# मूलचन्द्र गौतम
कच्चे और पक्के/पके के बीच लड़ाई पुरानी है .कुछ चीजें और लोग कच्चे ही
अच्छे लगते हैं तो कुछ चीजें और लोग पके हुए .तोतली बातें सिर्फ बच्चों की क्यों
अच्छी लगती हैं ,बड़ों की क्यों नहीं ?इस पर अभी तक कोई शोध नहीं हुआ .सिर्फ पप्पू
और पेट में दाढ़ी कहकर काम चलाया जा रहा है .फिर दुनिया अपने हिसाब से चलती है औरों
के हिसाब से न चलने पर थाना –कचहरी जाना पड़ता है .इसीलिए कुछ लोगों की जिन्दगी न्याय के इन्हीं मन्दिरों की सीढियां चढ़ते –उतरते
हुए कटती है .
अब अच्छे दिनों को ही ले लो .हर आदमी तय नहीं कर पा रहा कि उसके दिन
कैसे हैं .दूसरे बता रहे हैं कि अभी बुरे दिन हैं –शनि की ढईया चल रही है ,कुछ की
साढ़े साती,कुछ पर राहु-केतु की वक्र दृष्टि .ज्योतिषी बुरे दिनों को दूर करने के मंहगे उपाय
भी बता रहे हैं .काले तिल,तेल और दान –दक्षिणा से अलग पीपल के नीचे हर शनिवार को
तेल का दिया जलाना ,गौ माता की सेवा ,चींटियों को भोजन ,बंदरों को गुड –चना .यानी
जो कहे सो करने को तैयार .बस आने चाहिए अच्छे दिन .बुरे दिन सिर्फ और सिर्फ
दुश्मनों के हिस्से .
मोहल्ले में अखंड रामायण पाठ और जागरण से जिनके कान पक चुके हैं
उन्हें इन अच्छे दिनों के निरंतर जाप की आदत पड़ चुकी होगी . मार्गदर्शक वरिष्ठ
नागरिकों को वैसे भी गरिष्ठ होना चाहिए .क्षमा शोभती उस भुजंग को जिस के पास गरल
हो .नख –दंत विहीन डिंडिभ किसी को क्या नुकसान पंहुचायेगा ?मालामाल नहीं तो पद्म
पत्र और माला ही सही .हारे को हरिनाम –सुमिरले –भज ले सीताराम .जाही विधि राखे राम
.यानी पराश्रित दीन –हीन जीवन .निराला नहीं चाहते थे ऐसा जीवन इसीलिए किसी अकादमी
में फिट नहीं हो पाए लेकिन विवश क्या करें ?झटक भी नहीं सकते /झिडक भी नहीं सकते .
राजा दशरथ को कानों के नीचे के बाल पकते ही अपने बुरे दिन दिखने
लगे थे .सत्ता की कैकेयी ने उन्हें अवश कर दिया था .नगाड़ों के शोर में उनकी तुरही
पिनपिना कर रह गयी थी .फिर जो दिन आये सो सबको पता है .खुदा ऐसे दिन दुश्मन को भी
ना दिखाए .
बुरे दिन बीत जाने पर भी राम के दिन नहीं
बहुरे.पत्नी –पुत्रों का वियोग क्या अच्छे दिन थे ?आखिर में इन तथाकथित अच्छे
दिनों की याद में उन्होंने जलसमाधि ले ली .
# शक्तिनगर, चन्दौसी, संभल 244412
मोबाइल 8218636741
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