# मूलचन्द्र गौतम
बाबा ने जिन्दगी भर अपनी बहुत
सी कारगुजारियों के लिए समाज के ठेकेदारों की जली कटी सुनीं और आज भी ये सिलसिला
जारी है एक ठो जल्लीकट्टू तक .ढोल ,गंवार ,शूद्र ,पशु ,नारी के क्रम में बाबा ने गरीब को जानबूझकर नहीं जोड़ा ,क्योंकि पूजिय
विप्र शील गुन हीना में समाज में गरीब ब्राह्मण के विशेषाधिकार सुरक्षित थे और
बाकी कोई गरीब होता नहीं , यही उनका ब्राह्मणवाद –मनुवाद था .यही ब्राह्मण का
आरक्षण था समाज में भले उसे न मिलता हो सरकारी नौकरी में .बाबा को कोई वोट
बैंक थोड़े ही बनाना था ,न चुनाव जीतना था .रही बात मन्दिर की तो वो मस्जिद में भी
सोने को तैयार थे ,भले ही वह बाबरी क्यों न हो ?फिर भी बाबा को बदनाम होना था हुआ
?उनका दलित ,स्त्री पाठ हुआ .होना भी चाहिए .
त्रेतायुग में बाबा की सीता का सतीत्व सुरक्षित नहीं था तो कलियुग में तो और बुरा हाल होना तय था ।बाबा ने खुलेआम डिक्लेयर कर दिया था नहिं मानहिं कोउ अनुजा तनुजा।तो बलात्कार तो कलिकाल की सामान्य प्रवृत्ति है।अब यह चाहे घर में हो या घर से बाहर ?
गांधीजी राजनीति को धर्म से जोड़ना चाहते थे जिसे हिंदूवादी, मुस्लिमवादी पार्टियों ने सम्प्रदाय से जोड़ दिया ।अब हो रही है खुलकर जूतमपैजार पाकिस्तान की आड़ में ।हथियारों की होड़ ने पूरे विश्व को बर्बाद कर दिया है ।विकास का मतलब जनता का विकास होने के बजाय हथियारों की अत्याधुनिक तकनीक हो गया है।
हिन्दुस्तान की सांस्कृतिक जड़ों में ही दीमक लगी है .कोई संविधान और
सुप्रीमकोर्ट उसे दूर नहीं कर सकता जब तक कि हम सर्वसहमति से उसे खत्म करना न
चाहें .कितने भी सभ्य और सुसंस्कृत होने का दावा हम करें हमारे भीतर का दरिंदा पलक
झपकते बाहर आ जाता है और हमें नरभक्षी होते देर नहीं लगती क्योंकि हमारी कथनी और
करनी एक नहीं हैं . कहीं भी ढोल ,गंवार ,शूद्र ,पशु और नारी को देखते ही हमारे
सवर्ण हाथों में खुजली मचने लगती है .शिकार करने को मन मचल उठता है .इस आदिम राग
को रोकने के लिए मनीषियों ने सतयुग से
लेकर वर्ग विहीन समाज तक के तमाम उपाय सुझाये हैं जो आज तक कामयाब नहीं हो पाए हैं
फिर भी रट लगाये हैं –हम होंगे कामयाब एक दिन .पता नहीं कब आएगा ये एक दिन ?
बाबा के ही समकालीन रहीम को बेर केर के अप्राकृतिक संग की बड़ी चिंता
रहती थी .वे डोलत रस आपने उनके फाटत अंग .अब ये विश्वव्यापी समस्या है तो इसका
लोकल समाधान भी कहाँ सम्भव है .इस फटी कथरी
को एक तरफ से सिलो तो ये दूसरी तरफ से मुंह फाड़ने लगती है .इसे बनाने वाला ही खुद
भूल गया है कि इसका क्या करना है .नालायकों ने इसे तार तार कर दिया है .अब तो लगता
है कि दास कबीर ने भी इसे जतन से नहीं ओढा था ,वरना तो ये हमें कटी फटी क्यों मिलती ?एक से एक जादूगर दावे के
साथ आते हैं कि वे इसे ठीक कर देंगे और
आखिर में अपना सा मुंह लेकर चले जाते हैं और हम हैं कि इसे खुद ठीक करने के बजाय
अगले किसी कामयाब जादूगर की तलाश में लग जाते हैं .
# शक्तिनगर, चन्दौसी, संभल 244412
मोबाइल 8218636741
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