छायावाद ,प्रगतिवाद और प्रयोगवाद के बाद हिंदी साहित्य
एक अदद कायदे के वाद के लिए तरस रहा है .वाद -विवाद -संवाद तो आया है लेकिन
कोई बड़ा वाद
नहीं .अमेरिका और दूसरे देशों में हिंदी के
शोधकर्ताओं और बड़े-बड़े सर्वेक्षणों से अब निष्कर्ष निकला है कि राजनीति के
समानान्तर साहित्य में भी आजादी के बाद दामादवाद ही सबसे बड़ा वाद है। थिंक टेंकों
का प्रधानमंत्री को साफ निर्देश हैकि साहित्य के क्षेत्र के तमाम दामादों की सूची बनाकर उन्हें किसी न
किसी तरह विदेशों में प्रतिष्ठित कर दिया जाय .विश्व हिंदी सम्मेलनों और
विश्वविद्यालयों में हिंदी पढाने के काम में इन नंगों और भिखमंगों को प्राथमिकता
दी जाय .
गहन अध्ययन से
यह भी पता चला है कि साहित्य में दामादवाद दूसरी परम्परा की खोज है .पहली परम्परा
में इस बीमारी के लक्षण नहीं थे बड़े -बड़े विश्वविद्यालयों के हिंदी विभाग के
अध्यक्षों और दिग्गजों ने भाई -भतीजावाद को धकेलकर दामादवाद को तरजीह दी साठगांठ
से आदान -प्रदान योजना चलाकर सभी ने एक दूसरे का ध्यान रखा दामाद वंश का यह साम्राज्य बेटों के सहयोग से चला .दरवेशों ने
भी खूब लाभ कमाया .चतुर चेले -चपाटों ने भी बहती गंगा में हाथ साफ किये .
इस कार्य से
पहली परम्परा के लोगों में कुंठा ,दीनता और अवसाद
पनपा .इनके नेता मुक्तिबोध को तो सिजोफ्रेमिया तक हो गया दामादों की फ़ौज से लड़ने
के लिए इन कुंठितों ने अपार श्रम किया .निराला को मारकर इन हिंदी के दामादों ने
बड़ी कामयाबी हासिल की उनके बाद के कई प्रतिभाशाली लोगों को इन्होने भाजपा और
हिंदुत्व का पैरोकार घोषित करके ठिकाने लगा दिया .वे घर के रहे न घाट के लांछनों
के डर से वे न कभी विदेश जा पाए ,न मोटी -मोटी पुरस्कार राशियों को हाथ लगा
पाए .ज्ञानपीठ पर बेठने के लायक तो थे ही नहीं वे नालायक .
फ़िलहाल अखिल
भारतीय दामाद यूनियन के गठन से राजनीतिक दामादों के नेतृत्व में तय हुआ है कि वे
साहित्य के दामादों का भी ध्यान रखेंगे उन्हेंभ्रष्ट , अयोग्य और नाकारा सिद्ध करने वालों के खिलाफ
कानूनी कार्रवाई करेंगे .अब उनके नाम के आगे चक्रवर्ती लगेगा .भ्रस्टाचार की गंगा
तभी शुद्ध होगी सत्ता और विपक्ष में दामादों को लेकर आम सहमति है .भंडाफोड़ हो जाये तो मिलकर कम करो .युवराज
तो आज तक दामाद बनने से घबराये हुए हैं कि कहीं इसी चक्कर में उनकी बधिया न बैठ जाये।
साहित्य
के दामादों ने शुक्ल जी और रामविलास शर्मा पर हल्ला बोल दिया है कि इन्ही की परम्परा ने उन्हें कहीं का नहीं
छोड़ा है,
इतिहास से उनका नामों निशान मिटा दिया है। इसी लिए उन्होंने इनकी किताबों
का बहिष्कार करके पूरे देश को गैस, पेपर और
कुंजियों से पाट
दिया है। अब साहित्य के विद्यार्थी इन्ही को असली साहित्य समझ बैठे हैं। सूचना के अधिकार
द्वारा इन दामादों की सूची
उपलब्ध कराने से मना कर दिया गया है क्योंकि यह मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा
है। प्रधानमन्त्री दफ्तर ने सुप्रीम कोर्ट के हवाले से कहा है कि दामादवाद
की समस्या शाश्वत और सनातन है जिसका कोई
समाधान नहीं है। बेटी है तो दामाद भी होगा चाहे जैसा हो।
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