Tuesday, December 19, 2017

भाजपा का हिंदी ,हिन्दू प्रेम ?


@ मूलचन्द्र गौतम
भारतीय संविधान की अनेक विसंगतियों में एक सबसे बड़ी विसंगति हिंदी को लेकर रही है ,जिसके बारे में संविधान संशोधन की तत्काल और सख्त जरूरत है .जब देश में भाषावार राज्यों का विभाजन हो रहा था तो आश्चर्य होता है कि हिंदीभाषियों का एक राज्य क्यों नहीं बनाया गया ?ठीक उसी तरह  जैसे संविधान में हिंदी को देश की प्रथम राजभाषा नहीं बनाया गया जबकि देश की आजादी के आन्दोलन की प्रमुख भाषा हिंदी थी .यह गांधीजी की हार और मैकाले और उसके समर्थक काले अंग्रेजों की जीत थी जिसमें दुर्भाग्य से नेहरूजी शामिल थे . देश के विभाजन की तरह बांटो और राज करो की नीति के तहत यह एक सोचा समझा सुसंगत षड्यंत्र था जिसका आज तक कोई जिक्र नहीं होता .इसी के तहत देश का संविधान लागू होने से पहले ही हिन्दीभाषी जनता के किसी तरह के विरोध को शांत करने के लिए 14 सितम्बर 1949 को हिंदी दिवस का झुनझुना थमा दिया जिसे इस गोबरपट्टी के जाहिल बाशिंदे बड़े ही शौक से सालाना त्यौहार की तरह मनाते हैं .ये शतरंज के धर्मनिरपेक्ष खिलाडी आपस में एक दूसरे को  शह और मात  देने के चक्कर में खाहमखाह भिड़े रहते हैं और अंग्रेजी और अंग्रेजीपरस्तों की शाही सवारी शान से राजपथ से गुजरती रहती है और देसी भाषाओँ का ऊबड़ खाबड़ जनपथ भिखमंगों को ढोता रहता है .
 रात दिन संविधान की धारा 370 और तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की विसंगति का हल्ला मचाने वाली राष्ट्रवादी परम देशभक्ति का ढिंढोरा पीटने वाली भाजपा भी इस ओर कोई ध्यान नहीं देती .बस गरीब हिंदी और हिंदीभाषियों के थोक वोटबैंक को मरहम लगाने वास्ते कभी अटलजी ,कभी मोदीजी कभी सुषमाजी संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में बोलने का अहसान कर आते हैं और बस इतने भर से संघी बम बम हो जाते हैं कि हिंदी जल्दी ही विश्व भाषा बनेगी .जबकि यह तल्ख़ हक़ीकत है कि हिंदी जिस देश के संघ लोक सेवा आयोग और सुप्रीमकोर्ट में ही प्रथम राजभाषा के रूप में मान्य नहीं है वहाँ वह उपेक्षित ही रहने को अभिशप्त है . इस मामले में कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दलों का रवैया एक जैसा रहा है . क्या संघ और भाजपा हिंदी को उसका सम्मान दिलाने की कोई चर्चा या कोशिश करते हुए दिखाई देते हैं ?रात दिन चीन की बराबरी और  विकास में उसे पीछे छोड़ देने की कसमें खाने वाले चीन की भाषा ,संस्कृति ,खेल ,टेक्नोलॉजी और जनसंख्या नीति से कोई सीख लेने को तैयार हैं ? संघ  के तमाम कर्णधार संगठनों का काम केवल और केवल अंग्रेजी में चलता है .उन्हें राष्ट्रभाषा से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय भाषा प्यारी है क्योंकि विदेश व्यापार उसी से सधता है . सिर्फ  मन की बात करने और वोट हासिल करने के लिए उन्हें हिंदी की जरूरत होती है.बाकी  देसी गधे  और भेड़ें तो यों ही हिंदुत्व के नाम पर उसके बाड़े को छोडकर कहीं जा नहीं सकते ?
आजादी के आन्दोलन में महात्मा गाँधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती भारत के बहुलतावादी समाज को एक साथ लेकर चलने की थी जिसमें वे हिंसा को कतई प्रविष्ट करने को तैयार नहीं थे ,इसीलिए उन्होंने उदार हिंदुत्व में हिन्दू और मुसलमानों को साथ रखा और कट्टर हिन्दू महासभा तथा मुस्लिम लीग को जानबूझकर अलग रखा . इस मायने में महामना मदन मोहन मालवीय हिन्दुओं के और अब्दुल गफ्फार खां तथा मौलाना आजाद उनके मुसलमानों के प्रतिनिधि थे जिन्हें वे सार्वजनिक रूप से  अंग्रेजी शासन के विरोध में पेश करते थे .