Sunday, December 13, 2015

चार्वाक की संतानों से करबद्ध निवेदन


भारत में कर्मठ लोगों ने  हमेशा चार्वाक और दास मलूका की विचारधारा और दर्शन के साथ बड़ा अन्याय किया है .देश में असहिष्णुता की दुंदभी बजाने वालों ने भी भारी नगाड़ों के शोर में  इस पिपहरी की आवाज पर कोई ध्यान नहीं दिया है .हर चुनाव में विकास –विकास चिल्लाने वाले भी इस रहस्य पर पर्दा डाले रहते हैं ताकि उनके इस जिताऊ मुद्दे के ढोल की पोल न खुल जाए .
गांधीजी देश के निकम्मों के दुश्मन थे ,इसीलिए आजाद होते ही उन्हें ठिकाने लगा दिया गया .चीन युद्ध तक चाचा नेहरू के प्रभामंडल ने भी कांग्रेस को कोई चुनाव हारने नहीं दिया .पैसे वालों के इस धंधे में उतरते ही हर पार्टी हमाम में नंगी हो गयी .  चुनाव जीतने के लिए भारी पार्टी फंड जुटाने  का फंडा ही नायक और खलनायक की एकमात्र योग्यता हो गया .इसी प्रबंध कौशल ने बड़े बूढों के छक्के छुड़ा दिए जो अब तक नौजवानों की खून पसीने की कमाई पर निर्बाध ऐश करते चले आ रहे थे .इसी असफलता के कारण महाभारत में भीष्म पितामह को भी छह महीने तक शर शैया पर पड़े रहना पडा था .उस बीमारी में उनकी खिदमत में लगी नर्सों का हिसाब आज तक किसी को भी  सूचना के अधिकार तक से नहीं मिल पाया है .
इस देश के कर्मठ लोग हमेशा से कर्ज लेकर घी पीने के विरोधी रहे हैं, इसीलिए हर चुनाव में उनकी जमानतें तक नहीं बच पाई हैं . आज के जमाने में  हल्दी की एक गाँठ लेकर पंसारी बनने वाले कुछ नहीं कर पाएंगे .अब माडर्न मैनेजमेंट  सबसे पहले बैंकों से कर्ज लेने को ही प्राथमिकता देता है क्योंकि उसे डुबाना आसान होता है .चार्वाक की संतानें बैंकों से मोटा कर्जा लेकर दिवालिया होने में ही भलाई देखती थीं .आज यही कार्पोरेट कल्चर कहलाता है . पूरे विश्व में सरकारें तक इनके इशारों पर बनती बिगडती हैं .हथियारों की बिक्री में दलाली हलाली से बड़ी होती है .
निकम्मे लोग हर विकास के विरोधी होते हैं .इन्होंने ही अंग्रेजों को देश में नहीं रहने दिया .वरना  तो जो बुलेट ट्रेन अब आ रही है वह देश में  साठ साल पहले आ गयी होती .इन्हें आज भी न्यूयार्क जाने के लिए बैलगाड़ी चाहिए .बीस रूपये की पानी की बोतल खरीदते इनकी नानी मरती है .इन्हें हर समय बीस रूपये टोला सोना  एक रूपये सेर का घी और बीस सेर गेहूं याद आते हैं .कर्ज लेने के नाम से ही इनकी रूह कांपने लगती है जैसे कर्जा इनका बाप चुकाएगा .ये हर जन्म लेने वाले बच्चे के सिर पर रखी कर्ज की पोटली का बोझ बढ़ाते जाते हैं .धिक्कार है इनके जीने पर .ये डरपुक्के  न चैन से  खुद जीयेंगे न दूसरे हिम्मत वालों को जीने देंगे .
इसलिए अंत में महान चार्वाक की संतानों से करबद्ध निवेदन है कि इन निकम्मों को कतई गम्भीरता से न लें और मोटे मोटे कर्ज लेकर निरंतर देश में विकास की गंगा बहाते रहें .



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