Saturday, January 28, 2023

झाँस और झाँसा

झाँस और झाँसा 

# मूलचन्द्र गौतम

आजकल सरसों के तेल के साथ झाँस का प्रचार खूब तेजी से हो रहा है।नाजनकार लोग पूछते हैं यह क्या है क्योंकि  अज्ञेय के उन शहरातियों को यह तक मालूम नहीं कि बेर की पूँछ किधर होती है ।मजे लेने के लिये उन्हें बताया जा सकता है कि यह झाँसी का छोटा भाई है ।तीन बेर के किस्सों से अनजानों को घुइयाँ की तरह घी और तेल की जड़ तक मालूम नहीं ।उन्हें सामान्य ज्ञान की प्रश्नावली में सरसों के प्रकार ही पूछ लिए जाँय तो उनकी हवाइयां उड़ने लगेंगी ।पीली सरसों का नाम सुनते ही वे मुँह फाड़कर ऐसे देखने लगेंगे जैसे उन्होंने बुर्ज खलीफा के दर्शन कर लिए हों ।कोल्हू का नाम सुनते ही उन्हें चक्कर आने लगेंगे । कच्ची घानी और डबल कोल्हू जैसे मार्के ऐसे बुद्धू लोगों को भरमाते हैं। वैसे भी कच्ची घानी से निकले  खल के घेरों की खूबसूरती कुम्हार  के चाक से उतरने वाले घड़ों से कम नहीं होती।मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद की तरह आंखों पर अंधौटे बांधे कोल्हू के बैल की यात्रा की लंबाई नापना किसी गणित से संभव नहीं।

खैर सवाल झाँस का है तो इसे हमारे यहाँ झल कहते थे जिससे सरसों के तेल की शुध्दता नापी जाती थी ।दुआं के तेल की झल में तो इतनी चिरमिरी होती थी कि बर्दाश्त करना मुश्किल होता था ।उसके तेल और खल का प्रयोग मेहनतकश बैलों पर होता था या दिवाली के दियों में ।अब एसेंस का जमाना है तो असली नकली की पहचान नामुमकिन है।जरूर झाँस में उसी का पुनर्जन्म हुआ है या यह विज्ञापन का झाँसा है जिसके लालच में ग्राहक को फँसाया जा रहा है। पैरवीकार मजबूत हो कभी कभी यह झाँसा देने वाले पर भारी पड़ जाता है ।

जैसे चुनाव में नेता लोग रेवड़ियों के झाँसे में जनसमूह को फँसाकर बहुमत का जुगाड़ करते हैं वैसे ही विज्ञापन कम्पनियां फिल्मी कलाकारों की आड़ में आँख से अंधे उपभोक्ता की तलाश करती हैं । विज्ञापन में आते ही पाँच का माल पचास का तो हो ही जाता है। झाँसा भी पाई से लेकर अरबों खरबों तक जाता है।अब पुरनिया लोग बताते रहें अपने जमाने के घी तेल और सोने के भाव  ,क्या फर्क पड़ता है ?

यह सायबर ठगी का महाब्रह्माण्ड है जो महालीला का महाप्रयोग कर रहा है।इस मकड़जाल में फँसा हुआ जीव सिर्फ छटपटाकर प्राण त्यागने भर के लिये स्वतंत्र है।यह डिजिटल लीला भोले भाले लोगों के पल्ले नहीं पड़ती जब तक कि वे पूरी तरह लुट पिट नहीं जाते फिर आप कितने ही ऊँचे स्वर में सावधान सावधान चिल्लाते रहें और प्रभाती गाते रहें तेरी गठरी में लागा चोर ... मुसाफिर जाग जरा ।इतने में तो गिरहकट जहरखुरानी हाथ साफ करके निकल चुका होता है एंडरसन .....की तरह ।दुनिया के झाँसेबाजों का सिरमौर नटवरलाल सिर्फ एक फ़िल्म का टाइटल नहीं हकीकत है ।उसके विदेशी ताऊ शोभराज की शोभायात्रा कहाँ से निकलकर कहाँ जायेगी कुछ पता नहीं।
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