Thursday, December 24, 2015

खेलत में को काको गुसैयाँ


सूरदास को मालूम था कि भविष्य में  भारत में एक दिन खेलों को लेकर बवाल होगा .मामला केवल कृष्ण और श्रीदामा तक सीमित न रहकर पूरे देश में रायते की तरह फ़ैल जाएगा .मार्गदर्शक मंडल के रैफरी भी इसके लपेटे में आ जायेंगे .
 आजकल जो लोग हर बात में खेल भावना की बातें करते हैं उन्होंने ही खेलों को खूनी –खूंरेंजी में बदल दिया है .इसी प्रतिद्वन्द्विता में गाँव गाँव शहर शहर यह बीमारी फ़ैल गयी है कि बिना कत्लो गारत के कोई खेल होता ही नहीं .यहाँ तक कि सभ्य लोगों का खेल कहलाने वाला क्रिकेट भी राक्षसी हो गया है .सट्टेबाजी और फिक्सिंग ने इसकी ऐसी तैसी करके रख दी है .
ओलम्पिक खेलों का इतिहास जानने वालों को मालूम है कि उस जमाने में कोई डोप टेस्ट नहीं होता था ,न कोई स्टीरोइड इस्तेमाल करना जानता था .माया महाठगिनी ने बड़ी बड़ी मर्यादाओं और परम्पराओं को ध्वस्त कर दिया है तो खेल भी उससे कैसे बच सकते हैं .भारत तो वैसे भी हर खेल में निचले पायदान पर है .जिन खेलों में उसका ऊंचा स्थान है उन्हें विश्व में कोई स्थान प्राप्त नहीं है .इसीलिए हमारे महान नेताओं ने वर्तमान में  राजनीति में ही अनेक खेलों को ईजाद कर लिया है .अब हर वक्त उनमें शतरंज ,सांप सीढ़ी,लूडो और गालियों की अन्त्याक्षरी चलती रहती है . पुराने नेता तुलसी , ग़ालिब और मीर फिर दुष्यंत की शायरी से बहसों में विरोधियों को परास्त करने की तैयारी के साथ मैदान में उतरते थे .अब तो उनके पास सडक छाप मिसाइलनुमा जुमले हैं जिनका जबाव भी बड़ी मुश्किल से किताबों में मिलता है .
जिन्हें पाला चीर कबड्डी खेलने की आदत है वे किसी खेल में नियम कायदों को नहीं मानते .उनके लिए सम्विधान और सुप्रीमकोर्ट के कोई मायने नहीं .इसीलिए हर नेता ने ऊपरी आमदनी के लिए किसी न किसी खेल में अपनी टांग घुसा रखी है .वह खिलाडियों का राशन पानी तक डकार जाता है .खेल के बहाने घर वालों को विदेशों की मुफ्त सैर कराता है .यही सरकारी सम्पत्ति की तरह उसका कामनवेल्थ है-कलमाड़ी से लेकर पनवाड़ी तक .
यही धंधेबाज अगला ओलम्पिक देश में आयोजित कराने की फ़िराक में हैं .एक पंहुचे हुए बाबा से कांट्रेक्ट भी हो गया है.  

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