Tuesday, March 17, 2015

जाटों का दर्द न जाने कोइ

# मूलचन्द्र गौतम

हाल ही में सुप्रीमकोर्ट ने जाटों को ओबीसी की केन्द्रीय सरकार की नौकरियों में प्रस्तावित आरक्षण को रद्द करने के जो तर्क दिए हैं ,उससे पिछड़ेपन के नये तरीके और मापदंड तय करने की जरूरत देश के नीति निर्धारकों को होनी चाहिए. बल्कि सम्पूर्ण आरक्षण नीति की ही पुनर्समीक्षा की जानी चाहिए .
सम्विधान की संरचना की विसंगतियों में संशोधनों की जरूरत निरंतर महसूस होती है और एक विकासशील समाज को होनी भी चाहिए लेकिन उनमें बदलाव केवल निहित स्वार्थी शक्तियों पर ही नहीं छोड़ा जाना चाहिए . संसद ,जनसंसद और सर्वोच्चन्यायालय की सम्विधान पीठ को ही ये निर्णय सर्वसम्मति से करने चाहिए . लाभ उठाने वाले तबके उनमें कोई बदलाव क्यों चाहेंगे ?सांसदों की सुविधाओं में बढ़ावा होने के प्रस्तावों पर  सिद्धांतों का दावा करने वाले सांसदों का अल्पमत जिस तरह कोई मायने नहीं रखता उसी तरह छद्म लोकतंत्र में  जाति के वोट बैंक से सत्ता की ताकत हासिल करने वाले राजनीतिक दल कोई भी जातिविरोधी  अलोकप्रिय निर्णय करके अपनी जड़ें खोदने का काम क्यों करेंगे ?अंग्रेजी और आरक्षण को इसीलिए कोई नहीं छूना चाहता .यथास्थिति में ही सबका साथ और सबका विकास जो है .आखिर आर्थिक आधार पर आरक्षण कब लागू होगा इस देश में ?
सवाल केवल जाटों के आरक्षण का क्यों ?सम्पूर्ण आरक्षण  नीति का क्यों नहीं ?देश की सम्पूर्ण भाषा ,शिक्षा और संस्कृति का क्यों नहीं ? वोट की राजनीति के हिसाब से स्वसुविधानुसार टुकड़ों –टुकड़ों में विकास ,जिसके शिकार जाट क्या कोई भी हो सकते हैं .आरक्षण सुनियोजित विकास के नाते नहीं मौके और माहौल के शुभ - लाभ के नाते .अलग –अलग इलाके के अलग –अलग जाति के चौधरियों को जुगाड़ने की नीति.उत्तर प्रदेश के अलग ,बिहार के अलग , पंजाब -हरियाणे के अलग ? अपना –अपना इलाका .पंच हजारी ,दस हजारी ?मनसबदारी ?बांटो और राज करो क्या केवल अंग्रेजों की ही ईजाद और इजारेदारी थी ?हम क्या उनके सुयोग्य वारिस नहीं ?देश क्या आज भी उपनिवेश नहीं ?फिर निवेश –निवेश का हल्ला क्यों ? क्या यही योजना नीति आयोग में लागू नहीं होगी .नई बोतल में पुरानी शराब जो ज्यादा मंहगी भी होगी .
मैं काफी पहले से जाट लैंड का निवासी होने के नाते जानता हूँ कि खेती –किसानी- पहलवानी  ,फ़ौज और पुलिस की नौकरी में मुब्तिला जाट बेहद उपेक्षित हैं .मोटा खाना ,मोटा पहनना और साफ खरी –खरी कहने की आदी यह कौम यादवों ,गूजरों की तरह व्यावसायिक बुद्धि से रहित है . यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में  कभी चौधरी चरण सिंह और उनकी संतानों की अंधभक्ति करती है, कभी टिकैत के साथ रहकर अन्याय से जूझती है ,बीजेपी से सियासी दोस्ती करती है और बार –बार छली जाती है .जाट रेजिमेंट फ़ौज की सबसे पुरानी रेजिमेंट है- साहब .जिनकी मूर्खता के किस्से सरदारों से कम मशहूर नहीं .एक से एक नायाब.बनाते रहिये आप भी इन्हें मूर्ख जब तक ये बनना चाहें ?
लगसमा में जाटों की बाईसी और चौबीसी के चक्कर में घनचक्कर बने जाटों के बीच ही जीवन गुजरा है ,इस नाते जाटों से घरोपा है .अंग्रेजों से लड़ाई में जाटों ने बढचढकर भाग लिया था .राजा महेंद्र प्रताप ,अमानी सिंह और टोंटा कलक्टर के किस्से घर –घर में मशहूर थे .टोंटा कलक्टर का असली नाम हुकुम सिंह था ,यह अब कितनों को मालूम है ?अमानी से ज्यादा उनकी घोड़ी के किस्से चेतक से कम नहीं ?क्या आज भी उन्हें किसी युद्ध के लिए ललकारा जा रहा है ?या यह कोई नयी चुनावी चकल्लस है ?सुप्रीमकोर्ट को इन बातों से क्या मतलब ?
# शक्तिनगर ,चन्दौसी, संभल 244412
मोबाइल 8218636741



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