हाल ही में अन्नाद्रमुक प्रमुख और तमिलनाडू की मुख्यमंत्री सुश्री
जयललिता के आय से अधिक सम्पत्ति और भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाने से दुखी उनके
१९३ समर्थकों ने जान की बाजी लगा दी .इनमें
से १३९ की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई और बाकी ने ख़ुदकुशी कर ली .जयललिता ने पार्टी की ओर से मृतकों के परिवारों से
सहानुभूति जताते हुए सभी को बिना भेदभाव के तीन –तीन लाख रूपये की राहत राशि देने
का ऐलान किया है जबकि ख़ुदकुशी की कोशिश करने वाले लोगों के उपचार के लिए पचास हजार
की राशि दी जाएगी .आत्मघातियों को मुआवजे का यह ऐलान क्या इस नकारात्मक प्रवृत्ति को बढ़ावा नहीं देगा ?सुप्रीमकोर्ट को चाहिए कि वह इस घटना का स्वत;संज्ञान लेकर इस पर रोक लगाये भले उसे इस रूप में जमानत देने की एक नई शर्त जोडनी पड़े .
ये घटनाएँ सिद्ध करती हैं कि दक्षिण
की जनता अपने नेताओं और अभिनेताओं को आत्मघाती भावुकता की हद तक प्यार करती है .इससे
पहले भी ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं जब दक्षिण की जनता ने ऐसा ही आत्मघाती व्यवहार
किया है. इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद का आक्रोश जहाँ सिखों के विरुद्ध
हिसा और लूटपाट में उभरा था वहीं राजीव गाँधी की हत्या से भी इस अंध भावुकता का
गहरा सम्बन्ध प्रमाणित हो चुका है .अमिताभ बच्चन की बीमारी से उपजी व्यापक
सहानुभूति में भी यही भावना दिखी दी थी लेकिन वह आत्मघाती नहीं थी .उत्तर भारत की
जनता वैसे भी नेताओं को लेकर इतनी भावुक नहीं जितनी दक्षिण की है . सुखराम ,लालूप्रसाद
यादव या अन्य नेताओं की गिरफ्तारियों में कोई आत्मघाती कदम जनता में नहीं दिखा
.क्या यह जनता की मानसिकता का फर्क है या परिपक्वता के स्तर का ?
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