Monday, September 9, 2013

डबल इंग्लिश

डबल इंग्लिश
मूलचन्द्र गौतम 
एक जमाना था जब बीए पार्ट वन में जनरल इंग्लिश में सत्तर प्रतिशत विद्यार्थी फेल होकर पढाई छोड़ बैठते थे .कम्पार्टमेंट या सप्लीमेंटरी का लाभ भी बहुत कम को मिलता था .भला हो उत्तर प्रदेश सरकार का कि देश के विशालकाय आगरा विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में बालकृष्ण राव की नियुक्ति की .उन्होंने जनरल इंग्लिश के स्थान पर हिंदी भाषा का विकल्प देकर बहुत से गरीब ग्रामीण छात्रों को अंग्रेजी में फेल होने के आतंक से मुक्त कर दिया .इससे हिंदी के अध्यापकों की संख्या में भी वृद्धि हुई .
अब उत्तर प्रदेश की गरीब जनता का स्तर उठ गया है .हाल के दस वर्षों में हालात उलट गये हैं . बीए प्रथम वर्ष की प्रवेश समिति के संयोजक के नाते हिंदी के प्रोफेसर  मुरारीलाल का मुंह लटक गया है क्योंकि उनकी रोजी –रोटी खतरे में पड़ गई है .ज्यादातर छात्र –छात्राओं ने आवेदन पत्र में डबल इंग्लिश ली है .नकल से पास हुए इन छात्रों के चेहरे मोहरे से इंग्लिश की बू –बास तक नहीं आती .लिटरेचर को लिटलेचर कहने वाले ये भावी कलक्टर हिंदी सहपाठियो और अध्यापकों को जिस हिकारत से देखते हैं ,वह नाकाबिले बर्दाश्त है .हिंदी की क्लासों में मुर्दनी छाई रहती है .शर्म के मारे कोई भी किताब तक नहीं लाना चाहता कि कोई पूछ न बैठे कि ये घर की मुर्गी –हिंदी भी कोई पढने की चीज है .हिंदी का अख़बार पढना भी अब बेइज्जती है .मुरारीलाल के लडकों के खुद घर में अंग्रेजी का अख़बार लगा लिया है .हिंदी के अख़बारों में वैवाहिक विज्ञापन तक गरीब - स्तरहीन और घटिया लोगों के छपते हैं ,जिनके पास दहेज में कार तक देने की औकात नहीं है .और तो और एमए हिंदी लडकी को कोई शादी लायक तक नहीं मानता क्योंकि उसकी काबिलियत मात्र इतनी है जितनी पहले चिट्ठी या रामायण पढकर सुना देने वाली लडकी की हुआ करती थी .अलबत्ता प्राइमरी स्कूल में मास्टरनी हो तो उसके बारे में सोचा जा सकता है .
डबल इंग्लिश न हुई दवा की डबल डोज हो गई .डबल नाल की दोनाली हो गई .अब बच्चों के नाम तक डब्बल रखे जा रहे हैं हो भले ही सिंगल .इसी चक्कर में बसें तक डबल डेकर हो गयी हैं .कान्वेंटों में हिंदी बोलना तक निषिद्ध है –जुर्माना तक देना पड़ेगा .इसीलिए बिना टाई के पढने वाले बच्चे जाहिलों में गिने जाने लगे हैं .टाट-पट्टी वाले स्कूल उन्हीं के लिए हैं जो फीस नहीं भर सकते और मिड डे मील खाकर मरने को मजबूर हैं .निज भाषा जब उन्नति के बजाय अवनति का कारण बन जाये तो कौन पढ़ेगा उसे .क्या इसीलिए मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी हो गया है .

# मूलचंद गौतम ,शक्तिनगर ,चंदौसी ,संभल  उ.प्र.244412मोबाइल-9412322067

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