Thursday, October 3, 2013

विमर्श :शौचालय क्रांति

# मूलचन्द्र गौतम
देश में अब तक हरित ,श्वेत ,रक्त ,संचार इत्यादि अनेक प्रकार की क्रांतियाँ हो चुकी हैं .अब जरूरत है शौचालय क्रांति की .गांधीजी ने बहुत पहले छुआछूत विरोधी आन्दोलन के सिलसिले में इस क्रांति की जरूरत को महसूस कर लिया था ।किसी एक जाति के लोगों का ही जिम्मा क्यों हो दूसरों की फैलाई हुई गन्दगी को साफ करना।यह व्यक्तिगत के साथ सामूहिक जिम्मेदारी होनी चाहिए।फ्लश सिस्टम ने इसे आसान बनाया लेकिन गटर और सड़कों की सफाई ?सदियों से दलितों की मानसिकता की जड़ में जमी हीनता ,कुंठा इतनी आसानी से तो नहीं निकल जायेगी?
.ईश्वर-अल्ला तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान -से गांधीजी का आशय यही था कि सभी धर्मों का सार है -शुचिता-पवित्रता ।यम नियम के पालन और आचरण ने ही गांधीजी को महान बनाया । हरिजन और वैष्णव जन का सामंजस्य ही उनका परम लक्ष्य था ।आगा खां पैलेस में जेल काटते हुए कस्तूरबा से उनका झगड़ा खुद शौचालय की सफाई को लेकर हुआ था जिसमें गांधीजी की जिद की जीत हुई थी  ।देवता  यों भी गंदगी में वास नहीं  करते .आज भी देवता फाइव स्टार से कम सफाई में नहीं रुकते .इसीलिए अब आधुनिक स्थापत्य में मॉड्यूलर किचेन की तरह मॉड्यूलर बाथरूम पर जोर है।एक हमारे भाई साहब को तो हिन्दुस्तानी तरीके के उकडूं बैठने वाले शौचालयों तक से नफरत है .उनका अटल सिद्धांत है कि किसी आदमी का स्तर जांचना हो तो उसका बाथरूम देख लो ।जैसे शाकाहारी लोग प्याज तक की गंध बर्दाश्त नहीं कर पाते वैसी ही हालत कमोड के शौकीनों की होती है .वे कहीं भी घुसने से पहले यह पूछना नहीं भूलते कि वाशरूम में इंग्लिश सीट  है कि नहीं ?

सरकार ने देहातों तक में सिर पर मैला धोने की प्रथा को बंद करने के लिए शौचालयों के निर्माण को प्राथमिकता दी है .शुष्क शौचालय लगभग खत्म हैं।देहाती महिलाएं पहले शौच के बहाने खेतों में बैठकर घंटों पंचायत करती थीं .किसी आदमी के आते ही उसे गार्ड ऑफ ऑनर देती थीं जिसका उल्लेख राग दरबारी तक में बड़ी शान से हुआ है।घरों में शौचालयों के निर्माण से इस कुप्रवृत्ति पर रोक लगी है .बलात्कार की घटनाएँ भी कम हुई हैं .शौच से बायोगेस प्लांट लगाकर लोगों ने क्रांति कर दी है .ऑर्गेनिक फ़ूड का नया धंधा उठान पर है ।
मानव विकास सूचकांक के मानकों के अनुरूप मल मूत्र विसर्जन के वैश्विक तंत्र और प्रबंधन की दृष्टि से भारत निम्नतम स्तर पर है ।सबै भूमि गोपाल की तरह सर्वर्त्र विसर्जन की आजादी ने यह कमाल कर दिया है।गधे के पूत यहाँ मत मूत की इबारतों से गधों को कोई फर्क नहीं पड़ता ।भुगतान पर इन सुविधाओं को हासिल करना आम जनमानस में अभी नहीं पनपा है ।यूरोप यात्रा में मेरा यह अनुभव और पक्का हुआ ।मुफ्त का चन्दन हमें हर जगह चाहिए।सब्सिडी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।शौचालय निर्माण की सब्सिडी में भृष्टाचार और घपले ने यह सिध्द कर दिया है कि यह हमारे खून में है।भारत में केवल सिक्किम अकेला राज्य है जहाँ सार्वजनिक मल मूत्र विसर्जन और प्लास्टिक का उपयोग सख्ती से वर्जित है। काश ऐसा पूरे देश में लागू होता ।
हर  क्रांति का सबसे बड़ा फायदा मध्यवर्गीय सवर्णों ने उठाया है .अब जूतों की ज्यादातर दुकानें इन्हीं की हैं .जातिगत पेशे समाप्तप्राय हैं।अब सफाई कर्मचारी बनने में किसी की हेटी नहीं भले एवजी में आदमी रख दें शिक्षकों की तरह ।बड़े बड़े क्वालीफाइड युवक चपरासी की सरकारी नौकरी की लाइन में हैं। पंडित विन्देश्वर पाठक ने सुलभ शौचालयों से क्रांति कर दी है .देश भर में एक नयी संस्कृति विकसित की है ।इतना ही  नहीं उसे इंटरनेशनल बनाकर संयुक्तराष्ट्र संघ से मान्यता भी हासिल की है। लोगों को रोजगार दिया है ।अच्छा हो कि इस कार्य का  पूरे देश का ठेका उन्हें दे दिया जाय ।
 शौचालय क्रांति के विरोधी जानते हैं कि इससे  उन्हीं लोगों को लाभ होगा जो सदियों उनके जूतों तले कुचले जाते रहे हैं .अब इन मूढों को कौन समझाए कि जमाना बदल रहा है .धंधा देखो -जाति और धर्म में क्या रखा है ?
# शक्तिनगर, चन्दौसी, संभल 244412
मोबाइल 8218636741

1 comment:

  1. बहुत अच्छा !
    नमो चुनावी शौचालय !

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