Friday, December 18, 2015

सोने की मुर्गी

# मूलचन्द्र गौतम
सोने का अंडा देने वाली मुर्गी का कोई मूर्ख भी पेट इसलिए नहीं फाड़ता क्योंकि उसके सारे अंडे एक साथ नहीं निकल सकते ,लेकिन जो ऐसा कर बैठे उसे वज्रमूर्ख कहते हैं .मूर्खों की श्रेणियां होती हैं क्या ?मैंने आँखें फाड़कर प्यारेलालजी को देखा तो वे बालसुलभ चापल्य से मुझे देखने लगे –आपको नहीं मालूम .ये कैसे हो सकता है ?और वे आदतानुसार विषय की गहराई में गोते लगाने लगे .
उर्दू में मूर्ख तीन तरह के होते हैं –चुगद ,चवल और झुर्ल .यह झुर्ल ही हिंदी में वज्रमूर्ख कहलाता है और इसी कोटि का प्राणी  रोजाना सोने का अंडा देने वाली मुर्गी का पेट इसलिए फाड़ डालता है ताकि उसके सारे अंडे एक साथ मिल जाएँ तो वह एकबारगी धन्नासेठ हो जाए .रोज रोज की छुट्टी .कौन रोज कुआं खोदे और पानी पिए ?
प्यारेलाल इसी मुद्दे पर अटक गये .अमा मियां अगर यह रोज कुआं खोदने वाली बात हकीकत में हो जाती तब तो किसी को पानी मिलता ही नहीं और लोग बेमौत प्यासे ही मर जाते .
मैंने उनके सुर में सुर मिलाते हुए पूछा कि भाईसाब अगर दुनिया भर की कहावतों को हकीकत में बदलना होता तो ये बनती ही क्यों ?इन्हें तो बस लोगों को समझाने बुझाने के वास्ते उदाहरण के तौर पर दिया जाता है .
प्यारेलालजी के माथे पर सिलवटें पड़ गयीं .वे बोले हमारे पुरखे इतने मूर्ख नहीं थे जो केवल समझाने बुझाने वास्ते अपनी खोपड़ियाँ खराब करते ?कोई न कोई गहरी बात जरुर होगी इनके पीछे .
मैंने उन्हें फिर कुरेदा कि नौ मन तेल का राधा के नाच से क्या रिश्ता है ?फिर ये राधा कृष्ण वाली थी या कोई और थी ?आप क्या समझते हैं ?वे चक्कर  क्या भँवर में पड़ गये .
बात घूम फिर कर फिर मुर्गी पर आ गयी .मैंने कहा आजकल के चतुरसुजान घूस में  न सोने का अंडा लेते हैं न उसका पेट फाड़ते हैं .वे सीधे सीधे सोने की मुर्गी लेते हैं और उसे लाकर में डाल देते हैं .वह मुर्गी वहीं पड़ी पड़ी अंडे देती रहती है और वही अंडे फैलते फैलते एक दिन ब्रह्मांड हो जाते हैं और वे हो जाते हैं उसके निर्विवाद लीडर .स्विसबैंक के झंझट से मुक्ति .यह धन भी काले के बजाय पीला.अब कर ले कोई क्या करेगा ?
# शक्तिनगर ,चन्दौसी, संभल 244412
मोबाइल 8218636741

No comments:

Post a Comment