इतिहास सत्ता का
प्रोपेगेंडा मात्र है –जर्मन नाटककार अर्नेस्ट टालर.
आखिर प्रोफेशनल
इतिहासकारों के बाद साहित्यकारों को ही इतिहास और राजनीति के प्रेत क्यों परेशान
करते हैं ?
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और जयशंकर प्रसाद को
क्या जरूरत थी –इतिहास के घने जंगल में घुसने और भटकने की .आचार्य चतुरसेन और
वृंदावनलाल वर्मा से लेकर भगवान सिंहतक भटक रहे हैं लेकिन अंतिम रूप से कुछ तय
नहीं हो पा रहा कि इतिहास का सत्य और तथ्य क्या है ?फिर कैसे तय होगा इतिहास
?रोमिला थापर और पी एन ओक के बीच का झगड़ा है सारा .शास्त्र और शस्त्रों से भी तय
नहीं हो पाया यह झगड़ा .विभाजन ,मुतबातिर दंगों और बावरी मस्जिद विध्वंस से भी सुलझ नहीं पाई यह गांठ .
बोतल में बंद यह
जिन्न फिर सामने आकर खड़ा है –जबाव पाने को .संघी इतिहासकारों ने पुराने अस्त्र –शस्त्र संभाल लिए हैं .सास भी कभी बहू
थी की नायिका सुलझाएगी इस अबूझ पहेली को ?डर है कि अबकी बार कहीं ताजमहल को ढहाकर
शिवमन्दिर निर्माण का संकल्प न ले लिया जाय ?अकबर और राणा प्रताप .औरंगजेब और
शिवाजी फिल्मों और टीवी सीरियलों से बाहर न निकल पड़ें कहीं ?
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