Friday, October 23, 2015

पल्ला झाड़ो-तमाशा देखो

# मूलचन्द्र गौतम
सृष्टि के प्रारम्भ से ही मनुष्य को यह सवाल परेशान करता रहा है कि खुदा ने किसी भी जीव की जीभ में हड्डी क्यों नहीं लगाई ? कम से कम नेताओं की में तो लगा ही देता ताकि वह जनता से  कभी झूठे वादे नहीं कर पाता. अगर लगाईं होती तो अच्छा रहता क्योंकि फिर वह अपने कहे पर कायम रहता और बार –बार यू टर्न नहीं ले पाता .बिना हड्डी के उसे सुविधा रहती है कि अपनी कही बात का जिम्मा औरों पर डाल सके की उसका यह मतलब नहीं था कि मीडिया तोड़ मरोड़कर  उनका गलत अर्थ निकाल रहा है . जीभ का यही लचीलापन उसे धडल्ले से झूठ बोलने की आजादी देता है .कहते तो यह भी हैं की हमेशा सच बोलने वालों की जीभ में हड्डी होती है . आदिवासी आज भी झूठ नहीं बोल पाता . कत्ल करके थाने पंहुच जाता है .
रहिमन जिह्वा बावरी कहि गयी सरग पताल,आपुन तो भीतर गयी जूती खात कपाल . ऐसी ही बदजुबानी पर जुबान खींच लेने की धमकी दी जाती है .घोड़े की जुबान पर भी इसीलिए लगाम लगाई जाती ताकि वह नेताओं की तरह फिसल न जाए .स्लिप ऑफ़ टंग.जीभ में हड्डी होती तो यह नौबत ही नहीं आती .
स्वाद और वाद दो ही बड़ी कमजोरी हैं जीभ की .इन्हीं में जीव माया में फंसता है फिर सीबीआई में उसकी दुर्गति होती है .सतयुग में ऐसा कुछ नहीं होता था .कलिकाल की यह अनिवार्य बीमारी और बुराई है .सतयुग में गलती से भी किसी से गौ हत्या का पाप हो जाता था तो कलंकी मरी हुई गाय की पूंछ बांधकर गाँव –गाँव अपने पाप का प्रायश्चित्त करता हुआ तब तक घूमता रहता था जब तक कि इलाके की जनता उसे माफ़ नहीं कर देती थी .अब कुछ नहीं होता .सामूहिक जनसंहार की कोई सजा है न सुनवाई .किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं .सब अपना पल्ला झाड़कर पाप दूसरे के पल्ले बाँध देते हैं और फिर उसे ये पल्लेदार जिन्दगी भर अपने सिर और पीठ पर ढोते रहते हैं .
जिम्मेदारी से पल्ला झड़ने की कला ही मॉडर्न मैनेजमेंट का अहम हिस्सा है जो सिर्फ हार्वर्ड में उपलब्ध है .पुराने जमाने के नेता कुछ भी गलत होते ही पहला काम पद से इस्तीफा देने का करते थे अब लाख लोग चीखते –चिल्लाते रहें उनके कान पर जूँ नहीं रेंगती .यह बेशर्मी बड़ी अविचल  साधना की मांग करती है जिसे साधकर कोई भी सिद्ध पुरुष हो जाता है –परम योगी –परमहंस .शुद्ध-बुद्ध और निरंजन .
# शक्तिनगर, चन्दौसी, संभल 244412
मोबाइल 8218636741

No comments:

Post a Comment