Thursday, May 1, 2014

नेता -नीति और सेक्स नैतिकता


भारत किसी भी मामले में अमेरिका नहीं हो सकता लेकिन हमारे नेता हैं कि उसे हर मामले में अमेरिका बनाने पर तुले हैं और विडम्बना यह है कि पश्चिम भारतीय पारिवारिक पवित्र मूल्यों की तरफ लौट रहा है .अमेरिका में क्लिंटन –मोनिका और इटली के बर्लुस्कोनी का मामला एक मिसाल हो सकता है कि वहाँ की जनता ने इनके कदाचार को मूल्यों के रूप में खुलेआम स्वीकार करने से इंकार कर दिया .
राजतन्त्र में राजाओं द्वारा असंख्य रानियों को पत्नी के तौर पर रखने की स्वतंत्रता थी लेकिन पटरानी की संतान ही उत्तराधिकार रखती थी .इस्लाम में भी चार पत्नियों की स्वीकृति मजबूरी के कारण  थी –शौक नहीं .रामायण और महाभारत इस बहुविवाह के कारण उत्पन्न सम्पत्ति के असमान बंटवारे की विवाद कथाएं ही तो हैं .उनमें हम अध्यात्म तलाश कर लें –यह अलग बात है .
हिन्दू समाज की संरचना में तलाक अभी उस तरह सहज रूप से स्वीकृत नहीं हुआ है जैसे इसाई और मुस्लिम समाज में स्वीकृत है . पुरुष और स्त्रियों के विवाह और विवाहेतर सम्बन्धों की दबी –ढकी चर्चा अफवाहों के रूप में ही सही होती है .समाज इनका हिसाब जिन्दगी भर आपसे मांगता रहता है .बड़े आदमियों का हिसाब बड़े पैमाने पर माँगा जाता है तो छोटों का छोटे पैमाने पर .गांधीजी और नेहरु के साथ –साथ अनेक नेताओं के हिसाब दस्तावेजों की तरह दर्ज हैं .जयप्रकाश नारायण और प्रभावती जिसमें उन्हें हार कर झख मारकर रोहित को अपना जैविक पुत्र स्वीकार करना पड़ा.सोनिया को विदेशी बहू होने का कष्ट आज तक झेलना पड़ रहा है वरना तो उन्हें  बहुमत के बावजूद देश का प्रधानमन्त्री स्वीकार करने में क्या हिचक है ?मोदी का वैवाहिक जीवन क्यों चर्चा में है ?आप लाख कहते रहें यह उनका निजी मामला है इसमें कोई दखल नहीं दे सकता लेकिन एक नेता का  मर्यादा के अलावा कुछ भी निजी नहीं हो सकता .आप हर बात के लिए जबावदेह हैं .जनता सब देखती है कि आप क्या खाते हैं –कहाँ जाते हैं .
इस मायने में लोकतंत्र जनता का ही नहीं नेताओं की भी आत्म मर्यादा और आत्म नियंत्रण का नाम है .वरना क्यों घोटालों की चर्चा होती है ?आप देश को लूटकर मजे से विदेश भाग 
सकते हैं .
दिग्गी के ताजे मामले ने इस निजी नैतिकता को फिर चौराहे पर खड़ा कर दिया है .जनता जनार्दन का फैसला सर माथे ...

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