Sunday, October 12, 2014

चाय के प्याले में हुदहुद

# मूलचन्द्र गौतम


  

जबसे तूफानों का नामकरण होना शुरू हुआ है तभी से चाय के प्यालों ने बगावत खड़ी कर दी है कि अब उनमें आने वाले तूफानों को भी सर्वनाम के बजाय नामों से पुकारा जाना चाहिए .आखिर उनकी भी कोई इज्जत है .इसीलिए उनके नाम ऐसे रोमांटिक रखे गये हैं कि लोग उनसे डरने के बजाय प्यार करने लगें।प्याज ,टमाटर और डीजल- पेट्रोल और तमाम तरह की गैस की कीमतों में उछाल आने पर विपक्षी नेता सरकार की लानतें मलामतें करके आसमान सिर पर उठा लेते हैं लेकिन चाय ,तम्बाकू और दारू कितने भी महँगे हो जायें किसी को कोई फर्क नहीं पडता।अजीबोगरीब है यह देश। इसलिये जब तक पेट्रोल का भाव दारू के बराबर न हो जाय तब तक तमाम विरोधी आन्दोलनों पर पाबंदी लगनी चाहिए  ।आजकल देश में चाय बेचने वालों को बार गर्लों से ज्यादा जो इज्जत  मिल रही है उससे उनका दिल गार्डन गार्डन हो गया है  .आखिर चाय के प्याले में ही तूफान आता है –कुल्हड़ में नहीं .
नशा शराब में होता तो नाचती बोतल .जो कभी नहीं नाची .काफी को भी देश में वह इज्जत नहीं मिल पाई जो चाय को मिली।काफी हाऊसों में गिने-चुने लोग ही बहसों में उलझते हैं जबकि चाय बहुसंख्यक पेय है।उसके बिना मजदूरों की भी  गुड मॉर्निंग  नहीं होती वैसे भी जब से मुर्गे चिकन हुए हैं उन्होंने बांग देना छोड दिया है .आखिर लोकतंत्र बहुसंख्या का खेला है –मेला है –रेलमपेला है और नहीं तो बिगड़ा हुआ ठेला है ,जिसे चाहे जिधर ठेलते रहो .बुद्धिमान लाख कहते रहें कि बहुसंख्यक मूर्ख होते हैं लेकिन उन्हें चुनाव में जिताने को अक्लमंद मिलते ही नहीं इसलिए ज्यादातर की जमानत जब्त हो जाती है और फिर हिम्मत इतनी टूट –फूट जाती है मरम्मत की गुंजाइश भी नहीं रहती .इसीलिए वे काफी हाउसों में बैठकर  बहुसंख्यक चाय प्रेमियों को कोसते रहते हैं .
काफी बुद्धिजीवियों का परम प्रिय पेय है .काफी हाउसों की एक जमाने में जितनी धूम मची रहती थी उतनी चाय की नहीं .चाय पीने वाले चतुर्थ श्रेणी के माने जाते थे इसीलिए उन्हें साहित्य और विचार की दुनिया में वह इज्जत जिन्दगी भर नहीं मिलती थी जो काफी पीने वालों को तुरंत मिल जाती थी –इंस्टेंट .लोहिया जी बुद्धिजीवियों से मिलने को दिल्ली ,लखनऊ,इलाहाबाद के काफी हाउसों की खाक छानते रहते थे ,बहस भी बेजोड़ करते थे लेकिन नेहरूजी के मुकाबले हमेशा हल्के पड़ जाते थे .यही हाल उनके चेलों का था और है .चाय को समाजवादी पेय मानने वाले कम नहीं हैं लेकिन उनका शेयर पूरी दुनिया में डाउन है। अब सब धान बाईस पसेरी नहीं चलने वाला।

पीने वालों को क्या कहिये फेंकू की चाय के अलावा कोई चाय उन्हें  नहीं जंचती .बजाते रहें जाकिर हुसैन तबला –वाह ताज कहते हुए .बनारस के पप्पू की चाय के प्रेमी किसी भी चाय को पसंद नहीं करते .ग्रीन टी,लेमन टी....और जाने कितनी –कितनी टी हैं .ट्रम्प  को कोई नहीं मिली तो गरम पानी ही सही .इसमें भी उनकी बेइज्जती ही हुई .कम से कम संजीवनी ही मंगा लेते।

.खैर चाय वालों ने एक राष्ट्रीय स्तर की बैठक में सर्वसम्मति से यह तय कर लिया है कि आइन्दा से चाय के प्यालों में उठने वाले तूफानों को भी वही नाम दिया जायेगा जो नये तूफान का होगा .यही उनका ब्रांड होगा और बाकी कोई ब्रांड नहीं चलेगा .जो भी इस निर्णय का विरोध करेगा उसे जाति से बाहर कर दिया जायेगा .देश निकाला भी हो सकता है .ऊपर से राष्ट्र्द्रोह का मुकदमा चलेगा अलग से ।
# शक्तिनगर ,चन्दौसी, संभल 244412
मोबाइल 8218636741

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