Saturday, October 25, 2014

काला धन और छद्म राष्ट्रवाद


भ्रष्ट और छद्म धर्मनिरपेक्ष यूपीए सरकार के खिलाफ कालेधन को स्वदेश लाने,अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के विरुद्ध हिंदुत्व को जाग्रत करने के एजेंडे पर केंद्र की सत्ता में आई मोदी सरकार द्वारा सुप्रीमकोर्ट में विदेशों में कालाधन रखने वालों के नामों का खुलासा न करने के कमजोर  तर्कों ने सिद्ध कर दिया है कि बुनियादी तौर पर जनमत के साथ धोखा हुआ है .वित्तमंत्री अरुण जेटली के ब्लेकमैली कुतर्कों ने कांग्रेस को भले कठघरे में खड़ा किया हो ,जनता को निराश ही किया है .मोदी के विदेशी दौरों और हवाई वादों से सरकार की हवा बनाने की रणनीति ज्यादा समय तक कारगर नहीं होगी .रामजेठ्मलानी और सुब्रहमन्यणम स्वामी जैसे शुभचिंतकों की मानें तो  सरकार की ओर से सुप्रीमकोर्ट में उठाये गये  ये ‘बिना सोचे समझे ‘कदम केवल समस्या से बचने के बचकाने बहाने हैं .दोहरे कराधान से बचाव के समझौतों की आड़ में कौन से राष्ट्रवाद की रक्षा होगी यह छिपी हुई बात नहीं है .कांग्रेस ने इसी तरह के गोपनीयता के नियमों के तहत आजादी के समझौतों का खुलासा आज तक नहीं होने दिया है.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि जनता किस पर विश्वास करे .जैसे सांपनाथ वैसे नागनाथ के जाल में फंसने के अलावा भी  उसके पास कोई मजबूत विकल्प बचता है क्या ?राष्ट्रीय और क्षेत्रीय झमेलों में सत्ता का ध्रुवीकरण उसे कैसे भटकाता है ,यह बतानेवाले मीडिया का भी व्यवसायीकरण इस विकल्पहीनता को बढ़ाता है . आज जनविरोधी प्रयत्नों को निष्फल करने की रणनीति पर विचार की बेहद जरूरत है .कांग्रेस मुक्त भारत की बात करने वालों के विरुद्ध भाजपा मुक्त भारत के ध्रुवीकरण के विकल्प मौजूद हैं . जल्द ही जरूरत उस तीसरे विकल्प की भी महसूस होने लगेगी जो दोनों से मुक्त करके देश को सही दिशा देगा .

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