Tuesday, May 6, 2014

कबन्धों का महाभारत


रामलीला और रासलीला तो देश में बारह महीनों चलती है लेकिन महाभारत सिर्फ चुनाव के मौसम में दिखाई देता है .इसे तटस्थ होकर सिर्फ दो लोग ही देख सकते हैं –एक संजय और दूसरे कृष्ण .कुछ लोगों ने संजय को द्वापर का दूरदर्शी पत्रकार माना था .यह नारदजी से  चाल ,चरित्र और चिन्तन में कुछ अलग था .एक तो इसने दोनों पक्षों में लगाई-बुझाई करके आग को ज्यादा भडकाया नहीं ,दूसरे निजी स्वार्थ को खबरों से अलग रखा .कल्पना कीजिये कि उस जमाने में पेड मीडिया होता तो क्या होता ?हिरोशिमा –नागासाकी का जनसंहार काबिले जिक्र तक न होता .

कुछ अति धार्मिक लोग जो आज भी राम वन गमन और लक्ष्मण को शक्ति लगने पर दहाड़ मारकर-बुक्का फाड़कर रोते हैं ,उनकी हालत तो बेहद खराब हो जाती .रामचरित मानस में जिन्होंने भी राम –रावण के महामायावी युद्ध का सजीव वर्णन पढ़ा है ,उनके  आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं .कलिकाल में यही दृश्य चुनाव लीला में दिखाई देते हैं .हजारों वीरों को अपनी शमशीर से प्रकम्पित करता हुआ वीर ,जरा से शिखंडी के सामने आते ही धराशायी हो जाता है .पहले जमाने में तो पितामह को उत्तरायण आते ही मुक्ति मिल गयी थी लेकिन आज के पितामहों को तो शरशैया ही नहीं छोड़ रही –कम्बल की तरह .पता नहीं उनका प्राण कहाँ अटका है . कलिकाल में इसीलिए जनता को यह सख्त ताकीद कर दी गयी कि घर में महाभारत की प्रति न रखें वर्ना घर में ही बावेला मच जायेगा .व्यासजी को भी इसी कारण श्रीमदभागवत की रचना करनी पड़ी ताकि लोग लीला में लगे रहें ,युद्ध से बचे रहें .रामलीला में भी विभीषण की तरह रावण की नाभि का भेद बताने वाला तक कोई नहीं है .ये विकीलीक्स,कोबरापोस्ट...सब फेल हो चुके हैं .
बाबा तुलसीदास भी कितने पागल थे कि उन्होंने बनारस के गली मुहल्लों के नाम तक रामलीला से जोड़ दिए .अब रामनगर को कोई नहीं पूछता . रामावतार काशीनरेश के कहने से कोई वोट नहीं देता .काशीनाथ तक खिसियाये हुए घूम रहे हैं –खीसें निपोरते हुए .जैसे त्रिनेत्र अपना त्रिशूल इन्हीं को थमा गये थे .
यानी कुल मिलाकर लुब्बोलुबाव यह है कि जान आफत में है .वानरदल खोंखियाया हुआ घूम रहा है ,संकटमोचन को कोई हल नहीं दिख रहा –समस्या का .बुरा हो अयोध्या का अपना बवाल काशी के मत्थे मढ दिया .वोटर माया से भ्रमित है .उसे मार्ग नहीं दिख रहा .बुद्ध की तपस्थली से भी कोई मध्यमार्ग दिखाई नहीं दे रहा .दर्शन, पर्सन सब फेल हैं .नेटवर्क गायब हैं .क्या लीला है ?
ऐसे ही माहौल में कबन्धों का महाभारत चालू है .सम्बन्धों को तिलांजलि देकर ही कबंध बना जा सकता है –जहाँ अपना पराया कोई नहीं .कालातीत कला और साहित्य –संगीत के सब रसिया इसमें कबंध बन चुके हैं  त्रेता –द्वापर का भेद मिट चुका है .कोई संजय और कृष्ण मौजूद नहीं कि सही –सही बताये कि क्या चल रहा है या इस युद्ध का क्या अंजाम होगा .खुदा हाफि

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