क्रोनी
कैपिटलिज्म ने रामलाल की नींद हराम कर रखी है .वे अम्मा की सलाह पर कभी दक्षिण
दिशा में पैर करके भी नहीं सोये .अगस्त्य मुनि ने इसीलिए उत्तर -दक्षिण के बीच विन्ध्याचल खड़ा किया था कि
दोनों तरफ आवाजाही बंद रहे .बुरा हो इस आईटी - सोफ्ट्वेयर इंडस्ट्री का कि उन्हें
न चाहते हुए भी दक्षिण की ओर जाना ही पड़ा.भारत की सिलिकोन वैली में रहते हुए भी वे
कभी दक्षिण की भाषा –संस्कृति में रम नहीं
पाए .अलबत्ता मजबूरी में इडली –डोसा जरुर
भकोसते रहे .चायनीज और मेक्डोनाल्ड के मुकाबले उन्होंने सिर्फ स्वाद बदलने के लिए
ही इन्हें यूज किया .
रामलाल
अंग्रेजी के सीमेंट में ही भारत की मजबूती देखते रहे हैं उन्हें लगता है कि यही
सीमेंट और फेविकोल देश को एकजुट रख सकता है .देसी भाषा –बोलियों का गारा तो एक
बरसात नहीं झेल पायेगा .हिंदी साम्राज्यवाद का डर दक्षिण में अंग्रेजी को मजबूत
करता रहा है और हिंदी क्षेत्र बिना अंग्रेजी के गोबर पट्टी होने को मजबूर है .राष्ट्रीय
एकता का यह भाषायी वैविध्य तमाम भारतियों को एक दूसरे से अपरिचित और अनजान बनाये
रखने की औपनिवेशिक साजिश है क्या ?
रामलाल
आजकल परेशान हैं कि उन्हें खुलेआम दक्षिणपंथी कहा जा रहा है ,जबकि वे पुराणपंथी और
पोंगापंथी हैं .युवावस्था में वे आर्यसमाजी थे जो हिंदुत्व का कम्युनिज्म था जो अब
संघी और पुरोगामी है .दक्षिणपंथी कहलाना किसी गाली से कम नहीं है .वाममार्गी होना तो और
भी निकृष्ट धारणा रही है –पंचमकार सेवी .वो तो भला हो वामपंथ का कि कुछ इज्जत मिल
गयी वरना देश में कम्युनिस्ट होना भी किसी गाली से कम नहीं रहा . मजदूर संघों के
अनुभवी और किसी संघ को नहीं जानते .संघे शक्ति कलौयुगे –का मतलब कौन सा संघ था यह
उन्हें अब समझ में आया है .इसीलिए अब वे संघ शरणम् हो गये हैं .संघी लेखकों ने उन्हें
अब अपना लिया है .अब उन्हें आगे के संघ के बजाय पीछे के संघ में शुभ –लाभ दिखने
लगा है .मार्क्स –लेनिन की जगह लक्ष्मी –गणेश ने ले ली है .
रामलाल
की अम्मा उन्हें कभी दक्षिण दिशा में पैर करके सोने नहीं देती थी क्योंकि यह
मृत्यु की दिशा है .जब वे नौकरी करने दक्षिण दिशा में गये तो उन्होंने लम्बी साँस
लेकर उनके आगामी दुखद भविष्य को देख लिया था .अब वे दक्षिणपंथी हो गये हैं तब तो
विनाश अवश्यम्भावी है ,जिसे दैव भी नहीं टाल
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