Monday, January 25, 2016

फटकार या टटकार

# मूलचन्द्र गौतम
अक्सर अदालतें गलतियों और मनमानियों के लिए कभी सरकार को, कभी जिम्मेदार सरकारी अधिकारिओं को दिखावटी फटकार लगाती रहती हैं और ये उन्हें टटकार यानी  फिसड्डी बैलों को पूंछ मरोड़कर आगे बढ़ाने की शाबाशी  समझकर हिंदी में खीसें निपोरते हुए ,अंग्रेजी में सारी सर कहकर सरसराते हुए निकल जाते हैं. बाहर आकर ठट्ठे लगाते हैं कि अदालत को क्या बेवकूफ बनाया .काम उनका यथावत जारी रहता है .एक रुपये के प्रतीकात्मक जुर्माने ने अवमानना का नया रिकॉर्ड बनाया है ।यही कार्यपालिका और न्यायपालिका का समर्पित सकारात्मक सामंजस्य है स्वस्थ लोकतंत्र के स्वास्थ्य और सम्पूर्ण विकास  के लिए .
1962 के  चीन युद्ध के बाद देश को बेशर्मी की बेहद जरूरत थी .दिक्कत यह थी कि न तो चाचा बेशर्म हो पाए और न शास्त्रीजी.इसीलिए दोनों काम खत्म होते ही जल्दी दुनिया से निकल लिए.  इसके बाद ही कलिकाल और आपात्काल की नींव पड़ी .उन्होंने भी  बदन पर मोबिल आयल की मसाज ली होती तो आज तक जिन्दा रहते .कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता.
 कलिकाल में सतयुगी शर्मदार और समझदार दोनों की मौत जल्दी आती है .उन्हीं को  मामूली सी बातों पर जल्दी हार्ट अटैक आता है या ब्रेन हैमरेज हो जाता है .बाबा की मानस रोगों की सूची में इन रोगों का कोई जिक्र नहीं है . जबकि खांसी ,खुर्रा और दाद खाज पूरे सम्मान के साथ विराजमान हैं . ए राजा से जेड राजा तक स्थितप्रज्ञ को कुछ नहीं होता .वह आधि व्याधियों से ऊपर उठ जाता है .अदालतें भी  उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं .जेल उनके लिए ससुराल हो जाती है .
 आज कानून के जिस शासन की दुहाई दी जाती है ,वह सत्ता के हाथी के सिर्फ दिखावटी और सजावटी दांतों के अलावा कुछ नहीं . जबसे मुख्य न्यायाधीश रिटायरमेंट के बाद राज्यपाल बने हैं और राज्यसभा में नामित हुए हैं तबसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता मजाक बन गयी है।
यों भी सुप्रीम कोर्ट तक न्याय की खोज में जाना हरएक के बस का नहीं।  कानूनी मामला इतना मंहगा है कि गरीब की तो औकात ही नहीं उसे हासिल करने की .अदालत से  सरकारों को फटकरवाना लाखों का चोंचला है .इतने में तो गरीब के दस घोंसले बन जायेंगे .
# शक्तिनगर, चन्दौसी, संभल 244412
मोबाइल 8218636741

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