कट्टर हिन्दुओं को उनकी यही शैली अखरती थी ,जिसका प्रदर्शन उन्होंने गाँधी की हत्या के माध्यम से देश के सामने रखा . पूना पैक्ट के द्वारा गाँधीजी ने दलित समाज को  विभाजन की हद तक अलग होने से बचा लिया था ,जिसे आज सवर्ण हिंदुत्व के तरफदारों ने बार बार आरक्षण खत्म की चुनौती दे देकर हाशिये पर खदेड़ देने की कोशिश की है और वह इस तथाकथित हिंदुत्व से अलग थलग महसूस करता है .आइआइटी,आइआइएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रवेश के बावजूद दलित छात्र आत्महत्या क्यों कर रहे हैं ,यह चिंता की बात है .यह एक पिल्ले का कार से कुचल जाना भर नहीं है .रोहित वेमुला इसका अकेला उदाहरण नहीं है .  तमाम बौद्धिकों की हत्यारी जमात को कौन नहीं जानता ?कहने की जरूरत नहीं कि आज भाजपा उसी आक्रामक और संकीर्ण अल्पसंख्यक विरोधी हिंदुत्व को  प्रखर राष्ट्रवाद और भारतीय सेना की आड़ में कट्टर और आतंकवादी इस्लाम उर्फ़ पाकिस्तान के विरुद्ध खड़ा करती है लेकिन उसके निशाने पर देशभक्त गरीब  मुसलमान क्यों होना चाहिए .  गौमाता की आड़ में  हमें होरी और हल्कू का शोषण क्यों नहीं दिखता जब किसान की मेहनत की फसल गौशाला के नाम दान की आड़ में ठग ली जाती है .एक ही मरियल गाय का गंगा किनारे लाखों बार गोदान कराया जाता है . मशीनी खेती ने प्रेमचंद के हीरा मोती को कब का बेगाना बना दिया उन्होंने  गोदान यों ही नहीं लिखा था .  आज किसानों की आत्महत्या उसी शोषण की आधुनिक प्रक्रिया है .गाय की आड़ में  उदार निर्दोष ,निरीह  गरीब मुसलमान भी पिसता है ,हिंसा का शिकार होता है .इन हत्यारों को गाय से भी ज्यादा गरीब और दयनीय हिंदी कहीं नजर नहीं आती जिसकी हत्या सरेआम हो रही है .वह अपने ही देश में  दोयम दर्जे की जिन्दगी ढो रही है .
प्रताप नारायण मिश्र ने जिस  भावना से हिंदी ,हिन्दू ,हिंदुस्तान का नारा दिया था आज वह नदारद है .मोहन भागवत बड़ी शान से कहते हैं कि हर भारतवासी हिन्दू है लेकिन वे हर भारतवासी को यह अहसास दिलाने में क्यों नाकाम रहते हैं कि हर हिन्दू की धार्मिक आस्था और विश्वास की रक्षा करना भी  उस हिंदुत्व के ठेकेदारों की जिम्मेदारी है .अतीत और इतिहास से बदला उसके प्रतीकों को नेस्तनाबूद करके नहीं लिया जा सकता .उन्हें स्वतन्त्रचेता लेखकों और इतिहासकारों की जमात से खतरा क्यों महसूस होता है ? इस मामले में भाजपा हिंदी के  नख दंतविहीन निरीह मास्टरों  की जमात का उपयोग बेहतर मानती है .भोपाल के विश्व हिंदी सम्मेलन और हाल ही के उप्र हिंदी संस्थान के पुरस्कारों ने यह प्रमाणित भी कर दिया है .क्यों वे एक खास किस्म के लोगों को ही पसंद करते हैं ?सामान्य जन उनके सोच विचार के दायरे से क्यों बाहर है ?केवल चुनावी चंदा देने वाले कारपोरेट का हित साधन ही तो सब कुछ नहीं है ,न चुनाव जीतना कोई परम पुरुषार्थ है .रेसकोर्स का नाम लोककल्याण कर देने भर से लोककल्याण नहीं होता ,किसान मजदूर का हित नहीं सधता .?
 आपात्काल के बाद देश की तथाकथित दूसरी आजादी के दौरान दोहरी सदस्यता के  द्वंद्व में सरकार का शीराजा बिखर गया था .यूपीए के भ्रष्टाचार की यादें जैसे ही जनमानस से धुंधली होने लगेंगी वैसे ही भाजपा के ये अंतर्विरोध और नाकामियां उस पर भारी पड़ने लगेंगी .भावनात्मक खिलवाड़ ,जुमलों और टोटकों से देर और दूर तक चुनाव नहीं जीते जा सकते .जनभावना को ज्यादा बहलाया –फुसलाया नहीं जा सकता .
इसलिए हिन्दीभाषी जनता को मजबूती के साथ यह संकल्प लेना चाहिए कि अगले लोकसभा के चुनाव से पहले हिंदी को देश की प्रथम राजभाषा और राष्ट्रभाषा घोषित करने वाले दल को ही  सत्ता का बहुमत देगी . अंग्रेजी को दोयम बनाने से इस निर्णय का कोई विरोध नहीं है .मन्दिर  निर्माण से पहले अगर भाजपा इसे पूरा करती है तो देश की जनता को क्या आपति होगी ?
# शक्तिनगर ,चन्दौसी ,संभल उप्र 244412 मोबाइल 9412322067 ईमेल –moolchand.gautam@gmail.com


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