Thursday, July 30, 2015

कोफ़्त के साथ कोफ़्ता


जबसे मिड डे मील में देहाती बच्चों को दूध के साथ कोफ़्ता मिलने लगा है वे स्कूल नहीं आ रहे ,इससे मुझे क्या पूरी सरकार को चिंता होने लगी है कि आखिर ये भूखे नंगे क्या खाकर संतुष्ट होंगे .पहले इनके खाने में कीड़े मकोड़े निकल रहे थे और अब कैमिकल .अंडा दिया गया तो ये बिदक गये कि यह मांसाहार है .सरकारी स्कूलों से बच्चों को भगाने के और कौन से उपाय किये जाने चाहिए इसके लिए सरकार ने एक कमेटी गठित कर दी है .मुफ्तखोरों को चन्दन लगाना भी रास नहीं आ रहा और ये मीडिया है कि लगातार खबरें छाप रहा है कि दूध पीने से कुपोषित बच्चे सामूहिक रूप से बीमार हो रहे हैं .कोफ्ता फ़िलहाल मुल्तवी है क्योंकि उसे बनाने वाले ही नहीं मिल रहे .देहाती रसोइयों को पल्ले ही नहीं पड़ रहा कि यह कोफ़्ता भला किस बला –अबला का नाम है .हिन्दू इसे मुसलमान डिश समझ रहे हैं और मियां भाई इसे पोलियो की दवा .
इसीलिए आंगनवाडी की पंजीरी भैसों को खिलाई जा रही है .मीठे कट्टे वाली आंटी को भैंसों से कोई शिकायत नहीं मिल रही. उनका दुग्ध उत्पादन बढ़ गया है और उनके गर्भस्थ शिशु स्वस्थ पैदा हो रहे हैं .दे उसका भी भला और न दे उसका भी भला तो फिर भला क्यों किया जाये ?समझदार नेताओं  ने जनता और जानवरों में फर्क करना बंद कर दिया है .  इसलिए विश्व बैंक के कर्ज का पूरा माल जानवरों में तकसीम किया जा रहा है .
पडौस में रहने वाले एक उर्दू शायर से जब मैंने पूछा कि यह कोफ्ता कहाँ से आया तो उन्होंने पहले तो कहा –ला हौल बिला कुब्बत फिर बोले कि मुझसे ऐसे सवाल क़िबला क्यों पूछ रहे हो मुझे बड़ी कोफ़्त हो रही है .तो मैं धीरे –धीरे कोफ़्ते के नजदीक पहुंचा हुआ महसूस करने लगा .मैंने जान लिया कि यह कोफ़्ता जरुर कोफ़्त का बड़ा भाई होगा . मलाई कोफ्ता तो कोफ़्त का दामाद होता होगा . जैसे पूड़ी से बड़ी मलाई पूड़ी .इससे तो अच्छा होता सरकार इन नामुरादों में पनीर बंटवा देती .पनीर का नाम सुनते ही बड़े –बड़ों के मुंह में पानी आने लगता है और यह शाही हो तो क्या कहने ?आदमी इसे खाकर खुद को शहंशाह से कम नहीं समझता .कमेटी को चाहिए कि अब देहाती स्कूलों को स्मार्ट बनाने के लिए उन्हें फाइव स्टार का दर्जा दे दे और उनका मीनू संसद की कैंटीन की तरह हाई –फाई नहीं तो कमसे कम वाई फाई ही कर दे .

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