Wednesday, December 16, 2015

प्रधान पति की दुर्गति


जब से पत्नी जसोदाजी गाँव की प्रधान हुई है तब से  रिटायर्ड प्यारेलाल का जीना हराम और दुश्वार हो गया है .हर कोई उन्हें घर जमाई की तरह ट्रीट करता है .धोबी के गधे की तरह उन पर हर कोई सवारी गांठता है ,कान उमेठता है ,कमियां निकालता है .जैसे वे प्रधान पति न हुए पूरे गाँव के सामूहिक नौकर हो गये ?ऊपर से जसोदाजी के नखरे बढ़ गये हैं .पतिव्रता पत्नी को बाहर की हवा लग गयी है .
चुनाव से पहले से ही प्यारेलाल को पता था कि पत्नी के चुने जाते ही उनका डिमोशन हो जायेगा और वे अंगूठाछाप बीबी के मुंशी होकर रह जायेंगे .हर कोई दरख्वास्त लेकर चला आएगा और उनका काम मात्र इतना होगा कि वे पत्नी का निशानी अंगूठा लगवाकर उसके नीचे कायदे से मोहर ठोंक देंगे .मध्यप्रदेश के मंत्री जी की सेल्फी  तरह उन्हें कोई दस रूपये भी नहीं थमाएगा .उल्टे उन्हें गाहे बगाहे अपनी मोटर सायकिल से मुफ्त की सवारियां और ढोनी पड़ेंगी .
चुनाव से पहले ही  गाँव में अपनी इज्जत की रक्षा के लिए उन्होंने हर वोटर की जायज –नाजायज इच्छाओं को पूरा करने में मेहनत की गाढ़ी कमाई खपा दी ,उतने में तो वे दस बीघा जमीन बढ़ा लेते .ठेके से दारू की बोतलें और हलवाई से मिठाई लाते-लाते उनकी कमर अकड गयी .
दरअसल प्यारेलाल राजनीति का फर्स्टहैण्ड अनुभव प्राप्त करने के चक्कर में फंस गये .आत्मानुभूति और सहानुभूति के चक्कर में वे भूल गये कि गाँव अब प्रेमचन्द का गाँव नहीं रह गया है .अब पंचों में परमेश्वर का नहीं पैसे का वास है .उन्हें एक तांत्रिक ने बताया था कि प्रधानी के रास्ते ही प्रधानमंत्री तक पहुंचा जा सकता है सो वे इस पर आँख बंद करके चल पड़े .महिला सीट होने के कारण पत्नी को चुनाव लडवाकर ही प्यारेलाल यह परमपद प्राप्त कर सकते थे सो उन्हें मजबूरी में यह धनुष उठाना पड़ा.
प्यारेलाल ठहरे पुराने जमाने के आदमी सो हारकर झख मारकर जसोदा जी ने उनकी जगह एक मैनेजर रख लिया है जो न केवल अपनी हर महीने की तनख्वाह निकालेगा बल्कि चुनाव के खर्च सहित एक मोटी रकम का बन्दोबस्त करेगा .इसमें जसोदा जी सिर्फ अंगूठा लगाएगी .इसकी पहली क़िस्त उन्हें मिल भी गयी है कहाँ से यह बताने की बात नहीं ?कहीं बिल्ली की तरह सीबीआई पीछे लग गयी तो लेने के देने पड़ जायेंगे .

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