Friday, May 13, 2016

इटली की मुश्किलें


# मूलचन्द्र गौतम

 आम भारतीय परिवारों में ससुराल और ननिहाल को नीचा दिखाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा जाता . बच्चे में कोई भी दुर्गुण देखते ही उसकी ननिहाल को कोसा जाने लगता है .लडके की ससुराल तो एकमात्र निशाना है इसीलिए बहू कभी घर की नहीं हो पाती .हमेशा अपने मायके से ही जानी जाती है .भारतीय गांवों का गहन शोधपरक अध्ययन करने वाले एम एन श्रीनिवास और श्यामा चरण दुबे तक इन तथ्यों और सत्यों पर कुछ नहीं लिख पाए .उनके लिए भारतीय समाज केवल कुछ वर्णों और जटिल जाति सम्बन्धों और समूहों की संरचना भर है .मनुस्मृति तक में इस बारे में कुछ नहीं मिलता .महाभारत में अलबत्ता वर्णसंकरता पर संकेत मात्र मौजूद है
भारत में राष्ट्रपिता ,राष्ट्रचाचा का जितना सम्मान रहा है उतना राष्ट्र्नाना ,मामा ,फूफा ,जीजा ,दामाद का नहीं .कंस और शकुनि आज भी गाली की तरह इस्तेमाल किये जाते हैं .भारतीय परम्परा में बेटी ,बहू कितनी भी गुणवती हो उसके सिर पर पगड़ी नहीं बंधती अलबत्ता दुर्गुण और दोष जरूर निकाल कर  खड़े कर दिए जाते हैं . गाहे बगाहे हत्या भी कर दी जाती है .सोनिया भाभी इटली के बजाय किसी और देश की होतीं ,या शुद्ध देसी होतीं तब भी उन्हें कोई प्रधानमन्त्री नहीं बनने देता .नेहरूजी की एकमात्र पुत्री न होतीं इंदिराजी अपने  सामने खड़े  मुश्किलों का सिंडीकेटी पहाड़ को तोड़ नहीं पातीं  जिसे उन्होंने अपने पराक्रम से परास्त कर दिया .
तमाम दुर्योधन और दुशासन बोफोर्स से आगस्टा वेस्टलैंड तक  की दलाली में भौजी के  मायके वालों को घसीट लेते हैं .मरीन हत्यारों तक को निस्संकोच  उनका खानदानी साबित कर दिया जाता है .यहाँ तक कि उनकी आँखों के तारे –दुलारे को उनके सामने शहजादे ,पप्पू कहकर तरह तरह से जलील किया जाता है .
मायका और औलाद हर औरत की कमजोर नस होती है जिसे कोई भी दबाकर चला जाता है .दुर्वासे तो हर वक्त इसी तलाश में रहते हैं कि जरा सा दाल में नमक कम या ज्यादा निकले तो वे इटली को कोसने लगें .इसी डर से भौजी लल्ला की शादी तक करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहीं .दामाद की दुर्गति से भी डर लगता है .
राष्ट्रवाद की यही ताकत किसी को भी कठघरे में ले सकती है .
# शक्तिनगर, चन्दौसी, संभल 244412
मोबाइल 8218636741

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