर राजतिलक तक उनकी अहम भूमिका थी
.अंग्रेजों से युद्ध में भी इंदिरा गाँधी की वानर सेना ने गांधीजी की बड़ी भारी मदद
की थी . वर्तमान में बजरंगियों के विरोधी निश्चित ही रामराज्य के दुश्मन नम्बर वन
हैं .
जिन्हें आज भी बंदरों के आतंकवाद के दर्शन करने हैं वे वृन्दावन चले
जाएँ या हमारे मिनी वृन्दावन में चले आयें .मेनका गाँधी इनकी संरक्षक हैं .जैसे
पहले मदारी इन्हें नचाकर जीविका कमाते थे, उसी तरह अब उचक्के इन्हें पालकर लोगों के नये कपड़े ,चश्मे और मोबाइल उड़ाने के लिए
इस्तेमाल कर रहे हैं .तमाम सूखते कपड़ों में से ये एकदम नया कपड़ा चुनकर घूस की आस
में घर की मुंडेर पर बैठ जाते हैं .खाने को कुछ मिलते ही ये उसे छोड़कर चल देते हैं
और न देने पर मालिक की आँखों के सामने ही उनके कलेजे के टुकड़े –टुकड़े कर डालते हैं
और वह मन मसोसकर उनके संरक्षक को चार-छह चुनी हुई गालियाँ देकर चुप होकर बैठ जाता
है .
कल्पना कीजिये कि किसी हसीना की आँखों पर सजा मंहगा चश्मा अचानक छिन
जाए या किसी गरीब बुजुर्ग की आँखों का नूर
छिन जाए और किसी नौजवान का मोबाइल छिन जाए .बन्दर आगे –आगे और मालिक पीछे –पीछे .फोन
आने पर घंटी बजे और वानरराज बड़े मजे से उसे सुनें .कोई पुलिस इसमें कर क्या सकती
है .वानरराज ठहरे साक्षात् हनुमानजी के अवतार .आपने कुछ ऐसा –वैसा किया तो उनके
भक्त बजरंगी आपकी हड्डी पसली और तोड़ डालेंगे .
अपने मिनी वृन्दावन में कामधेनु और कल्पवृक्ष के प्रेमी धनवानों
ने थोक में इन्हें पूड़ी ,पुए ,आम ,केले
खिला –खिलाकर इनकी आदतें खराब कर दी हैं .ऊपर से इनकी वंशबेल जिस गति से बढ़ रही है
उस हिसाब से ये जल्द ही चीन को पीछे छोड़ देंगे .मंगलवार और शनिवार तो इनके महाभोज
के दिन हैं .निरालाजी का भूखा पेट –पीठ दोनों मिलकर हैं एक /चल रहा लकुटिया
टेक भिक्षुक इन्हें आज भी बड़ी हसरतों से
देखता है और अपने भाग्य को कोसता है .रसखान खुद इनके मजे देखकर अगले जनम में वृन्दावन के बन्दर बनना चाहते थे .हालाँकि ऐसा
उन्होंने खुलकर नहीं कहा था क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं इस संवेदनशील
प्रतिक्रिया से साम्प्रदायिक दंगा न हो जाए .
मेनकाजी के डर से सरकार
प्रयोगशालाओं के लिए इनका निर्यात करने की स्थिति में भी नहीं है .इनकी
नसबंदी पर भी कानूनी प्रतिबन्ध है .कुछ सिरफिरों ने चंदा करके इनके निष्कासन का
प्रोग्राम भी बनाया जो बहुसंख्यक धर्मप्राण –धर्मभीरु लोगों के लोकतान्त्रिक विरोध के कारण फुस्स हो गया
.उन्हीं में से कुछ अहिंसक मूर्खों ने लंगर में
भाँग की रोटियां बनवाकर इन्हें खिलाकर ट्रक में लदवाकर जंगल में छुड्वाया .अगले
दिन मुहल्लों में इन्हें फिर देखकर उनके होश गुम हो गये .और वे झख मारकर गाने लगे
वृन्दावन धाम अपार......
वृन्दावन के बंदरों पर आपका लेख सुन्दर लगा.......
ReplyDeleteमैं भी भुक्त भोगी हूँ। एक फ्रूटी देकर चप्पल छुडाई थी।
जय जय श्री राधे