Wednesday, September 16, 2015

विश्व शान्ति में भारत की भूमिका

विश्व शांति दिवस



भारत का सम्पूर्ण इतिहास वसुधैव कुटुम्बकम का साक्षी है .धर्म का कोई संकीर्ण और साम्प्रदायिक अर्थ हमारी परम्परा और संस्कृति में स्वीकार्य नहीं हो पाया .आत्मन: प्रतिकूलानि परेषाम न समाचरेत हमारा परमप्रिय सिद्धांत सूत्र है .इसी को विस्तार देते हुए गोस्वामी तुलसीदास ने धर्म को परिभाषित करते हुए  अत्यंत सरल  शब्दों में  प्रतिपादित किया –परहित सरिस धर्म नहिं भाई ,परपीड़ा सम नहिं अधमाई .
भारतीय धर्म ,अध्यात्म ,शिक्षा और दर्शन में शास्त्रार्थ और व्याक्ख्याओं की लम्बी परम्परा इस तथ्य का साक्ष्य है कि अनेकान्तवाद ने इन क्षेत्रों में किसी भी तरह की कट्टरता और संकीर्णता को पनपने ही नहीं दिया .ईश्वर के निर्गुण और सगुण रूपों,ज्ञान और भक्ति तथा तमाम मत –मतान्तरों को लेकर कोई दंगा नहीं हुआ .नास्तिकों को आस्तिकों से ज्यादा अभिव्यक्ति की  वैचारिक आजादी प्राप्त थी .हाँ , समाज और धर्म पर आक्रमण होने की स्थिति में उसकी सुरक्षा की व्यवस्था जरुर थी ,जिसका भार क्षत्रियों पर था और आपातस्थिति में सब पर . इस तरह अहिंसा हमारा आदि धर्म है .अष्टांगयोग यम और नियम के बिना सध ही नहीं सकता .आर्य और अनार्यों  ,देव और दानवों के बीच के युद्ध शस्त्र के साथ शास्त्र से भी जुड़े हुए थे .ये दो भिन्न  जीवन शैलियों ,मान्यताओं को लेकर चलते थे ,जिनमें पराजित वर्ग विजेता के धर्म को सहर्ष या मजबूरी में स्वीकार करता था .विद्वान् तो इन युद्धों में पराजित वर्गों को शूद्र होने तक से जोड़ते हैं जिनके हिस्से समाज के शारीरिक और तमाम घृणित कार्य आते थे .
 भारत में वैष्णव ,शैव और शाक्तों के बाद  ब्राह्मण और बौद्धों के बीच इतिहास का सबसे बड़ा वैचारिक संघर्ष चला . जब यज्ञ में पशुबलि  ,कर्मकांड में ब्राह्मण पुरोहितों को चुनौती देना बेहद मुश्किल होता जा रहा था तो क्षत्रिय बुद्ध ने उन्हें उन्हीं के हथियारों –अहिंसा ,सत्य ,प्रतीत्यसमुत्पाद से चुनौती दी ,भले पुनर्जन्म और मांसाहार को लेकर कुछ लचीला रास्ता अपनाना पडा .धीरे –धीरे यह विश्वव्यापक धर्म जो भारत का विदेशों में पहला प्रचारित धर्म था –शून्यवाद के लपेटे में आता चला गया . इस धर्म के परम विरोधी शंकराचार्य छद्म बौद्ध मान लिए गये और बुद्ध को विष्णु के दस अवतारों में बाकायदा शामिल कर लिया गया .
भारत के बाद चीन बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा केंद्र था –खासकर तिब्बत प्रदेश .चीन ने जबसे धर्म को अफीम मानने वाली विचारधारा को अपनाया तो उसने सबसे पहले बौद्धों के धर्मगुरु  दलाई लामा को देश से बहिष्कृत किया जो आज तक भारत में निर्वासित हैं और चीनी राजनय की सबसे कमजोर कड़ी हैं . 1962 के भारत –चीन युद्ध ने पुराने धार्मिक –सांस्कृतिक सम्बन्धों के रेशों को उधेड़ कर रख दिया था .नेहरूजी के पंचशील और हिंदी –चीनी भाई भाई की हवा निकल चुकी थी जो आज तक पटरी पर नहीं आ पा रही .अमेरिकी मानवाधिकारवादी इस आड़ में चीन के साम्राज्यवाद को चुनौती देते हैं .थ्येनमन चौक चीन के लिए एक अलग तरह की चुनौती थी जिससे वह बच गया वरना उसका हाल भी सोवियत रूस जैसा हो गया होता .इन्हीं अर्थों में  आज चीन अमेरिका के सामने सबसे बड़ी चुनौती है .भारत –पाकिस्तान इस अंतर्राष्ट्रीय खेल में मोहरे भर हैं .लेकिन यह मामला अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के विश्लेषकों के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए .
इस पृष्ठभूमि में भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की विश्वशांति में भूमिका के इतिहास पर गौर किया जाए तो  चीन –पाकिस्तान के साथ अनावश्यक तौर पर  थोपे गये युद्धों के अलावा  निराशा का कोई कारण नजर नहीं आता .संयुक्तराष्ट्र संघ के  तमाम विश्वव्यापी शांति अभियानों में भारतीय सेना की सराहनीय भूमिका रही है .श्रीलंका में अनावश्यक सैन्य हस्तक्षेप की बहुत  बड़ी कीमत देश ने  राजीव गाँधी की हत्या के रूप में चुका दी है .जहाँ तक विश्वशांति में देश के धार्मिक –सांस्कृतिक दायित्व निभाने का प्रश्न है तो श्री श्री रविशंकर के विश्वव्यापी अभियान ,योग दिवस के कार्यक्रम ,तमाम आतंकवादी गुटों से बातचीत और समन्वय के कार्यक्रमों ने जो माहौल तैयार किया है ,वह काबिले तारीफ है .भले इसके लिए उन्हें जान से मारने की धमकियां मिल रही हों .
मोदीजी के नेतृत्व में  विश्वव्यापी सम्पर्कों ने देश में हर क्षेत्र में उत्साह और नवाचार का माहौल तैयार किया है उसकी चुनौतियाँ बहुत बड़ी हैं .सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का मामला हो या हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय फलक पर स्थापित करने के प्रयत्न –एक बडी सुनियोजित कार्यप्रणाली  की अपेक्षा रखते हैं . यह देश से तमाम क्षेत्रों में एक बड़े और क्रान्तिकारी बदलाव की अपेक्षा के अलावा कुछ नहीं है .  देश के सामने आंतरिक अंतर्विरोधों ने जो चौड़ी खाई खोद दी है उसे पाटना बेहद मुश्किल है ,खासकर तब जब इस काम में सरकार के अपने –पराये सब जी जान से जुटे हों . आज देश के तमाम छोटे –छोटे  तबकों में जितनी होड़ अपना हिस्सा पाने की लगी हुई है ,उतनी ही होड़ जिम्मेदारी उठाने की लगे तो बात बने और देश विश्व फलक पर एक बड़ी भूमिका के साथ जिम्मेदारी निभा पाए .
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