Wednesday, December 24, 2014

मदन मोहन मालवीयजी का हिंदुत्व संघी हिंदुत्व से अलग है


भारत रत्न के नाम पर मोदी सरकार ने जो वैचारिक-रणनीतिक घपला मालवीयजी के साथ किया है ,वह सरदार पटेल के साथ किये गये छल की अगली कड़ी है .यहाँ यह साफ करना जरूरी है कि इस घपले के पर्दाफाश से कांग्रेस की दलीय राजनीति से कोई सम्बन्ध नहीं है .
मोदी ने देश –विदेशों में  तथाकथित राष्ट्रपिता  गांधीजी के प्रति जो अकाल सम्मान प्रकट करना शुरू किया है ,उसके बीज अटलजी ने ही डाल दिए थे .गाँधीवादी समाजवाद के साथ दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद की जुगलबंदी की वह कोशिश इसी घालमेल की पृष्ठभूमि थी .गांधीजी की वैचारिक विरासत पर केवल योग्य कांग्रेसियों का एकाधिकार नहीं है लेकिन जिस  दल और विचारधारा से जुड़े जो लोग खुल्लमखुल्ला गांधीजी की  शारीरिक  और वैचारिक हत्या के पक्षधर रहे हों उन दोमुंहे लोगों से पूछा तो जा ही सकता है की यह यूं टर्न क्यों ?क्या सत्ता बिना गाँधी का नाम लिए नहीं मिल सकती या भारत की जनता केवल और केवल गाँधी के नाम पर ही ठगी जा सकती है .गाँधी भी खुद को हिन्दू कहते थे लेकिन उनका हिंदुत्व एकांगी ,संकीर्ण ,घृणा ,हिंसा पर आधारित न होकर अहिंसक ,सर्वसमावेशी और सहिष्णु था .यही वजह थी की भारतीय जनता को गोलवलकर का हिंदुत्व कभी रास नहीं आया .ईश्वर अल्ला और यीशु का मिलाजुला हिंदुत्व ही उन्हें देश का सर्वमान्य राष्ट्रपिता बना पाया .यही कारण था की वे मृत्युपर्यंत भारत का विभाजन मन से स्वीकार नहीं कर पाए भले इसी के चलते उनकी हत्या हो गयी .
गांधीजी ने इसी हर तरह की कट्टरताओं से बचने और उनका विरोध करने के लिए सोच समझकर हर वर्ग के ऐसे लोगों को साथ लिया था जो इस जटिल लड़ाई में मजबूती से उनके साथ आखिर तक डटे रहें न कि भाग जाएँ या अंग्रेजों से मिल जाएँ .कहने की जरूरत नहीं कि मुस्लिम लीग की कट्टरता के खिलाफ लड़ाई में मालवीयजी उनके उदारवादी दृष्टिकोण के हिंदुत्व के अडिग प्रतिनिधि थे .उन्हें किसी भारतरत्न की अपेक्षा किसी से नहीं थी . नेहरु की कांग्रेस से भी नहीं .
मालवीय जी को मोदी  सरकार द्वारा वाजपेयीजी के साथ भारतरत्न से सम्मानित करने के पीछे कोई उदारता नहीं ,हिंदुत्व की यही रणनीति है जो बिना किसी छिटपुट विरोध के कारगर  होती दिख रही है तो हौसला बढ़ता जा रहा है रणनीतिकारों का .लुंजपुंज कांग्रेस में आह और करह लेने तक का दम न बचा हो तो यह जिम्मा बौद्धिकों को उठाना चाहिए ,जो उनकी तरफ से रामचन्द्र गुहा ने कुछ –कुछ उठाया है लेकिन इस मुद्दे पर जनता के बीच व्यापक बहस गायब है .

मालवीय जी अपने  दृढ़ता से हिन्दू होने की अटल घोषणा के बावजूद देश में रहनेवाले मुसलमानों और ईसाइयों के प्रति असम्मान और घृणा रखने के खिलाफ थे ,जबकि गोलवलकर से लेकर भागवत तक निरंतर जहर उगल रहे हैं .इस पृठभूमि में मालवीयजी को दिया जाने वाला भारत रत्न उनका सम्मान नहीं अपने दलीय स्वार्थों की पूर्ती में उनका बेशर्म इस्तेमाल भर है .यानी आप कहते कुछ रहें –करते कुछ रहें और दीखते कुछ रहें अपनी तमाम सरकारी प्रभुता ,दिव्यता और सत्ता के साथ .

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