Saturday, February 14, 2015

भेड़ों का मुण्डन

# मूलचन्द्र गौतम
पता नहीं क्यों लोग कोलम्बस और वास्कोडिगामा की तरह देश के गडरियों को उनका समुचित महत्व नहीं देना चाहते ,जबकि नये से नये चरागाहों की खोज में भटकते हुए उन्होंने एक से एक नामी आविष्कार किये हैं .हमारे चाचा खुद देश के नामी चरवाहे थे .उनके पास भेड़ों का देश का सबसे बड़ा झुण्ड था ,जिनके मुंडन में ही पूरे पांच साल लग जाते थे –पहली भेड से लेकर आखिरी भेड़ तक .इतने दिनों में भेड़ें भूल जाती थीं कि पिछली बार उनका मुंडन कब हुआ था .
चाचा ने ही मुझे विरासत की तरह ही यह रहस्य बताया था कि भेड़ और आदमी दरअसल एक ही कौम है ,जिसे गर्मियों में मूडना चाहिए वरना मामला गडबड हो सकता है .कुछ चालाक भेड़ें बगावत कर सकती हैं .उन्हें साधने के लिए चार –छह वफादार कुत्तों की जरूरत पडती है .दुम्बे उनके भौंकते ही दुम दबा कर भाग जाते हैं .
चाचा ने भेड़ों की ऊन के धंधे में लाखों कमाए थे और बाद में तो वे बहुत बड़े एक्सपोर्टर होकर मरे थे .अंगोरा से लेकर पश्मीना तक की उनकी गहरी पहचान थी .इसके बाद उन्होंने लोकल भेड़ों को अपने खास ठेकेदारों के भरोसे छोड़ दिया था कमाने खाने के लिए .बस पांच साल में एक बार मामूली सी फीस लेकर उनके पंजीकरण का नवीनीकरण कर दिया जाता था
चाचा ने भेड़ों की श्रेणियां बनाकर धंधे को  टेक्नोलोजी से जोडकर आधुनिक और उत्तर आधुनिक बना दिया था .जो माल पटरी पर पांच रूपये में बिकता था वह मॉल में पांच हजार का था .यह पांच का फंडा उन्हें इतना फला कि उन्होंने देश विदेशों में पांच सितारा होटलों की रेंज ही अरेंज कर ली थी .वे मिटटी को हाथ लगा देते तो वह भी सोने के भाव बिकती थी .
एक बार –एक गधे की आत्मकथा –के लेखक ने उनकी मुलाकात नेहरूजी से करवाई थी जिसमें उन्हें भेड़ों का धंधा छोडकर गधों का पार्लर चलाने की सलाह दी गयी थी ,लेकिन उन्हें गधों की दुलत्तियों से डर लगता था इसलिए वे जिन्दगी भर भेड़ों के ही विशेषज्ञ बने रहे .उन्होंने मुंडन के लिए जावेद हबीब और शहनाज हुसैन  जैसों को ठेके पर रख लिया था  .फिजियोथेरेपिस्ट और डायटीशियनों की देखरेख में उनका धंधा चमचमा रहा था  .कोई सिरफिरा उन्हें चुनौती देने मैदान में उतर आता  तो वे पहले उसे स्माल पार्टनर बनाने का प्यारा सा आफर देते  और अगर नहीं मानता तो उसकी सफाई और सफाया दोनों करा देते थे .
आज भी तमाम भेड़ें उनके बताये गड्ढे में ही थोक में गिरती हैं मजाल है कोई एक भी  इधर उधर हो जाये .इसलिए आज भी भेड़ों का मुंडन जरी है ,वे चाहे राजघाट पर मुड़ें या रामघाट पर क्या फर्क पड़ता है ?
#शक्तिनगर, चन्दौसी, संभल 244412
मोबाइल 8218636741

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