Friday, February 20, 2015

नकल माफिया :अकल माफिया

# मूलचन्द्र गौतम

बचपन से ही दुकानों पर लिखी दो चार इबारतें चाहकर भी भूली नहीं जा सकतीं .उधार प्रेम की कैंची है .आज नकद कल उधार.नक्कालों से सावधान .नक्कालों की तर्ज पर ही चलता था बक्कालों .
दरअसल देश सृष्टि के प्रारम्भ से ही असल और नकल के चक्कर में उलझा हुआ है .वर्ण और वर्णसंकर की यह लड़ाई आज भी जारी है भले नाम बदल गया हो .वर्णसंकर अब जीएम हो गया हो .फिल्मों में भी असल से ज्यादा डुप्लीकेट पापुलर हो गये हैं क्योंकि वे सस्ते और सुलभ हैं . सीडी और मोबाइल का बाजार तो इन्हीं लोकल मार्काओं ने हथिया लिया है .चीनी माल इसीलिए इण्डिया पर भारी है .चार सौ बीसी अब अपराध की दफा नहीं चतुराई का पर्याय हो गयी है .नटवर नागर नंदा कन्हैयाजी नटवरलाल से पिट गये हैं .
परीक्षा के दिनों में नकल की चर्चा कुछ ज्यादा ही होती है .पुराने जमाने के थर्ड क्लास फर्स्ट पोजीशन यह मानने को ही तैयार नहीं कि अब फर्स्ट क्लास टोकरियों में बंटने लगी है .कैट में सौ परसेंटाइल कोई अजूबा नहीं रह गया है .जेब में माल हो तो आईएएस से लेकर मेडिकल में एंट्रेंस तक सब कुछ उपलब्ध है .यही मैनजमेंट का कमाल है .जितना लगाओ उतना पाओ.अब जरूरत तनखा की नहीं पेकेज और ऊपरी आमदनी की है ,जिसे शर्म से नहीं शान से बताया जाता है हिन्दू होने  की तरह .पहले नकलची होना शर्म की बात होती होगी अब शान से घर के विदेशी सामान की खूबियाँ बखान की जाती हैं .स्वदेशी तो जैसे गांधीजी के साथ ही दफन हो गया .
अनर्थ शास्त्र ने एक नई शब्दावली को जन्म दिया है .चाणक्य का कोई नाम भी नहीं लेता .जैसा नेता वैसा ही उसका इकनोमिक्स—मनमोहनोमिक्स ,मोदिनोमिक्स ....समाजवाद ,धर्म निरपेक्षता का कोई बाजार नहीं .कोई –कोई एंटीक्स का विदेशी दीवाना मांगता है तो उसे गीता ,खादी,चरखा भेंट कर दिया जाता है .व्यापार समझौते उससे अलग .माल हमारा शर्तें उनकी .श्रम हमारा मुनाफा उनका .एमएनसी जिंदाबाद .
नकल के कारण ही आज यूपी –बिहार क्या पूरे हिंदी प्रदेशों की शिक्षा का भट्टा बैठ गया है .अब यहाँ के सरकारी बोर्डों की कोई साख नहीं बची .केन्द्रीय बोर्डों और अंग्रेजी माध्यम स्कूलों ने थोड़ी सी लाज बचा रखी है बस.यहाँ की विश्वविद्यालयीय शिक्षा का भी यही बुरा हाल है .अपार नकलची छात्रों की भीड़ को बेकारी के लिए नियोजित करने के लिए स्ववित्तपोषित योजना के अंतर्गत खुले कालिजों में ठेके पर नकल करवाकर डिग्रियां बांटी जा रही हैं . गाइड और गैसपेपरों ने संस्थागतऔर व्यक्तिगत शिक्षा का अंतर समाप्त कर दिया है .इसी कारण ठुमके पर यूपी –बिहार ही सबसे पहले मैनेज होते हैं .
नकली माल की बढती खपत देखकर ही अपुन ने नकल माफिया की खिलाफत करने के लिए अल्पसंख्यक होने के बावजूद अकल माफिया बनाने का दृढ निश्चय कर लिया है .आखिर अकल की भी कोई कीमत होती ही है बाजार में फ़ास्ट फ़ूड के बीच ऑर्गेनिक फ़ूड की तरह .देश में नहीं तो विदेश में सही .इसीलिए अब मातृभाषा की जगह अंग्रेजी ने ले ली है . स्तरीय भीख मांगने के लिए भी अंग्रेजी चाहिए .महरी और नैनी में यही फर्क है .सरकारी शिक्षा और इलाज हासिल करने वालों में अब केवल गरीबी रेखा से नीचे के ही लोग रह गये हैं .वो भी इसलिए ढोए-पाले जा रहे हैं ताकि उनका वोट अबाध तरीके से मिलता रहे .
# शक्तिनगर ,चन्दौसी ,संभल 244412
मोबाइल 8218636741

1 comment:

  1. जनसत्ता के आज के समान्तर में आपकी विचारोत्तेजक व समसामयिक ब्लॉग पोस्ट "नक़ल का रोग" पढ़कर आपके ब्लॉग पर पहुंचकर अच्छा लगा ... आपने ब्लॉग पर सामयिक विषयों पर बहुत अच्छा लिखा है ... आज के समय में शिक्षा, समाज,राजनीती बहुत कुछ बदलती जा रही है लेकिन यह बदलाव सही दिशा में होता तो चिंता का विषय न बनता .....

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